अमेरिकी बाजार में ‘महत्वपूर्ण’ गिरावट आने का भारत पर व्यापक प्रभाव संभवः आर्थिक समीक्षा

अमेरिकी बाजार में 'महत्वपूर्ण' गिरावट आने का भारत पर व्यापक प्रभाव संभवः आर्थिक समीक्षा

  •  
  • Publish Date - January 31, 2025 / 04:14 PM IST,
    Updated On - January 31, 2025 / 04:14 PM IST

नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की बढ़ती हिस्सेदारी के बीच आर्थिक समीक्षा 2024-25 ने कहा है कि अमेरिकी बाजारों में किसी भी गिरावट का भारत पर व्यापक असर देखने को मिल सकता है।

पिछले कुछ वर्षों में खासकर युवा निवेशकों की खुदरा भागीदारी इक्विटी बाजारों में काफी बढ़ गई है। वित्त वर्ष 2019-20 में खुदरा निवेशकों की भागीदारी 4.9 करोड़ थी जो बढ़कर 31 दिसंबर, 2024 तक 13.2 करोड़ हो गई है।

शुक्रवार को संसद में पेश की गई वित्त वर्ष 2024-25 की आर्थिक समीक्षा कहती है, ‘‘अमेरिका में ऊंचे मूल्यांकन और आशावादी बाजार धारणाओं को देखते हुए 2025 में बाजार में एक महत्वपूर्ण गिरावट की संभावना बनी हुई है। यदि ऐसी गिरावट आती है तो इसका भारत में खासकर युवा एवं अपेक्षाकृत नए खुदरा निवेशकों की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।’’

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, कोविड महामारी के बाद शेयर बाजार का हिस्सा बनने वाले तमाम निवेशकों ने कभी भी महत्वपूर्ण और लंबे समय तक बाजार में गिरावट नहीं देखी है। यदि ऐसी स्थिति बनती है तो धारणा और खर्च पर इसका प्रभाव बड़ा हो सकता है।

समीक्षा कहती है कि खुदरा निवेशकों की भागीदारी में वृद्धि पिछले चार साल में निफ्टी 50 और एसएंडपी 500 के बीच पांच साल के रोलिंग बीटा में आई लगातार गिरावट से मेल खाती है। इसका मतलब है कि अमेरिकी बाजार की गतिविधियों के प्रति भारतीय बाजार की संवेदनशीलता अब कम हुई है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) की निकासी के दौर में भी भारतीय बाजारों की मजबूती के कायम रहने से भारतीय और अमेरिकी बाजारों का यह अलगाव और भी स्पष्टता से नजर आता है। मसलन, अक्टूबर, 2024 में एफपीआई के द्वारा 11 अरब डॉलर की निकासी करने के बावजूद घरेलू संस्थागत और व्यक्तिगत निवेशकों के मजबूत समर्थन के दम पर निफ्टी में केवल 6.2 प्रतिशत की गिरावट आई थी।

इसके विपरीत, मार्च, 2020 में महामारी से प्रेरित बिकवाली के दौरान एफपीआई ने आठ अरब की निकासी की थी लेकिन बाजार में 23 प्रतिशत की भारी गिरावट आ गई थी।

इसके बावजूद आर्थिक समीक्षा अमेरिकी बाजार में किसी भी तरह की गिरावट के संभावित असर को लेकर आगाह करती है। समीक्षा कहती है, ‘‘ऐतिहासिक रुझानों को देखते हुए अमेरिकी बाजार में संभावित गिरावट से जुड़े जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।’’

आंकड़ों से पता चलता है कि भारतीय बाजार अमेरिकी बाजार में होने वाली गतिविधियों को लेकर खासे संवेदनशील रहे हैं। वर्ष 2000 और 2024 के बीच के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि एसएंडपी 500 में 10 प्रतिशत से अधिक गिरावट आने के 22 मामलों में से निफ्टी ने एक बार को छोड़कर सभी में नकारात्मक रिटर्न दर्ज किया और औसतन 10.7 प्रतिशत की गिरावट आई।

इसके उलट, निफ्टी में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आने के 51 मामलों में से एसएंडपी ने 13 बार सकारात्मक रिटर्न दिया। यह दोनों बाजारों के बीच बेमेल संबंध को रेखांकित करता है, जो अमेरिकी बाजारों में होने वाले उतार-चढ़ाव का भारतीय इक्विटी पर अधिक स्पष्ट प्रभाव दर्शाता है।

आर्थिक समीक्षा के मुताबिक, पूंजी बाजार भारत की वृद्धि गाथा के केंद्र में हैं, जो वास्तविक अर्थव्यवस्था के लिए पूंजी निर्माण को उत्प्रेरित करते हैं, घरेलू बचत के वित्तीयकरण को बढ़ाते हैं और धन सृजन को सक्षम बनाते हैं।

भाषा प्रेम प्रेम अजय

अजय