(बरुन झा)
दावोस, 23 जनवरी (भाषा) दुनिया के विभिन्न देशों में ‘एकला चलो’ की बढ़ती प्रवृत्ति वैश्विक स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 5.7 लाख करोड़ डॉलर तक की चोट पहुंचा सकती है जो कि 2008 के वित्तीय संकट या कोविड-19 महामारी से भी बड़ा झटका होगा। एक रिपोर्ट में यह आकलन पेश किया गया।
इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि इस रुख के सबसे खराब दौर में भारत और कुछ अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं को सबसे बड़ा बोझ उठाना पड़ सकता है।
विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की यहां चल रही सालाना बैठक के दौरान बृहस्पतिवार को यह रिपोर्ट पेश की गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में प्रतिबंधों, औद्योगिक नीतियों और अन्य आर्थिक उपायों के जरिये देश अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वैश्विक वित्तीय और व्यापारिक प्रणालियों का तेजी से उपयोग कर रहे हैं।
‘वैश्विक वित्तीय प्रणाली में अलगाव से सामना’ रिपोर्ट कहती है कि सरकारों की नीतियों के चलते होने वाले इस बिखराव से वैश्विक अर्थव्यवस्था को 60,000 करोड़ डॉलर से लेकर 5.7 लाख करोड़ डॉलर तक का नुकसान हो सकता है जो कि पूरी दुनिया की जीडीपी का पांच प्रतिशत है।
डब्ल्यूईएफ के मुताबिक, व्यापार एवं सीमापार पूंजी प्रवाह में कमी आने के अलावा आर्थिक दक्षता घटने के कारण वैश्विक जीडीपी को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा।
इसने कहा कि अगर वैश्विक अलगाव की स्थिति अधिक बिगड़ती है तो फिर वैश्विक मुद्रास्फीति को भी पांच प्रतिशत से अधिक बढ़ा सकता है।
ओलिवर वायमन के सहयोग से तैयार रिपोर्ट कहती है कि बढ़ते भू-आर्थिक अलगाव का आर्थिक प्रभाव 2008 के वित्तीय संकट या कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुए गतिरोधों को भी पार कर सकता है।
इसके मुताबिक, देश अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए वित्तीय प्रणाली का तेजी से उपयोग कर रहे हैं। वर्ष 2017 के बाद से आर्थिक प्रतिबंधों में 370 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है और सब्सिडी, औद्योगिक नीतियों एवं समानांतर वित्तीय संरचनाओं के निर्माण से जुड़ी चर्चाओं से भी इसका सबूत मिलता है।
इसने चेतावनी दी है कि सबसे खराब स्थिति में पूर्वी और पश्चिमी समूहों के बीच पूर्ण आर्थिक अलगाव होगा और इनसे असंबद्ध देशों को अपने सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझेदार के साथ ही कारोबार करना पड़ेगा। इन देशों में जीडीपी वृद्धि में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी जा सकती है जो कि वैश्विक औसत का लगभग दोगुना होगा।
डब्ल्यूईएफ रिपोर्ट कहती है कि भारत, ब्राजील, तुर्की और लातिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इसका सबसे अधिक बोझ उठाना पड़ेगा।
विश्व आर्थिक मंच के निजी बाजार प्रमुख मैट स्ट्रेहन ने कहा, ‘अलगाव न केवल मुद्रास्फीति को बढ़ाता है, बल्कि आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। खासकर अपने सतत विकास के लिए एकीकृत वित्तीय प्रणाली पर निर्भर उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में इसका असर देखने को मिलता है।’
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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