भारत में 80 प्रतिशत सीमांत किसान प्रतिकूल जलवायु से प्रभावित : रिपोर्ट

भारत में 80 प्रतिशत सीमांत किसान प्रतिकूल जलवायु से प्रभावित : रिपोर्ट

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  • Publish Date - June 25, 2024 / 08:52 PM IST,
    Updated On - June 25, 2024 / 08:52 PM IST

नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) पिछले पांच वर्षों में प्रतिकूल जलवायु घटनाओं के कारण भारत में 80 प्रतिशत सीमांत किसानों को फसल का नुकसान उठाना पड़ा है। मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) के सहयोग से फोरम ऑफ एंटरप्राइजेज फॉर इक्विटेबल डेवलपमेंट (एफईईडी) द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 21 राज्यों के 6,615 किसान शामिल थे।

सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि फसल के नुकसान के प्राथमिक कारण सूखा (41 प्रतिशत), अत्यधिक या गैर-मौसमी बारिश सहित अनियमित वर्षा (32 प्रतिशत) और मानसून का समय से पहले वापस लौटना या देर से आना (24 प्रतिशत) है।

रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल लगभग 43 प्रतिशत किसानों ने अपनी खड़ी फसलों का कम से कम आधा हिस्सा गंवा दिया।

असमान वर्षा से चावल, सब्जियां और दालें विशेष रूप से प्रभावित हुईं। उत्तरी राज्यों में, धान के खेत अक्सर एक सप्ताह से अधिक समय तक जलमग्न रहते हैं, जिससे नए रोपे गए पौधे नष्ट हो जाते हैं।

इसके विपरीत महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कम बारिश के कारण चावल, मक्का, कपास, सोयाबीन, मूंगफली और दालों जैसी विभिन्न फसलों की बुवाई में देरी हुई है।

हालांकि, रिपोर्ट में तापमान बदलाव के प्रभाव को शामिल नहीं किया गया है।

वर्ष 2022 में, गर्मी की लू के शुरुआती हमले ने भारत में गेहूं की फसल को प्रभावित किया और उत्पादन वर्ष 2021 के 10 करोड़ 95.9 लाख टन से घटकर 10 करोड़ 77 लाख टन रह गया। इसने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश को निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर किया।

गर्मी ने वर्ष 2023 में फिर से गेहूं के उत्पादन को प्रभावित किया, जिससे सरकारी लक्ष्य लगभग 30 लाख टन कम हो गया।

वर्ष 2021 की जलवायु पारदर्शिता रिपोर्ट में कहा गया है कि एक से चार डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान वृद्धि के साथ धान उत्पादन में 10 से 30 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है, और मक्का उत्पादन 25 से 70 प्रतिशत घट सकता है ।

सीमांत किसान, जिनके पास एक हेक्टेयर से कम भूमि है, भारत के कृषि क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा हैं। ये सभी किसानों के 68.5 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन फसल क्षेत्र का केवल 24 प्रतिशत ही उनके पास है।

एफईईडी के अध्यक्ष संजीव चोपड़ा ने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन अब कहीं क्षितिज पर मौजूद खतरा नहीं रह गया है। यह अभी और यहां सामने है। इस वर्ष एनसीआर और पूरे भारत में अभूतपूर्व गर्मी इस संकट का स्पष्ट संकेत है। अनुकूलन रणनीति विकसित करना वैकल्पिक नहीं बल्कि आवश्यक है। हमें जलवायु-सहिष्णु कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने, आजीविका में विविधता लाने और वित्तीय सेवाओं और तकनीकी सलाह तक पहुंच में सुधार करने की जरूरत है।’’

रिपोर्ट ने सीमांत किसानों के लिए सहायता प्रणालियों में महत्वपूर्ण अंतराल को उजागर किया। हालांकि, उनमें से 83 प्रतिशत पीएम किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत आते हैं, केवल 35 प्रतिशत के पास फसल बीमा तक पहुंच है और मात्र 25 प्रतिशत को समय पर वित्तीय ऋण मिलता है।

सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित दो-तिहाई सीमांत किसानों ने जलवायु-सहिष्णु कृषि पद्धतियों को अपनाया है। इनमें बुवाई के समय और तरीकों, फसल की अवधि और जल और रोग प्रबंधन रणनीतियों में बदलाव शामिल हैं।

हालांकि, इन प्रथाओं को अपनाने वालों में से 76 प्रतिशत को ऋण सुविधाओं की कमी, भौतिक संसाधनों, सीमित ज्ञान, छोटी भूमि जोत और उच्च शुरुआती लागत जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

जबकि 21 प्रतिशत सीमांत किसानों के पास अपने गांव के 10 किलोमीटर के भीतर कोल्ड स्टोरेज है, केवल 15 प्रतिशत ने इन सुविधाओं का उपयोग किया है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय