नयी दिल्ली, आठ दिसंबर (भाषा) उद्योग मंडल सीआईआई ने सरकार को 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत और 2025-26 के लिए 4.5 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य पर टिके रहने का सुझाव दिया है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने आगाह किया है कि इनसे परे ‘अत्यधिक आक्रामक लक्ष्य’ भारत की आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने आगामी केंद्रीय बजट के लिए सुझावों पर विस्तार से बताते हुए कहा, “धीमी वैश्विक अर्थव्यवस्था के बीच भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। व्यापक आर्थिक स्थिरता के लिए विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन इस वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण रहा है।’
सीआईआई ने केंद्रीय बजट 2024-25 में राजकोषीय घाटे को ऐसे स्तर पर रखने की घोषणा पर भी प्रकाश डाला, जो ऋण-जीडीपी अनुपात को कम करने में मदद करता है।
सीआईआई ने सुझाव दिया कि इसकी तैयारी के लिए, आगामी बजट में केंद्र सरकार के कर्ज को मध्यम अवधि (2030-31 तक) में जीडीपी के 50 प्रतिशत से नीचे लाने और लंबी अवधि में जीडीपी के 40 प्रतिशत से नीचे लाने के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है।
सीआईआई ने कहा कि इस तरह के स्पष्ट लक्ष्य का भारत की संप्रभु कर्ज रेटिंग और अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
उद्योग निकाय ने कहा, “दीर्घकालिक राजकोषीय योजना में सहायता के लिए, सरकार को राजकोषीय स्थिरता रिपोर्टिंग स्थापित करने पर विचार करना चाहिए। इसमें विभिन्न तनाव परिदृश्यों के तहत राजकोषीय जोखिमों और राजकोषीय स्थिरता के दृष्टिकोण पर वार्षिक रिपोर्ट जारी करना शामिल हो सकता है। यह अभ्यास संभावित आर्थिक प्रतिकूलताओं या अनुकूल परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने और राजकोषीय पथ पर उनके प्रभाव का आकलन करने में मदद करेगा।”
रिपोर्टिंग में राजकोषीय स्थिति का दीर्घकालिक (10-25 वर्ष) पूर्वानुमान भी शामिल किया जा सकता है, जिसमें आर्थिक वृद्धि, प्रौद्योगिकी परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय परिवर्तन आदि जैसे कारकों के प्रभाव को भी शामिल किया जा सकता है। कई देशों ने इस सक्रियता को अपनाया है, जिसकी अवधि ब्राजील में 10 वर्ष से लेकर ब्रिटेन में 50 वर्ष तक है।
भाषा अनुराग पाण्डेय
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