संशोधित प्रोत्साहन योजना बैंक निदेशक मंडलों की स्वायत्तता को कमजोर करती है: एआईबीओसी

संशोधित प्रोत्साहन योजना बैंक निदेशक मंडलों की स्वायत्तता को कमजोर करती है: एआईबीओसी

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  • Publish Date - November 22, 2024 / 07:45 PM IST,
    Updated On - November 22, 2024 / 07:45 PM IST

नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने शुक्रवार को कहा कि पूर्णकालिक निदेशकों और वरिष्ठ कार्यकारियों के लिए हाल में घोषित संशोधित प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निदेशक मंडलों की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है।

वित्तीय सेवा विभाग ने इस सप्ताह की शुरुआत में पूर्णकालिक निदेशकों के लिए संशोधित पीएलआई योजना की घोषणा की थी। संशोधित योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के स्केल (श्रेणी) -चार से लेकर स्केल-आठ तक के अधिकारी भी शामिल हैं।

हालांकि, स्केल-सात तक के अधिकारियों के लिए पीएलआई का निर्धारण पहले ही भारतीय बैंक संघ (आईबीए) और अधिकारी संघों के बीच द्विपक्षीय समझौतों के जरिये किया जा चुका है।

बैंक अधिकारियों के संगठन एआईबीओसी ने वित्तीय सेवा सचिव को लिखे पत्र में कहा कि सदस्य बैंकों के निदेशक मंडल द्वारा दिए गए अधिदेशों पर आधारित ये समझौते स्केल-आठ के अधिकारियों को भी शामिल करते हैं। वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) का निर्देश इस सुस्थापित ढांचे को कमजोर करता है तथा सामूहिक रूप से बातचीत के जरिये इसे निर्धारित करने की व्यवस्था तथा द्विपक्षीय समझौतों का उल्लंघन करता है।

इसमें कहा गया, ‘‘ स्केल चार से आठ (कुल कार्यबल के पांच प्रतिशत से कम) तक के कर्मचारियों को ही इसमें शामिल करना चयनात्मक दृष्टिकोण है, जबकि मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्तर पर कामकाज संभालने वाले 95 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों को इससे बाहर रखा गया है, जो अनुचित है।’’

पत्र में कहा गया, ‘‘ दो-तीन जनवरी 2015 को पुणे में आयोजित ज्ञान संगम के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा था कि बैंक पेशेवर तरीके से चलेंगे और किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा। यह भी तय किया गया कि बैंक के निदेशक मंडल को भर्ती जैसे मानव संसाधन संबंधी निर्णयों पर पूरी स्वायत्तता दी जानी चाहिए।’’

इसके बाद, डीएफएस ने 13 जनवरी 2015 को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों (पीएसबी/एफआई) के मुख्य कार्यपालक अधिकारियों के साथ प्रधानमंत्री की बातचीत का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया गया। कार्यालय ज्ञापन का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया कि चर्चा के दौरान, उच्चतम स्तर से बहुत स्पष्ट शब्दों में यह बताया गया कि सरकार बैंकों/एफआई के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

इसमें आरोप लगाया गया, ‘‘ वर्तमान निर्देश, जो यह निर्धारित करता है कि वरिष्ठ अधिकारियों को किस प्रकार कार्य करना चाहिए तथा प्रोत्साहन प्राप्त करने के लिए अपने कार्य को किस प्रकार प्राथमिकता देनी चाहिए, निश्चित रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्वायत्तता का उल्लंघन करता है। यह उनके प्रशासनिक ढांचे की अवहेलना करता है तथा केंद्रीकृत नियंत्रण लागू करता है, जो व्यक्तिगत बैंकों की विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप रणनीतिक निर्णय लेने में बाधा उत्पन्न कर सकता है।’’

इसमें कहा गया कि सरकार द्वारा इस तरह का कदम एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निदेशक मंडल के कामकाज की स्वतंत्रता को कमजोर करता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और एसबीआई के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों ने तुलनात्मक रूप से कम वेतन पाने के बावजूद अपने निजी बैंक साथियों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। साथ ही कहा कि यह स्पष्ट है कि पैसा या प्रोत्साहन प्रेरक नहीं हैं।

पत्र में कहा गया, ‘‘ इसलिए हम वित्तीय सेवा विभाग से आग्रह करते हैं कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की स्वायत्तता का सम्मान करे तथा बैंक प्रबंधन के साथ-साथ भारतीय बैंक संघ को यूनियन/एसोसिएशन को साथ लेकर मुआवजा व्यवस्था तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपे जैसा कि पहले भी होता रहा है।’’

इसमें कहा गया है कि इन तंत्रों को बैंकों और उनके कार्यबल के सामूहिक विकास के अनुरूप होना चाहिए, जिससे निष्पक्षता तथा स्थिरता सुनिश्चित हो सके।

भाषा निहारिका रमण

रमण