एआई इस्तेमाल को सामाजिक मूल्यों के अनुरूप करने को नियामकीय ढांचे में बदलाव की जरूरत : समीक्षा

एआई इस्तेमाल को सामाजिक मूल्यों के अनुरूप करने को नियामकीय ढांचे में बदलाव की जरूरत : समीक्षा

  •  
  • Publish Date - January 31, 2025 / 03:22 PM IST,
    Updated On - January 31, 2025 / 03:22 PM IST

नयी दिल्ली, 31 जनवरी (भाषा) कृत्रिम मेधा (एआई) का इस्तेमाल सामाजिक मूल्यों के अनुरूप बनाने और नवाचार व जवाबदेही एवं पारदर्शिता के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए नियामकीय ढांचे पर पुनर्विचार तथा संशोधन की जरूरत है।

संसद में शुक्रवार को पेश आर्थिक समीक्षा में यह बात कही गई है। साथ ही बजट-पूर्व दस्तावेज में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा गया है कि सरकारों को उन कॉरपोरेट के वृद्धिशील लाभ पर कर लगाने के लिए मजबूर किया जा सकता है जो श्रमबल के स्थान पर एआई का इस्तेमाल करते हैं।

आर्थिक समीक्षा में ‘एआई युग में श्रम’ अध्याय में कहा गया है कि श्रम पर एआई का प्रभाव दुनियाभर में महसूस किया जाएगा, लेकिन भारत के आकार व अपेक्षाकृत कम प्रति व्यक्ति आय को देखते हुए यह समस्या अधिक गंभीर है।

इसमें कहा गया, ‘‘ यदि कंपनियां लंबे समय तक एआई की शुरुआत को अनुकूलित नहीं करती और इसे संवेदनशीलता से नहीं संभालती हैं तो नीतिगत हस्तक्षेप जरूरी होगा और क्षतिपूर्ति के लिए राजकोषीय संसाधनों की मांग अपरिहार्य होगी।’’

समीक्षा में कहा गया, सरकारों को उन संसाधनों को जुटाने के लिए श्रमबल की जगह प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने से हो रहे मुनाफे पर कर लगाना होगा, जैसा कि आईएमएफ ने अपने दस्तावेज में सुझाव दिया है।

आर्थिक समीक्षा में आगाह किया गया, ‘‘ इससे सभी की स्थिति खराब हो जाएगी और परिणामस्वरूप देश की वृद्धि क्षमता प्रभावित होगी।’’

चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अर्थव्यवस्था की स्थिति का विवरण देने वाले इस बजट-पूर्व दस्तावेज में कहा गया है कि बच्चों का शिक्षित करने के तरीके में संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता होगी, साथ ही ऐसे सुरक्षा तंत्र की भी जरूरत होगी जो मौजूदा श्रमिकों को आर्थिक व सामाजिक दुष्प्रभावों से बचा सकें।

इसमें कहा गया, ‘‘ इससे लाभ की ओर झुकाव बढ़ाने में मदद मिलेगी तथा भारत जैसी श्रम-संचालित, सेवा-निर्भर अर्थव्यवस्था में ‘लागत-लाभ’ पहलू में संतुलन लाया जा सकेगा।’’

इसमें कहा गया, ‘‘ सरकार, निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता यह सुनिश्चित कर सकता है कि एआई-संचालित उत्पादकता से लाभ व्यापक रूप से वितरित हो, जो हमें आदर्श समावेशी विकास रणनीति की दिशा में ले जाएगा।’’

समीक्षा कहती है कि अतीत के सबक से सीखते हुए, क्षमता निर्माण व संस्था निर्माण भारत के लिए समय की मांग है ताकि भविष्य में आने वाले अवसरों का लाभ उठाया जा सके।

भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त तथा विविध आर्थिक परिदृश्य उसे एआई से लाभान्वित होने की विशिष्ट स्थिति में रखते हैं।

इसमें कहा गया, ‘‘ हालांकि, इन लाभों को प्राप्त करने के लिए शिक्षा और कार्यबल कौशल में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है।’’

भाषा निहारिका अजय

अजय