मुंबई, 17 जनवरी (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के विदेशी मुद्रा विनिमय में हस्तक्षेप ने पूंजी प्रवाह उतार-चढ़ाव का प्रभावी ढंग से मुकाबला किया। शुक्रवार को जारी केंद्रीय बैंक के बुलेटिन में प्रकाशित अध्ययन में यह कहा गया।
अध्ययन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा किए गए विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप के प्रभाव की जांच करता है। अध्ययन में कहा गया है कि वैश्विक प्रभाव से प्रेरित ‘पोर्टफोलियो’ निवेश प्रवाह में उतार-चढ़ाव, भारत में विनिमय दर की अस्थिरता का मुख्य कारण है।
माइकल पात्रा के नेतृत्व में एक टीम द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया, “विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप, हाजिर और अग्रिम दोनों, खरीद और बिक्री के साथ पूंजी प्रवाह की अस्थिरता का प्रभावी ढंग से मुकाबला करते हैं।” डिप्टी गवर्नर पात्रा का विस्तारित कार्यकाल इस महीने समाप्त हो गया।
केंद्रीय बैंक ने कहा कि बुलेटिन में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और भारतीय रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
पिछले कुछ वर्षों में विदेशी मुद्रा बाजार का आकार काफी बढ़ गया है।
अध्ययन में कहा गया है कि विदेशी मुद्रा बाजार में आरबीआई का हस्तक्षेप दोतरफा रहा है। इसका उद्देश्य अत्यधिक अस्थिरता को नियंत्रित करना है, चाहे उसका स्रोत कुछ भी हो।
लेख में कहा गया, “यह देखा गया है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) में अचानक और अत्यधिक उतार-चढ़ाव के कारण मांग और आपूर्ति की स्थिति में अचानक उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है। एफपीआई प्रवाह और आरबीआई के हस्तक्षेप के बीच मजबूत सह-गतिविधि से इसकी पुष्टि होती है।”
भाषा अनुराग रमण
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