नयी दिल्ली : Edible oil became cheaper : आयातित सूरजमुखी और सोयाबीन तेल की भरमार होने के बीच बुधवार को एक बार फिर तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट बनी रही। देशी तेल-तिलहनों के खपने की बढ़ती चिंताओं के बीच दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में सरसों तेल-तिलहन, सोयाबीन तेल, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल कीमतों में गिरावट आई जबकि सामान्य कारोबार के बीच सोयाबीन तिलहन, मूंगफली तेल-तिलहन के भाव पूर्वस्तर पर बने रहे।
बाजार के जानकार सूत्रों ने आरोप लगाया कि देश के कुछ प्रमुख तेल संगठनों का मौजूदा तेल कारोबार के प्रति जो रुख या रवैया है वह चिंताजनक है। कम से कम उन्हें तेल बाजार में सस्ते आयातित सॉफ्ट ऑयल की भरमार होने तथा इसके आगे देशी तेल-तिलहनों के नहीं खपने की स्थिति पर सही जानकारियां सरकार को देनी चाहिये।
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सूत्रों ने कहा कि लगभग डेढ़ साल पहले जब सूरजमुखी तेल का भाव 1,400 डॉलर प्रति टन हुआ करता था और उसपर 38.5 प्रतिशत का आयात शुल्क लागू था लेकिन मौजूदा समय में सूरजमुखी तेल का भाव जब 1,025 से 1,030 डॉलर प्रति टन रह गया है तो आयात शुल्क शून्य (कोटा प्रणाली के तहत) है। यह कैसी बिडंबना है ? हमारे देशी तेल की लागत 120-125 रुपये लीटर पड़ेगी तो यह 87 रुपये लीटर वाले सूरजमुखी के आगे कैसे खपेगा ? कम से कम देश के प्रमुख तेल संगठनों को इस स्थिति के दुष्परिणामों के बारे में सरकार को आगाह कर जल्द से जल्द तत्काल प्रभाव से ऐसे खाद्य तेलों पर आयात शुल्क अधिक से अधिक करने को कहना चाहिये। अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर होने का ख्याल छोड़ देना ही बेहतर होगा। तिलहन किसान और देश का तेल उद्योग किस गंभीर दौर से गुजर रहा है, उसके बारे में चुप्पी चिंताजनक है।
Edible oil became cheaper : सूत्रों ने कहा कि एक और विरोधाभास यह दिखता है कि आयातित खाद्य तेलों के भाव जमीन पर हैं लेकिन बाजार में इन्हीं तेलों को उपभोक्ता लगभग दोगुने दाम पर खरीदने को बाध्य हो रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि सरकार यदि इन आयातित तेलों पर आयात शुल्क लगा दे तो देश को पशुचारे के लिए खल भी मिलेगा और देशी तेल-तिलहन भी बाजार में खप जायेंगे जिससे देश की तेल मिलें चलेगी और किसान भी बर्बाद होने से बच जायेंगे। सूत्रों ने कहा कि यह सारा विरोधाभास उस देश में हो रहा है जो अपनी जरूरतों के लिए लगभग 60 प्रतिशत के बराबर आयात पर निर्भर है।
उन्होंने कहा कि वायदा कारोबार में आज एक बार फिर बिनौला खल के अप्रैल अनुबंध के भाव में 1.22 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। बाजार में बिनौला की आवक भी पहले के डेढ़ लाख गांठ से घटकर लगभग 78,000 गांठ रह गई। सूत्रों ने कहा कि स्थिति एक बार हाथ से निकल जाये तो उसे संभालना बहुत मुश्किल होगा। इसका सीधा उदाहरण सूरजमुख्री से दिया जा सकता है। सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) काफी बढ़ा दिया मगर इसका उत्पादन नहीं बढ़ पा रहा है। मौजूदा हाल बना रहा तो आगे बाकी तेल-तिलहनों के मामले में भी समान स्थिति देखने को मिल सकती है।
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