नई दिल्ली। विदेशी बाजारों में सुधार और मंडियों में सरसों और कपास की आवक घटने के बीच मंगलवार को देश के तेल तिलहन बाजारों में सरसों और बिनौलतेल के दाम में सुधार आया। वहीं, कमजोर मांग के बीच मूंगफली, सोयाबीन तेल तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तेल के दाम पूर्व स्तर पर बंद हुए।
बाजार सूत्रों ने कहा कि मंडियों में सरसों की आवक कल के सात लाख बोरी से घटकर आज लगभग साढ़े छह लाख बोरी रह गई। दूसरी ओर कपास की भी आवक लगभग 39-40 हजार गांठ से घटकर 26-28 हजार गांठें रह गई। कपास से जिनिंग मिल कपास बीज को निकालते हैं जिससे बिनौला तेल निकलता है। इन दोनों फसलों की आवक घटने के कारण इन तेलों के दाम सुधार के साथ बंद हुए। उन्होंने कहा कि तेल की कमी को तो आयात से पूरा किया जा सकता है पर हम डी-आयल्ड केक (डीओसी) की तरह खल का आयात कहां से करेंगे ?
सूत्रों ने तेल उद्योग की मौजूदा खस्ता हालात पर चिंता जताते हुए कहा कि पहले कुछ विशेषज्ञ खाद्यतेलों की ‘सप्लाई लाईन’ दुरुस्त होने, आयात बढ़ने आदि का दावा कर रहे थे, लेकिन मौजूदा स्थिति इसके उलट है। उन्होंने कहा कि तेल उद्योग, तिलहन किसान, उपभोक्ता इन सबकी जो हालात है, उस पर कौन ध्यान देगा और उचित कदम उठाने का प्रयास करेगा ? आज से दो महीने बाद अगर आयातित खाद्यतेलों पर आयात शुल्क बढ़ा भी दिया जाये तो उससे देशी मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी, सरसों, बिनौला उगाने वाले किसानों का भरोसा बहाल करना कठिन होगा। किसान सीधा सीधा मोटे अनाज जैसे किसी फसल की ओर अपना रुख करेंगे जिसका मंडी में खपने की गारंटी हो और किसानों को अच्छा लाभ मिल सके।
सूत्रों ने कहा कि एक विरोधाभास यह भी देखने को मिल रहा है कि देश में जरुरत के लगभग 55 प्रतिशत खाद्यतेलों का आयात होता है। देश में लगभग आधी संख्या में पेराई मिलें बंद हो चुकी हैं। तिलहन उत्पादन भी पिछले साल के अपेक्षा कम है लेकिन इन सबके बावजूद कोई खाद्यतेल पूरी तरह बिक नहीं रहा है। खाद्यतेलों के आयात के लिए विदेशीमुद्रा खर्च की जा रही है तो इससे महंगाई बढ़ने की जमीन नहीं तैयार होती ? थोक दाम भले कम हुए हों, पर खुदरा दाम ऊंचा क्यों बना हुआ है, क्या इससे भी महंगाई नहीं बढ़ती ?
सूत्रों ने कहा कि सरकार को एक पहलू पर ध्यान देना होगा कि बाकी उत्पादों के दाम पहले के मुकाबले काफी बढ़े हैं उसकी तुलना में खद्यतेलों के दाम नहीं के बराबर बढ़े हैं जो तेल तिलहन उत्पादन बढ़ाने की राह में एक बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1971-72 में मूंगफली और सोयाबीन जैसे खाद्यतेलों का दाम 3-3.25 रुपये लीटर हुआ करता था और उस वक्त दूध का सरकारी दाम 58 पैसे लीटर और प्राइवेट में दाम 65-70 पैसे लीटर हुआ करता था। लेकिन मौजूदा समय में दूध का दाम लगभग 60-70 रुपये लीटर है और खाद्यतेलों (सूरजमुखी, सोयाबीन) के थोक दाम 82-85 रुपये लीटर है।
सूत्रों के अनुसार कुछ निहित स्वार्थ के लोग वर्षो से खाद्यतेल को ‘विलेन’ बना रखे हैं जिसके दाम बढ़े तो हाय तौबा मच जाती है जबकि दूध के दाम हाल के दिनों में कई बार बढ़े तब किसी ने मुंह नहीं खोला। संभवत: कुछ लोग बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हितों को साधने का एक लंबे समय से अभियान चला रहे हैं जो किसी सूरत में देश को खाद्यतेल तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर होता नहीं देखना चाहते। इससे उनको दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला बाजार खोने का खतरा हो सकता है। तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे: