नयी दिल्ली, 25 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को शिक्षा-प्रौद्योगिकी कंपनी बायजू के खिलाफ दीवाला कार्यवाही को रोकने और बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के एनसीएलएटी के फैसले पर सवाल उठाया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने संकेत दिया कि वह विवाद को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस भेज सकती है। पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे।
न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने शिक्षा प्रौद्योगिकी कंपनी के खिलाफ दीवाला कार्यवाही को बंद करते समय सोच-विचार नहीं किया।
एनसीएलएटी ने दो अगस्त को भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के बाद बायजू के खिलाफ दीवाला कार्यवाही को बंद करने का आदेश दिया था।
यह फैसला बायजू के लिए बड़ी राहत लेकर आया, क्योंकि इसने प्रभावी रूप से इसके संस्थापक बायजू रवींद्रन को फिर से नियंत्रक स्थिति में ला दिया।
हालांकि, यह राहत थोड़े समय की रही, और शीर्ष न्यायालय ने 14 अगस्त को एनसीएलएटी के फैसले को अनुचित करार दिया। न्यायालय ने बायजू को कर्ज देने वाली अमेरिका स्थित ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी की अपील पर यह आदेश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि जब कंपनी 15,000 करोड़ रुपये के कर्ज में है, कर्ज की मात्रा इतनी बड़ी है, तो क्या एक लेनदार (बीसीसीआई) यह कहकर पीछे हट सकता है कि एक प्रवर्तक मुझे भुगतान करने के लिए तैयार है।
उन्होंने आगे कहा, ‘‘एनसीएलएटी ने इसपर बिना सोचे-समझे यह सब स्वीकार कर लिया।’’
भाषा पाण्डेय अजय
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