मुंबई, 19 मार्च (भाषा) अमेरिका और ब्रिटेन जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं से भारत भेजे जाने वाले धन का हिस्सा बढ़कर खाड़ी देशों से 2023-24 में भेजे गए धन से अधिक हो गया है। आरबीआई के एक लेख में यह बात कही गई है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बुधवार को जारी मार्च बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, भारत का धन प्रेषण 2010-11 के 55.6 अरब डॉलर से दोगुना होकर 2023-24 में 118.7 अरब डॉलर हो गया। यह देश के वस्तु व्यापार घाटे के करीब आधे हिस्से की भरपाई करता है।
आरबीआई के लेख के मुताबिक, शुद्ध प्रेषण प्राप्तियां इस अवधि में बाहरी झटकों को झेलने का अहम अंग रही हैं।
बुलेटिन में भारत के धन प्रेषण की बदलती गतिशीलता पर प्रकाशित लेख देश में भेजे जाने वाले धन के विभिन्न आयामों को दर्शाता है।
लेख के मुताबिक, विदेश में रहने वाले भारतीय प्रवासियों की संख्या 1990 के 66 लाख से तिगुना होकर 2024 में 1.85 करोड़ हो गई। इस दौरान वैश्विक प्रवासियों में भारतीयों की हिस्सेदारी भी 4.3 प्रतिशत से बढ़कर छह प्रतिशत हो गई।
खाड़ी देशों में भारतीय प्रवासी दुनिया भर में कुल भारतीय प्रवासियों का लगभग आधा हिस्सा हैं।
खाड़ी देशों के अलावा विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी पिछले कुछ वर्षों में भारत में आने वाले धन प्रेषण के प्रमुख स्रोत के रूप में उभरी हैं।
लेख के मुताबिक, भारत की कामकाजी उम्र वाली आबादी 2048 तक बढ़ने की उम्मीद है, इसलिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा श्रम आपूर्तिकर्ता होगा।
भारत के कुल प्रेषण में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे बड़ी रही, जो 2020-21 के 23.4 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 27.7 प्रतिशत हो गई। वहीं ब्रिटेन से आने वाला धन भी 2020-21 के 6.8 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 10.8 प्रतिशत हो गया है।
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने दूसरे बड़े स्रोत के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी है। इसकी हिस्सेदारी 18 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 19.2 प्रतिशत हो गई।
आरबीआई ने कहा कि इस लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और केंद्रीय बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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