नयी दिल्ली, 23 जनवरी (भाषा) भारत में नियोक्ता जनवरी-मार्च तिमाही के दौरान भर्ती गतिविधियों में सतर्क रुख अपना सकते हैं। इसका कारण प्रतिभा की कमी के कारण भर्ती प्रयासों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह कहा गया है।
मैनपावरग्रुप टैलेंट शॉर्टेज सर्वे ने देश के चार क्षेत्रों के 3,000 से अधिक नियोक्ताओं से आंकड़ा जुटाया है।
वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक भर्ती मांग (53 प्रतिशत) के बावजूद भारत में 80 प्रतिशत नियोक्ता सही प्रतिभा खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह रुझान 2022 से है और यह वैश्विक औसत 74 प्रतिशत से अधिक है जो 2024 तक अपरिवर्तित रहा है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोई भी क्षेत्र अभाव से अछूता नहीं है, तथा प्रतिभा की कमी वैश्विक श्रम बाजार में छाई हुई है।
मैनपावरग्रुप इंडिया और पश्चिम एशिया के प्रबंध निदेशक संदीप गुलाटी ने कहा, “प्रतिभा की निरंतर कमी सामूहिक कार्रवाई की तत्काल जरूरत को रेखांकित करती है। इस कमी को 2025 तक भरने के लिए 80 प्रतिशत संगठन संघर्ष कर रहे हैं।”
सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), ऊर्जा और उपयोगिता जैसे उद्योग सबसे अधिक दबाव महसूस कर रहे हैं, क्योंकि डेटा और आईटी जैसे विशेष कौशल की मांग लगातार बढ़ रही है।
प्रतिभाओं को खोजने, आकर्षित करने और भर्ती करने के लिए, नियोक्ता वर्तमान कर्मचारियों (39 प्रतिशत) को अधिक कौशल विकास और पुनर्कौशल अवसर प्रदान कर रहे हैं, क्योंकि उनका लक्ष्य आंतरिक गतिशीलता को बढ़ावा देकर भर्ती लागत को कम करना है।
अस्थायी भर्ती बढ़ाने के पक्ष में केवल 22 प्रतिशत नियोक्ता हैं, क्योंकि वे नई प्रतिभाओं को लक्षित करने (38 प्रतिशत) और वेतन बढ़ाने (29 प्रतिशत) को प्राथमिकता देते हैं। प्रतिभा की कमी सबसे अधिक दक्षिण भारत (85 प्रतिशत) में है।
कृत्रिम मेधा (एआई) के बारे में पूछे जाने पर नियोक्ताओं ने कहा कि कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना, योग्य प्रतिभाओं को खोजना, तथा अधिक लचीलापन (हाइब्रिड या घर से) प्रदान करना, प्रौद्योगिकी का पूर्ण लाभ उठाने में प्रमुख चुनौतियां हैं।
भाषा अनुराग रमण
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