नयी दिल्ली, एक अक्टूबर (भाषा) एनसीएलटी के अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रामलिंगम सुधाकर ने मंगलवार को अधिक जनशक्ति की जरूरत पर जोर दिया। दिवाला कानून के तहत मामलों को स्वीकार करने में लंबी देरी को लेकर चिंताओं के बीच उन्होंने यह बात कही।
उन्होंने साथ ही कहा कि सीमाओं के बावजूद यह प्रयास सफल होगा।
राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) को लागू करने वाली एक प्रमुख संस्था है।
सुधाकर ने कहा कि बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान 20-30 खंडों के दस्तावेजों वाली याचिकाएं दायर करते हैं, और उनमें असंख्य समझौते भी होते हैं।
उन्होंने आईबीसी के तहत मामलों को स्वीकार करने में देरी के बारे में कहा, ‘‘इन दस्तावेजों की व्याख्या कानूनी तर्क का विषय है… कृपया यह न सोचें कि एनसीएलटी यह कहकर कोई जादू कर सकता है कि कर्ज और चूक को स्वीकार कर लिया जाए… हम ऐसा नहीं कर सकते।’’
राष्ट्रीय राजधानी में भारतीय दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के आठवें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह में सुधाकर ने कहा कि चाहे जो भी सीमाएं हों, ‘‘हम आपको सफलता दिलाएंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप कोई नया कानून लागू करते हैं, तो क्या मंत्रालय को नए सदस्यों, नए न्यायाधीशों की नियुक्ति नहीं करनी चाहिए?… मैं बार-बार, न केवल मंत्रालय से बल्कि संसद से भी कह रहा हूं कि उन्हें अधिक जनशक्ति मिलनी चाहिए। मैं आपसे एक साधारण बात कह रहा हूं, मुझे लोग दीजिए, मैं आपको परिणाम दूंगा।’’
इस मौके पर भारत के जी-20 शेरपा और नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि आईबीसी की वर्तमान कार्यप्रणाली के बारे में कुछ चिंताएं हैं, जिससे आगे सुधारों की जरूरत का संकेत मिलता है।
भाषा पाण्डेय अजय
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