नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) केंद्रीय रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बुधवार को कहा कि इस साल वैश्विक चुनौतियों के कारण उत्पन्न बाधाओं ने डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) सहित उर्वरक आपूर्ति व्यवस्था को प्रभावित किया, लेकिन सरकार ने किसानों को समय पर यह पोषक तत्व उपलब्ध कराने की चुनौतियों को दूर करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
भारतीय उर्वरक संघ के वार्षिक सेमिनार को संबोधित करते हुए, रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा कि भारत का कृषि क्षेत्र कुछ महत्वपूर्ण उर्वरकों जैसे डीएपी (डाइ-अमोनियम फॉस्फेट), एमओपी (म्यूरिएट ऑफ पोटाश), एनपीके और आंशिक रूप से यूरिया के आयात पर काफी हद तक निर्भर करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘और इस साल, कुछ वैश्विक संकटों के कारण आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई और इसका देश में उर्वरकों, विशेष रूप से डीएपी की उपलब्धता पर असर पड़ा। लेकिन विभाग (उर्वरक) ने समय पर कदम उठाया।’’
मंत्री ने कहा, ‘‘आपूर्तिकर्ता देशों के साथ दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से उर्वरकों की खरीद के मामले में हमने जो सक्रिय कदम उठाए हैं, उसके साथ ही सरकार ने वैकल्पिक उर्वरकों के साथ-साथ नैनो-डीएपी और नैनो-यूरिया जैसे स्वदेशी नैनो-उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देने पर भी ध्यान दिया है।’’
पटेल ने कहा कि इसके अलावा, मांग वाले क्षेत्रों में उर्वरकों की तेजी से डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों, बंदरगाह प्राधिकरणों, रेल मंत्रालय और यहां तक कि उर्वरक कंपनियों के साथ नियमित समन्वय किया गया।
पटेल ने कहा कि सरकार ने मौजूदा रबी (सर्दियों में बोई जाने वाली) मौसम 2024-25 की चुनौतियों का समाधान करने के लिए दो बड़े फैसले लिए हैं।
मंत्री ने कहा कि पहला फैसला डीएपी पर 3,500 रुपये प्रति टन का विशेष पैकेज देने के बारे में है। इसकी लागत केंद्रीय खजाने पर 2,625 करोड़ रुपये होगी। इसका उद्देश्य वैश्विक मूल्य अस्थिरता के बीच डीएपी आयात करने के लिए कंपनियों के लिए मूल्य को टिकाऊ बनाना है।
पटेल ने कहा कि दूसरे, अंतरराष्ट्रीय बाजार में पीएंडके उर्वरकों की कीमतों में कुल वृद्धि बाजार की कीमतों से जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा, ‘‘अगर वैश्विक बाजार में डीएपी सहित पीएंडके उर्वरकों की खरीद कीमत बढ़ती है, तो कंपनियों की खरीद क्षमता प्रभावित नहीं होगी।’’
भारत घरेलू मांग को पूरा करने के लिए डीएपी आयात पर निर्भर है। वर्तमान में, डीएपी की लगभग 60 प्रतिशत आवश्यकता आयात के माध्यम से पूरी की जाती है। उद्योग के अनुमान के अनुसार, देश को सालाना एक करोड़ टन डीएपी की आवश्यकता होती है।
भाषा राजेश राजेश रमण
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