नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) ने रियल्टी कंपनी रहेजा डेवलपर्स के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया है। गुरुग्राम स्थित शिलास परियोजना के फ्लैट आवंटियों की याचिका पर यह निर्देश दिया गया है।
एनसीएलटी ने कहा कि रहेजा डेवलपर्स पर फ्लैट आवंटियों के मामले में ‘कर्ज बकाया’ है और उसने ‘चूक’ की है। आवंटियों ने भुगतान किया था और मकान की डिलिवरी समय पर नहीं हुई थी। इसे कॉरपोरेट ऋण शोधन समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) के लिए भेजा गया है।
एनसीएलटी ने कहा, ‘‘ऋण शोधन अक्षमता और दिवाला संहिता, 2016 की धारा सात के तहत रहेजा डेवलपर्स लि. के खिलाफ सीआईआरपी शुरू करने के लिए आवेदनकर्ताओं की याचिका को स्वीकार किया जाता है।’’
एनसीएलटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रामलिंगम सुधाकर और ए के श्रीवास्तव की पीठ ने मणिंद्र के तिवारी को रहेजा डेवलपर्स के लिए अंतरिम समाधान पेशेवर के रूप में भी नियुक्त किया है।
एनसीएलटी ने कहा कि कंपनी (कॉरपोरेट देनदार) की ओर से, रियल एस्टेट परियोजना के तहत उनसे जुटाई गई राशि को लेकर बकाया ऋण (फ्लैट की डिलीवरी) का भुगतान न करने का मामला चूक है।
इसके अलावा, कब्जा वर्ष 2012-2014 में छह महीने की छूट अवधि के साथ दिया जाना था। हालांकि, इसे आगे बढ़ा दिया गया।
मामला हरियाणा के गुरुग्राम के सेक्टर 109 स्थित रहेजा शिलास परियोजना से जुड़ा है। 40 से अधिक फ्लैट खरीदारों ने रियल्टी कंपनी के खिलाफ 112.90 करोड़ रुपये के चूक का दावा किया है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने अधिकांश मामलों में रहेजा डेवलपर्स द्वारा जारी मांग पत्र के अनुसार कुल बिक्री मूल्य का 95 प्रतिशत से अधिक और अब तक की गई सभी मांगों का 100 प्रतिशत भुगतान कर दिया है।
हालांकि, कंपनी समझौते के अनुसार विस्तारित समयसीमा के भीतर भी फ्लैट देने में पूरी तरह से विफल रही।
रहेजा डेवलपर्स ने इस मामले में कहा कि चार साल से अधिक की देरी अप्रत्याशित घटना के कारण हुई, एक ऐसी स्थिति जो उसके नियंत्रण से परे है और यह समझौते में शामिल था।
कंपनी ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं की संख्या कुल खरीदारों के 10 प्रतिशत से कम है, अत: याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
हालांकि, एनसीएलटी ने कंपनी की दलीलों को खारिज कर दिया।
भाषा रमण अजय
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