रिलायंस की जामनगर ‘सुपर’ रिफाइनरी ने परिचालन के 25 वर्ष पूरे किए

रिलायंस की जामनगर 'सुपर' रिफाइनरी ने परिचालन के 25 वर्ष पूरे किए

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  • Publish Date - December 29, 2024 / 07:23 PM IST,
    Updated On - December 29, 2024 / 07:23 PM IST

नयी दिल्ली, 29 दिसंबर (भाषा) रिलायंस ने गुजरात के जामनगर में 25 साल पहले, 28 दिसंबर, 1999 को अपनी पहली रिफाइनरी शुरू की थी। इस रिफाइनरी ने रातों-रात भारत को ईंधन की कमी वाले देश से आत्मनिर्भर और बाद में अधिशेष वाले देश में बदल दिया, जिससे यूरोप और अमेरिका को गैसोलीन और गैसोइल का निर्यात किया जाने लगा। आज, जामनगर दुनिया का रिफाइनिंग केंद्र बन गया है। यह एक ऐसा इंजीनियरिंग चमत्कार है जो भारत का गौरव है।

जब भारत की सबसे मूल्यवान कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) ने पहली बार जमीन से और समुद्र तल से निकाले गए कच्चे तेल को पेट्रोल (गैसोलीन) और डीजल (गैसोइल) जैसे ईंधन में परिवर्तित करने के लिए एक तेल रिफाइनरी बनाने की बात की थी, तो अधिकांश विशेषज्ञों ने कहा था कि किसी भारतीय कंपनी के लिए तीन साल में दुनिया की सबसे बड़ी जमीनी स्तर की रिफाइनरी स्थापित करना असंभव होगा।

लेकिन मामले से अवगत सूत्रों ने बताया कि रिलायंस ने यह उपलब्धि मात्र 33 महीने के विश्व रिकॉर्ड समय में हासिल कर ली, जबकि उस समय बुनियादी ढांचे का अभाव था और जामनगर में भीषण चक्रवात आया था।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 2.7 करोड़ टन प्रति वर्ष (560,000 बैरल प्रति दिन) क्षमता वाली इकाई का निर्माण एशिया में समकालीन रिफाइनरियों की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत कम लागत (प्रति टन) पर किया गया था। बाद में इस इकाई का विस्तार करके इसे 3.3 करोड़ टन कर दिया गया।

जब रिलायंस के संस्थापक चेयरमैन धीरूभाई अंबानी रिफाइनरी स्थापित करने के अपने लंबे समय के सपने को पूरा करना चाहते थे, तो उन्हें जामनगर के पास बंजर और उजाड़ क्षेत्र में मोतीखावड़ी नामक एक शांत गांव के पास जमीन की पेशकश की गई थी।

अग्रणी विश्वस्तरीय परियोजना सलाहकारों ने धीरूभाई को रेगिस्तान जैसे क्षेत्र में निवेश न करने की सलाह दी, जहां सड़कें, बिजली या यहां तक कि पर्याप्त पेयजल भी नहीं था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि ऐसे जंगल में जनशक्ति, सामग्री, तकनीकी विशेषज्ञ और हर अन्य इनपुट जुटाने के लिए असाधारण प्रयासों की आवश्यकता होगी।

चुनौतियां पसंद करने वाले धीरूभाई ने सभी आलोचकों की अवहेलना की और अपने सपने को पूरा करने के लिए आगे बढ़े। वह न केवल एक औद्योगिक संयंत्र बल्कि एक नंदनवन बनाना चाहते थे। साल 1996 और 1999 के बीच उन्होंने और उनकी बेहद प्रेरित टीम ने जामनगर में इंजीनियरिंग का एक चमत्कार बनाया।

उन्होंने कहा कि भारत की पहली निजी क्षेत्र की रिफाइनरी ने अकेले ही भारत की कुल रिफाइनिंग क्षमता में 25 प्रतिशत की वृद्धि की और भारत को परिवहन ईंधन में आत्मनिर्भर बनाया। इस परियोजना ने बंजर क्षेत्र को पूरी तरह से एक हलचल भरे औद्योगिक केंद्र में बदल दिया।

भाषा अनुराग पाण्डेय

पाण्डेय