नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) विदेश व्यापार महानिदेशक (डीजीएफटी) संतोष कुमार सारंगी ने कहा कि भारत को भविष्य में यूरोपीय संघ के कार्बन कर जैसी गैर-शुल्क और एकतरफा शुल्क संबंधी बाधाओं से निपटने के लिए खुद को तैयार करना होगा।
सारंगी ने कहा कि अमेरिका तथा यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे देश ऐसे उपायों के जरिये अपने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ अमेरिका मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम और चिप अधिनियम के जरिये अपने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा है। वहीं यूरोपीय संघ सीबीएएम (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) के जरिये ऐसा करने की कोशिश कर रहा है… वनों की कटाई का विनियमन विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से आने वाले सामानों पर गैर-शुल्क बाधाएं लगाने का एक और तरीका है।’’
सारंगी ने कहा, ‘‘ इसलिए गैर-शुल्क उपायों के साथ-साथ डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) की प्रतिबद्धताओं का स्पष्ट उल्लंघन करने वाले संभावित शुल्क उपायों का संयोजन कुछ ऐसा है, जिससे निपटने के लिए भारत को भविष्य में तैयार रहना होगा।’’
विदेश व्यापार महानिदेशक ने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता सम्मेलन में यह बात कही।
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उच्च शुल्क लगाने की धमकी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इस पर स्थिति के अनुरूप काम करना होगा।
डीजीएफटी ने कहा कि ट्रंप जो एक या दो वाक्य कह रहे हैं, उसे समझना ‘‘ बेहद कठिन’’ है।
उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन उन्होंने जो कहा, उससे मैंने उससे यह समझा है कि उनका मुख्य आशय यह है कि भविष्य में पारस्परिकता मायने रखेगी।’’
उन्होंने कहा कि ऐसे उपाय विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन होंगे, लेकिन पिछले ट्रंप प्रशासन ने राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर कुछ उत्पादों पर उच्च शुल्क लगाया है।
सारंगी ने कहा, ‘‘ इसलिए हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा। ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां हमारे शुल्क अधिक हैं, लेकिन हम जरूरी नहीं, कि अमेरिका को निर्यात करें।’’
उन्होंने कहा कि मिसाल के तौर पर कृषि क्षेत्र में भारत के शुल्क बहुत अधिक हैं, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि वह अमेरिकी बाजार में निर्यात करें।
सारंगी ने कहा, ‘‘ यदि अमेरिका उस पर शुल्क लगाता है, तो इससे हमें कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा, लेकिन कुछ वस्तुएं ऐसी होंगी जिन पर यह पारस्परिक शुल्क हमें प्रभावित कर सकता है।’’
उन्होंने कहा कि प्रभाव का अनुमान लगाने से पहले सभी पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है।
भाषा निहारिका मनीषा
मनीषा