नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित जोखिमों के सही आकलन और उन्हें कम करने के लिए उपयुक्त उपाय करने से जुड़ी क्षमताओं के विकास की जरूरत बतायी है।
राव ने यहां नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (एनयूएस) में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन जोखिमों ने वित्तीय प्रणाली पर असर डालने शुरू कर दिया है जिससे आने वाले समय में प्रणालीगत जोखिम पैदा होने की आशंका है।
राव ने कहा कि वास्तविक अर्थव्यवस्था और वित्तीय क्षेत्र की कमजोरियों के साथ जलवायु-विशिष्ट कमजोरियों का पारस्परिक संबंध वित्तीय स्थिरता से जुड़े जोखिम पैदा कर सकता है।
उन्होंने कहा, ‘इस संदर्भ में इन जोखिमों का सही आकलन करने और उपयुक्त अनुकूलन और काबू पाने के उपायों को लागू करने के लिए क्षमताओं का निर्माण करना जरूरी है।’
डिप्टी गवर्नर ने कहा कि पारदर्शिता और क्षमता निर्माण अंतर पैदा करने वाले मुख्य कारक होंगे और इस दिशा में सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा, ‘हमारे सामने एक बड़ी जिम्मेदारी है और मुझे उम्मीद है कि हम साथ मिलकर भविष्य की पीढ़ियों के लिए टिकाऊ वृद्धि और पर्यावरण के लिए एक निश्चित रूपपेखा देने में सक्षम होंगे।’
कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस की नवीनतम रिपोर्ट के मुताबिक, 1940 से शुरू हुए विश्लेषण में वर्ष 2024 सबसे गर्म साल होगा। यह अनुमान लगाया गया कि अक्टूबर 2024 वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे गर्म अक्टूबर होगा, जिसमें औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.65 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा।
डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘दीवार पर लिखी यह इबारत हमें बताती है कि जब तक हम सामूहिक रूप से सख्त कार्रवाई नहीं करते, तब तक भविष्य भयावह होगा।’
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन वित्तीय प्रणाली, अर्थव्यवस्था और समाज के लिए एक बड़ा जोखिम बनने जा रहा है। उन्होंने कहा कि गंभीर विनाशकारी घटनाओं के जोखिम मानवीय अस्तित्व को भी दांव पर लगा सकते हैं।
आरबीआई वित्तीय प्रणाली को प्रभावित करने वाले जलवायु परिवर्तन जोखिमों का आकलन करने और उन्हें कम करने के अपने संकल्प में सक्रिय रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इसने इस दिशा में कई उपाय भी किए हैं।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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