मुंबई, तीन दिसंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर स्वामीनाथन जे ने कहा है कि बैंकों को जिलों में विभिन्न खंडों के लिए वित्त जरूरतें पूरी करने के लिए ऋण योजना तैयार करने के दौरान जमीनी आंकड़ों पर आधारित नजरिया अपनाना चाहिए।
आरबीआई की एक विज्ञप्ति के मुताबिक, पिछले सप्ताह महाराष्ट्र के अग्रणी बैंक जिला प्रबंधकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए स्वामीनाथन ने कहा कि डिजाइन और विकास का पहलू ऋण योजनाओं से शुरू होता है।
अग्रणी बैंक योजना (एलबीएस) की अवधारणा 1969 में वित्तीय संस्थानों और सरकार के प्रयासों के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए लाई गई थी।
इस योजना के तहत एक जिले का दायित्व एक बैंक को सौंपा जाता है। इस योजना का उद्देश्य ‘सेवा क्षेत्र’ के नजरिये से ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त बैंकिंग और ऋण प्रदान करना है।
आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘ऋण योजना के तहत स्थानीय केंद्रों की जरूरतों को बताने के लिए जमीनी आंकड़ों पर आधारित नजरिया अपनाया जाना चाहिए और फिर उन जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त योजना तैयार करनी चाहिए।’
उन्होंने कहा कि लक्ष्य को आकांक्षापूर्ण होने के साथ जमीन पर उतारने और स्थानीय ऋण जरूरतों को प्रतिबिंबित करने के लिए पर्याप्त यथार्थवादी होना चाहिए।
स्वामीनाथन ने कहा कि डेटा और विश्लेषणात्मक मॉडल की बहुतायत के इस दौर में ऋण योजना के डिजाइन के लिए डेटा-आधारित अनुभवजन्य दृष्टिकोण आवश्यक है। ऐसी तकनीकों से हस्तक्षेप के लिए लक्षित रणनीतियों के विकास में आसानी रहती है।
स्वामीनाथन ने क्षेत्र सर्वेक्षण को डेटा संग्रह का प्राथमिक चरण बताते हुए कहा कि यह उन क्षेत्रों की पहचान करने में भी सक्षम बनाता है जिन्हें ऋण प्रवाह की अधिक जरूरत है और जिनके पास ऋण सेवा की बेहतर क्षमता है।
उन्होंने कहा कि लगभग आधे स्वयं-सहायता समूह अभी भी वित्तीय संस्थानों के ऋण से नहीं जुड़े हैं और छोटे एवं सीमांत किसानों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी बैंक वित्त पोषण तक पहुंच से वंचित है। इसके अलावा महिलाओं की अगुवाई वाले एमएसएमई भी कर्ज सुविधाओं से वंचित हैं।
भाषा प्रेम प्रेम रमण
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