नई दिल्ली। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इंडियन करंसी 56 पैसे की भारी गिरावट के साथ 73.29 के स्तर पर बंद हुआ। इस कमोजरी के पीछे चीन के कोरोना वायरस को माना जा रहा है। बीते एक महीने से निवेशकों ने कोरोना वायरस से डरकर अपने पैसों को सेफ इन्वेस्टमेंट कहे जाने वाले सोने में लगाया है।
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इसीलिए शेयर बाजार लगातार गिर रहे हैं, एक्सपर्ट्स का कहना है कि फरवरी महीने में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 12,684.30करोड़ रुपये और मार्च में अभी तक 1,354.72 करोड़ रुपये निकाले है। अगर रुपये में और गिरावट बढ़ती है तो सरकार के साथ-साथ आम आदमी की मुश्किलें भी बढ़ जाएंगी। क्योंकि भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी कच्चा तेल और कई चीजें विदेशों से खरीदता है।
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ऐसे में इंपोर्ट करना महंगा हो जाएगा। लिहाजा भारतीय सरकार को ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। वहीं, कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल-डीज़ल के दाम अब बढ़ सकते है।
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इकोनॉमिक सर्वे में बताया गया था कि एक अमेरिकी डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है। इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है। पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है। इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है।