एफएसआईआई ने जीएम सरसों पर उच्चतम न्यायालय के विभाजित फैसले का स्वागत किया

एफएसआईआई ने जीएम सरसों पर उच्चतम न्यायालय के विभाजित फैसले का स्वागत किया

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  • Publish Date - July 25, 2024 / 07:18 PM IST,
    Updated On - July 25, 2024 / 07:18 PM IST

नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) बीज उद्योग निकाय एफएसआईआई ने बृहस्पतिवार को आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों की फसल को पर्यावरणीय रूप से जारी करने के लिए सशर्त मंजूरी देने वाले केंद्र के 2022 के फैसले की वैधता पर उच्चतम न्यायालय के विभाजित फैसले का स्वागत किया।

शीर्ष अदालत ने 23 जुलाई को सर्वसम्मति से निर्देश दिया कि केंद्र को देश में अनुसंधान, खेती, व्यापार और वाणिज्य के लिए जीएम फसलों के संबंध में एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने की जरूरत है।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने दोनों फैसलों की वैधता पर अलग-अलग राय दी और मामले को उचित पीठ द्वारा निर्णय के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एफएसआईआई) के चेयरमैन अजय राणा ने कहा, ‘‘हमें खुशी है कि माननीय न्यायमूर्ति करोल ने नियामकीय संस्था जीईएसी के कामकाज का समर्थन किया है और पाया है कि यह नियमों के अनुसार काम कर रही है। उद्योग ने हमेशा यह माना है कि हमें अपने नियामकों पर भरोसा करना चाहिए और उनके निर्णयों का समर्थन करना चाहिए। जीईएसी एक वैज्ञानिक संस्था है और उनके आकलन उच्च गुणवत्ता वाले हैं।’’

राणा ने कहा, ‘‘जीएमओ का कड़ाई से परीक्षण किया जाता है और देश के नियामकीय निकाय और अनुसंधान संस्थान जैव प्रौद्योगिकी फसलों की सुरक्षा और दक्षता के मूल्यांकन के लिए उच्चतम अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और प्रथाओं का पालन करते हैं।’’

उन्होंने बयान में कहा कि जीएम सरसों, तिलहन में ‘आत्मनिर्भरता’ सुनिश्चित कर सकती है, जो भारत सरकार का एक प्रमुख केंद्र बिंदु है और उत्पादकता में वृद्धि के माध्यम से किसानों की समृद्धि को भी बढ़ावा दे सकती है।

एफएसआईआई के अनुसार, जीईएसी की अनुमति को रद्द करने के लिए विवाद का एक महत्वपूर्ण बिंदु आवेदन में विदेशी आंकड़ों का उपयोग है।

आलोचकों का तर्क है कि जीईएसी ने भारत में जीएम सरसों के प्रभाव और इसके संभावित पर्यावरणीय परिणामों पर स्वदेशी अध्ययनों पर भरोसा किए बिना इस विशेषता को मंजूरी दे दी। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय एजेंसियां ​​सभी जैव सुरक्षा अध्ययनों का अभिन्न अंग रही हैं।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय