नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) यूरोपीय संघ (ईयू) की कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली के तहत भारत से ईयू को निर्यात की जाने वाली ऊर्जा-गहन वस्तुओं पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाया जाएगा। एक रिपोर्ट में बुधवार को यह जानकारी दी गई।
स्वतंत्र शोध संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक रिपोर्ट के अनुसार यह कर का बोझ भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.05 प्रतिशत होगा।
यह निष्कर्ष पिछले तीन साल (2021-22, 2022-23 और 2023-24) के आंकड़ों पर आधारित है।
यूरोपीय संघ की कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली (सीबीएएम) भारत और चीन जैसे देशों से आयातित लोहा, इस्पात, सीमेंट, उर्वरक और एल्युमीनियम जैसे ऊर्जा-गहन उत्पादों पर ईयू का प्रस्तावित कर है। कर इन वस्तुओं के उत्पादन के दौरान होने वाले कार्बन उत्सर्जन पर आधारित है।
यूरोपीय संघ का तर्क है कि यह प्रणाली घरेलू स्तर पर विनिर्मित वस्तुओं के लिए एक समान अवसर प्रदान करती है। इसके तहत सख्त पर्यावरण मानकों का पालन करना होगा। फलत: यह आयात से उत्सर्जन को कम करने में मदद करता है।
लेकिन विशेष रूप से विकासशील देश इस बात से चिंतित हैं कि इससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान होगा और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार करना बहुत महंगा हो जाएगा।
इस कदम ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलनों सहित बहुपक्षीय मंचों पर भी बहस छेड़ दी है। विकासशील देशों का तर्क है कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन नियमों के तहत देश यह निर्देश नहीं दे सकते हैं कि दूसरों को उत्सर्जन कैसे कम करना चाहिए।
सीएसई के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाली अवंतिका गोस्वामी ने कहा कि यूरोपीय संघ को सीबीएएम के दायरे में आने वाली वस्तुओं का भारत से निर्यात 2022-23 में ईयू को होने वाले कुल माल निर्यात का 9.91 प्रतिशत था।
उन्होंने कहा कि भारत का 26 प्रतिशत एल्युमीनियम और 28 प्रतिशत लोहा तथा इस्पात निर्यात 2022-23 में यूरोपीय संघ को किया गया था।
दुनियाभर में निर्यात किए जाने वाले भारत के कुल माल में से यूरोपीय संघ को सीबीएएम के दायरे में आने वाले सामान का निर्यात केवल 1.64 प्रतिशत है।
भाषा रमण अजय
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