सानल कोच्चि: केरल में एलडीएफ सरकार को झटका देते हुए केरल उच्च न्यायालय ने तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा अडाणी एंटरप्राइजेज को पट्टे पर देने के फैसले को चुनौती देने वाली को सोमवार को खारिज कर दी। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि इस नीतिगत निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई उचित आधार नहीं है। न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और सी एस डायस की खंडपीठ ने केंद्र सरकार द्वारा 50 साल की अवधि के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के जरिए अडाणी एंटरप्राइजेज को हवाई अड्डा पट्टे पर देने के खिलाफ राज्य सरकार और अन्य याचिकाकर्ताओं की दलीलों को खारिज कर दिया।
केरल राज्य औद्योगिक विकास निगम (केएसआईडीसी) की असफल बोली का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि पट्टा देने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं ‘अंगूर खट्टे हैं’ मुहावरे का सटीक उदाहरण है। अदालत ने कहा, ‘‘हमारा यह निष्कर्ष है कि इन रिट याचिकाओं के जरिए जिस कार्रवाई को चुनौती दी गयी है उसमें हस्तक्षेप करने का कतई कोई उचित आधार नहीं है। जैसा कि रिट याचिकाओं से स्पष्ट है कि यह चुनौती निजीकरण के खिलाफ है जबकि वह केंद्र सरकार की घोषित नीति है।’’
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अदालत ने कहा कि हवाई अड्डों के संबंध में सार्वजनिक-निजी भागीदारी को भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) अधिनियम की धारा 12ए के तहत वैध घोषित किया गया है। अदालत ने कहा कि वैधानिक प्रावधान को कोई चुनौती नहीं है और चुनी हुई सरकार द्वारा बनाई गई नीति में हस्तक्षेप करना कठिन है। यह जो चुनौती दी गयी है उसमें कोई दम नहीं है। अदलात ने कहा कि केएसआईडीसी ने पहले जिस आरएफपी( प्रस्ताव के लिए आवेदन) के आधार पर निविदा में भाग लिया अब उसके ही विरुद्ध हो गयी। यह अंगूर खट्टे होने वाली कहावत को चरितार्थ करता है।
अदालत ने केंद्र के निर्णय को चुनौती देने वाली राज्य सरकार, केएसआईडीसी और अन्य की ओर से दायर सभी याचिकाओं को निरस्त कर दिया। अडाण समूह ने प्रतिस्पर्धी बोलियों में फरवरी 2019 में छह हावाई-अड्डो लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मंगलूरू, तिरुवनंतपुरम और गुवाहाटी हवाई अड्डों को सरकारी-निजी भागादारी में पट्टे पर चलाने के ठेके जीते थे। केंद्र ने उसे तिरुवनंतपुरम अड्डे को पट्टे पर देने की मंजूरी इसी वर्ष 19 अगस्त को दी। इसका केरेल में भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर सभी दलों ने विरोध किया था।
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केरल सरकार इस निजीकरण के खिलाफ पिछले साल ही उच्च न्यायालय में गयी थी। अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी । इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। न्यायलय ने केरल उच्च न्याय के निर्णय को किनारे करते हुए उसे इस मामले को गुण-दोष के आधार पर फिर देखने को कहा था। केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय के बाद केरल सरकार फिर से उच्च न्यायालय में पहुंच गयी और आरएफपी को भारतीय विमानपत्तन प्राधिकारण अधिनियम के वुरुद्ध बताया था।