मुंबई, छह नवंबर (भाषा) सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सुस्त पड़कर 6.5 प्रतिशत रहेगी।
देश की आर्थिक वृद्धि दर और इसके धीमे होने की आशंका को लेकर चिंताओं के बीच विश्लेषकों ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2024-25 में वृद्धि दर सात प्रतिशत ‘‘के करीब’’ पहुंच जाएगी।
गौरतलब है कि अप्रैल-जून अवधि में जीडीपी की वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही है, जो 15 तिमाहियों में सबसे कम है।
इस कारण कई विश्लेषकों ने चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर के अपने अनुमानों को संशोधित कर सात प्रतिशत से नीचे कर दिया।
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने कहा, ‘‘ घरेलू अर्थव्यवस्था पर कुछ दबाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। 50 महत्वपूर्ण संकेतकों (उपभोग तथा मांग दोनों) के हमारे विश्लेषण के आधार पर दूसरी तिमाही में कृषि, उद्योग तथा सेवाओं के चुनिंदा समूहों में गिरावट की संभावना दिखती है।’’
उन्होंने कहा कि समग्र मांग में वृद्धि जारी रही, लेकिन इसकी गति पिछली तिमाहियों की तुलना में धीमी रही तथा इससे मिली-जुली तस्वीर उभर कर सामने आई।
एसबीआई ने एक ‘नोट’ में कहा कि वह आर्थिक गतिविधियों को मापने के लिए 50 संकेतकों पर नजर रखता है।
इसमें कहा गया, तेजी दिखाने वाले संकेतकों का अनुपात चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में घटकर 69 प्रतिशत हो गया, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में यह 80 प्रतिशत था। वहीं चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में यह 78 प्रतिशत था।
हालांकि, उन्होंने कहा कि दूसरी तिमाही में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि एक झटके के समान है। हालांकि, ग्रामीण मांग में वृद्धि से सुधार की गति फिर से तेज हो गई है।
इसमें कहा गया है कि अक्टूबर में घरेलू स्तर पर ट्रैक्टर की बिक्री में तेजी देखी गई, जबकि घरेलू दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों की बिक्री में भी लगातार वृद्धि देखी जा रही है। इस वर्ष अगस्त में ग्रामीण कृषि मजदूरी वृद्धि में भी तेजी आई।
शहरी मांग को लेकर चिंताओं पर इसने स्पष्ट किया गया है कि यह शहरी जनसांख्यिकी की बदलती रूपरेखा तथा त्वरित वाणिज्य के प्रति बढ़ती प्राथमिकताओं का संकेत हो सकता है, जिसको उचित रूप से आंका नहीं जा रहा है।
एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने अतीत में की गई नीतिगत गलतियों से बचने की वकालत भी की, जैसे कृषि ऋण माफी जिसके कारण कर्ज संस्कृति विकृत हो जाती है या न्यूनतम समर्थन मूल्य आधारित कृषि विकास, जो ‘‘ राजकोषीय रूप से अत्यधिक खर्चीला है और जिसके परिणामस्वरूप भूजल स्तर में अत्यधिक कमी आती है।’’
भाषा निहारिका अजय
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