नयी दिल्ली, 26 मई (भाषा) यदि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) एसएफबी पर कुछ प्रतिबंधों में ढील दे तो उनमें से ज्यादातर सार्वभौमिक बैंक बनने की मांग नहीं करेंगे।
वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने में लघु वित्त बैंकों (एसएफबी) के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पूर्व वित्तीय सेवा सचिव डी के मित्तल ने यह बात कही।
देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए आरबीआई ने 2014 में निजी क्षेत्र में एसएफबी को लाइसेंस देने के लिए दिशानिर्देश जारी किए था। इसके बाद आरबीआई ने एक दर्जन संस्थाओं को लाइसेंस दिए।
आरबीआई के दिशानिर्देशों के अनुसार, एसएफबी के लिए अपनी कम से कम 25 प्रतिशत शाखाएं बैंक रहित ग्रामीण केंद्रों में खोलना जरूरी है। इसके अलावा उन्हें 75 प्रतिशत ऋण प्राथमिकता क्षेत्र को देना अनिवार्य है, जबकि वाणिज्यिक बैंकों के लिए यह सीमा 40 प्रतिशत है।
मित्तल ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘लघु वित्त बैंकों को सार्वभौमिक बैंक बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी करते समय, यदि आरबीआई एसएफबी पर लगाए गए कुछ प्रतिबंध हटा दे, तो ऐसा करना वित्तीय समावेशन के व्यापक राष्ट्रीय हित में होगा।”
उन्होंने प्रतिबंधों के बारे में बात करते हुए कहा कि आरबीआई को सह-ऋण, ‘पास थ्रू’ प्रमाणपत्र (पीटीसी) और प्रतिभूतिकरण तथा सहायक कंपनियों की स्थापना की अनुमति देने पर विचार करना चाहिए।
भाषा पाण्डेय अजय
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