अत्यधिक आयात के बीच तेल-तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर

अत्यधिक आयात के बीच तेल-तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर

अत्यधिक आयात के बीच तेल-तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर
Modified Date: July 30, 2024 / 09:05 pm IST
Published Date: July 30, 2024 9:05 pm IST

नयी दिल्ली, 30 जुलाई (भाषा) आयातित खाद्य तेलों की बहुतायत के बीच मंगलवार को लगभग सभी तेल-तिलहनों के दाम पूर्वस्तर पर बने रहे।

बाजार सूत्रों ने कहा कि आयातित तेलों के दाम मई, 2022 के मुकाबले लगभग 55-60 प्रतिशत टूट चुके हैं और आयात काफी अधिक हो रहा है। इसके कारण हालत यह है कि सोयाबीन तिलहन बाजार में 4,100 रुपये क्विंटल के काफी नीचे दाम पर भी मुश्किल से बिक रहा है। सरकार ने अगली सोयाबीन फसल के लिए इस तिलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) अभी के 4,600 रुपये क्विंटल से बढ़ाकर अगले सत्र के लिए 4,920 रुपये क्विंटल कर दिया है। इसके उलट कारोबारियों के बीच यह चर्चा है कि इसके दाम 4,000 रुपये क्विंटल तक नीचे जा सकते हैं।

सूत्रों ने कहा कि कम से कम सरकार को इस बात की खोज खबर रखनी होगी कि सस्ते आयात ने देशी तेल-तिलहन उद्योग को किस तरह से झकझोर दिया है। तेल मिलों के तेल पेराई के बाद घाटे में बेचने पर भी बिकते नहीं। सस्ते आयातित तेलों का असर देशी तेल पर दिख रहा है। दूसरी ओर खुदरा बाजार में इसी सस्ते आयातित तेल का भाव आसमान छू रहा है।

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उन्होंने कहा कि यह अजीब बिडंबना है कि जो देश अपनी जरूरत के लगभग आधे हिस्से का दूसरे देशों से आयात करता हो, उस देश का तिलहन बाजार में न खपे और वहां की तेल मिलें न चलें, उस देश के तिलहन किसानों की फसल न बिके और बिके भी तो एमएसपी से कम भुगतान करने की स्थिति हो। इस भारी विसंगति को समझना मुश्किल है। अगर खाद्य तेलों की महंगाई को काबू में रखना ही मकसद है तो इसे पैकिंग करवा कर राशन की दुकानों पर मंगवाया जा सकता है जहां से इस खाद्य तेल को वितरण कर महंगाई को रोकने का रास्ता खुला हुआ है। पहले उत्तर प्रदेश और हरियाणा जैसे कुछ राज्य सरकारों ने इस रास्ते को सफलतापूर्वक अपनाया और कामयाबी हासिल की, उस उपाय पर फिर से विचार किया जाना चाहिये।

सूत्रों ने कहा कि यही हाल सोयाबीन का है जिसके डी-आयल्ड केक (डीओसी) का दाम विदेशों में टूटा पड़ा है। ऐसे में देश की सोयाबीन तेल पेराई मिलों को भारी नुकसान है क्योंकि पेराई के बाद सस्ते आयातित तेल की वजह से देशी तेल खप नहीं रहा और विदेशों में मांग टूटा होने से डीओसी भी नहीं खप रहा। अब ये मिलें जायें तो कहां जायें। सब पर भरोसा छोड़कर सरकार को खुद देश के तेल-तिलहन उद्योग को बचाने के लिए सामने आना होगा।

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 5,840-5,890 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,525-6,800 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,625 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,340-2,640 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 11,425 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,860-1,960 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,860-1,985 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,150 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 9,850 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,450 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,500 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,375 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,650 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,750 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 4,425-4,445 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,235-4,360 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,125 रुपये प्रति क्विंटल।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय


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