कर्ज मांग को पूरा करने के लिए बैंकों के पास जमा की कमीः रिपोर्ट |

कर्ज मांग को पूरा करने के लिए बैंकों के पास जमा की कमीः रिपोर्ट

कर्ज मांग को पूरा करने के लिए बैंकों के पास जमा की कमीः रिपोर्ट

:   Modified Date:  September 27, 2024 / 08:40 PM IST, Published Date : September 27, 2024/8:40 pm IST

नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) पिछले दो वित्त वर्षों में कर्ज की बढ़ती मांग को पूरा करने में बैंकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी है। बैंकों के पास बड़ी जमाराशि न होने से ऐसी स्थिति पैदा हुई। एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।

साख निर्धारण से जुड़ी इंफोमेरिक्स रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में कहा कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) ने वित्त वर्ष 2023-24 में 1,64,98,006 करोड़ रुपये का कर्ज बांटा जो अब तक का उच्चतम बकाया ऋण है।

हालांकि प्रतिशत के लिहाज से जमा के अनुपात में ऋण की वृद्धि दर 75.8 प्रतिशत से बढ़कर 80.3 प्रतिशत हो गई।

भारतीय रिजर्व बैंक का अप्रैल 2024 बुलेटिन कहता है कि मार्च 2024 में वृद्धिशील ऋण-जमा अनुपात (आईसीडीआर) लगभग 95.94 प्रतिशत रहा जबकि आठ मार्च को यह 92.95 प्रतिशत था।

रिपोर्ट के मुताबिक, यह देखा जा सकता है कि तिमाही आधार पर भी जमा की वृद्धि की तुलना में अनुसूचित बैंकों के ऋण में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।

वित्त वर्ष 2018-19 से वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान बैंकों के ऋण की वृद्धि जमा की वृद्धि से आगे निकल गई।

इसमें कहा गया है कि असंगठित क्षेत्र, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में वैकल्पिक निवेश और पर्याप्त नकदी आधार ने जमा संग्रह की रफ्तार सुस्त कर दी।

रिपोर्ट के मुताबिक, 30 वर्ष से कम उम्र के व्यक्तिगत निवेशकों का अनुपात लगातार बढ़ा है। पंजीकृत निवेशक आधार में युवाओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2018-19 के 22.6 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2024-25 (31 जुलाई, 2024 तक) तक 39.9 प्रतिशत हो गई है। यह प्रवृत्ति युवा निवेशकों के बीच इक्विटी बाजारों को लेकर बढ़ती दिलचस्पी को दर्शाती है।

रिपोर्ट कहती है कि इसी अवधि में 30-39 वर्ष की आयु के निवेशकों की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत स्थिर रही जबकि 40 से अधिक आयु वालों की हिस्सेदारी घटी है।

इस रिपोर्ट के नतीजों पर ट्रू नॉर्थ फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य कार्यपालक अधिकारी रोचक बख्शी ने कहा कि जमा अनुपात बढ़ाने के लिए बैंकों और सरकार को संयुक्त प्रयास करने चाहिए।

उन्होंने कहा कि बैंकों को थोक कॉरपोरेट जमाओं का पीछा करने के बजाय आम लोगों से छोटी जमाएं जुटाने की पुरानी प्रवृत्ति पर लौटने की जरूरत है। उन्होंने सरकार को जमाओं पर मिलने वाले ब्याज पर कर घटाने के बारे में सोचने का सुझाव भी दिया।

भाषा प्रेम प्रेम रमण

रमण

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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