नयी दिल्ली, आठ जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के उस आदेश को खारिज कर दिया है जिसमें दूरसंचार नियामक ट्राई को फोन सेवा प्रदाता से जानकारी मांगने और आरटीआई अधिनियम के तहत ग्राहक को देने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति संजीव नरुला ने अपने फैसले में कहा कि दूरसंचार सेवा प्रदाताओं से सूचना मांगने वाला ट्राई अपने नियामकीय दायित्वों को पूरा करने तक ही सीमित है और ‘सूचना का अधिकार’ (आरटीआई) कानून के तहत केवल प्रसार के लिए व्यक्तिगत शिकायतों को संबोधित करने या ग्राहक-विशिष्ट सूचना तक पहुंचने तक सीमित नहीं है।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि ग्राहक को उपभोक्ता विवाद निवारण मंच के समक्ष निवारण की मांग करने के लिए कहने का भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीआईसी) का आकलन गलत था और यह इसके वैधानिक अधिकार क्षेत्र से परे था।
न्यायमूर्ति नरुला ने कहा, ‘‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत ट्राई कोई सेवा प्रदाता या उपभोक्ता नहीं है और उसके कार्यों या निष्क्रियताओं के खिलाफ किसी भी शिकायत को ट्राई अधिनियम के तहत स्थापित टीडीसैट के समक्ष रखा जाना चाहिए। सीआईसी ने आरटीआई अधिनियम के दायरे से असंबद्ध अवलोकन और निर्देश जारी करके दूरसंचार विवादों के समाधान को नियंत्रित करने वाले विधायी ढांचे को कमजोर किया है।’’
न्यायालय ने कहा कि सीआईसी ने ट्राई को वोडाफोन से जानकारी मांगने और आरटीआई अधिनियम के तहत प्रतिवादी (उपभोक्ता) को सूचना देने का निर्देश देकर गलती की। ऐसी स्थिति में सीआईसी के आदेश के खिलाफ ट्राई की याचिका स्वीकार की जाती है।
उपभोक्ता ने अपना मोबाइल नंबर ‘कॉल न करें’ खंड में ‘पूरी तरह ब्लॉक करवा दिया था। लेकिन वोडाफोन ने कथित तौर पर उसकी सहमति के बगैर ‘परेशान न करें’ दर्जे को बदल दिया था। उसकी शिकायतों पर कार्रवाई न होने से दुखी होकर उपभोक्ता ने आरटीआई अधिनियम के तहत मदद मांगी थी।
उसकी अपील पर सीआईसी ने जून, 2024 में ट्राई को वोडाफोन से व्यक्ति की शिकायतों पर जानकारी मांगने और आरटीआई अधिनियम के तहत उसे जानकारी मुहैया कराने का निर्देश दिया था।
भाषा प्रेम प्रेम अजय
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