नयी दिल्ली, 21 जनवरी (भाषा) खाद्यतेल उद्योग निकाय, एसईए ने मंगलवार को सरकार से रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात को विनियमित करने, साबुन और नूडल्स जैसे तैयार उत्पादों के शुल्क मुक्त देश में आने वाली आयात खेपों को प्रतिबंधित करने और डी-ऑइल राइस ब्रान (चावल भूसी) पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाने का आग्रह किया।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को सौंपे गए अपने बजट पूर्व ज्ञापन में, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात निर्भरता को कम करने के लिए वित्तीय सहायता में वृद्धि के साथ ‘खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन’ (एनएमईओ) शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया।
इसने कहा कि एनएमईओ को मौजूदा 10,000 करोड़ रुपये के मुकाबले अगले पांच वर्षों के लिए न्यूनतम 25,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लागू करने की जरूरत है ताकि देश की आयातित तेलों पर निर्भरता को वित्तवर्ष 2029-30 तक 65 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से घटाकर 25-30 प्रतिशत किया जा सके।
एसईए ने कहा, ‘‘हमें एमएसपी समर्थन, किसान शिक्षा, बीज, कृषि पद्धतियों और मशीनरी, मृदा मौसम पूर्वानुमान और भंडारण के साथ-साथ प्रसंस्करण उद्योग के आधुनिकीकरण पर भारी निवेश करने की आवश्यकता है।’’
रिफाइंड पाम ऑयल के बढ़ते आयात पर चिंता व्यक्त करते हुए एसईए ने कहा कि भारतीय पाम रिफाइनिंग उद्योग बहुत कम क्षमता उपयोग से पीड़ित है और इंडोनेशिया और मलेशिया से आरबीडी पामोलिन के सस्ते आयात के कारण केवल पैकर्स में तब्दील होता जा रहा है।
उद्योग निकाय ने कच्चे पाम ऑयल शुल्क में किसी भी बदलाव के बिना आरबीडी पामोलिन के आयात शुल्क को मौजूदा 12.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने की मांग की।
इसने समग्र तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और आयात को कम करने के लिए कच्चे और रिफाइंड तेलों पर उच्च आयात शुल्क की भी मांग की।
एसईए ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों, मुख्य रूप से मलेशिया, इंडोनेशिया और थाईलैंड से साबुन और नूडल्स जैसे तैयार उत्पादों के बड़े पैमाने पर आयात पर अंकुश लगाने का आह्वान किया।
इसने कहा कि सरकार को स्टीयरिक एसिड, साबुन नूडल, ओलिक एसिड और रिफाइंड ग्लिसरीन जैसे तैयार उत्पादों के आयात को प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में रखना चाहिए।
एसईए ने ओलियोकेमिकल कंपनियों के लिए सभी आवश्यक कच्चे माल के शुल्क मुक्त आयात और सभी कच्चे खाद्य तेलों पर एक समान शुल्क की भी मांग की।
वर्तमान में, कच्चे चावल भूसी तेल और कच्चे पोमेस तेल पर 35 प्रतिशत मूल सीमा शुल्क लगता है, जबकि कच्चे पाम तेल और कच्चे सोयाबीन तेल पर अलग-अलग दरें हैं।
उद्योग निकाय ने सोयाबीन के लिए बफर स्टॉक बनाने, मूल्यवर्धित सोयाबीन उत्पादों को बढ़ावा देने और दुरुपयोग को कम करने के लिए डी-ऑइल राइस ब्रान पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाने की मांग की।
कच्चे माल ‘चावल की भूसी’ पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगता है, जबकि तैयार उत्पाद डी-ऑइल राइस ब्रान पर कोई शुल्क नहीं लगता है।
एसईए ने ऑयलमील निर्यात के लिए प्रोत्साहन, मक्का आधारित इथेनॉल की कीमतों के विनियमन की भी मांग की ताकि डीडीजीएस (डिस्टिलर्स ड्राइड ग्रेन विद सॉल्यूबल्स) की कीमतें स्थिर रहें जिससे सोया और रेपसीड जैसे ऑयलमील की घरेलू खपत प्रभावित न हो।
इसने सरकार से तिलहन विस्तार कार्यक्रमों में निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने और मॉडल फार्म स्थापित करने के लिए मौद्रिक सहायता प्रदान करने का आग्रह किया।
भाषा राजेश राजेश पाण्डेय
पाण्डेय