Desh Bhakti Kavita In Hindi: ‘ये धरती धर्म की जननी है’ पढ़ें 26 जनवरी पर देश भक्ति हिंदी कविता

भारत की भूमि को हमेशा से धर्म, संस्कार और त्याग की जननी कहा गया है। यह वह धरती है, जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और प्रेम के प्रतीक श्रीकृष्ण जैसे आदर्श पुरुषों को जन्म दिया।

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  • Publish Date - January 26, 2025 / 12:52 PM IST,
    Updated On - January 26, 2025 / 12:52 PM IST

Desh Bhakti Kavita In Hindi:– भारत की भूमि को हमेशा से धर्म, संस्कार और त्याग की जननी कहा गया है। यह वह धरती है, जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम और प्रेम के प्रतीक श्रीकृष्ण जैसे आदर्श पुरुषों को जन्म दिया। इस पवित्र भूमि ने मानवता को त्याग, प्रेम, धर्म और मर्यादा का वास्तविक अर्थ समझाया है। भारत का हर कण, हर कण में धर्म और कर्तव्य की प्रेरणा समाई हुई है। हमारे इतिहास में ऐसी घटनाएं हैं, जिन्होंने यह साबित किया है कि भारत न केवल एक भूमि है, बल्कि एक आदर्श जीवनशैली का संदेश देती है।

26 जनवरी का दिन हमें याद दिलाता है कि हम सभी भारतीयों का यह कर्तव्य है कि हम अपने देश के प्रति न केवल गर्व महसूस करें, बल्कि अपने संविधान, संस्कृति और परंपराओं का सम्मान भी करें। यह दिन हमारे गौरवशाली अतीत और सुनहरे भविष्य का प्रतीक है। इस दिन हम उन मूल्यों को याद करते हैं, जो हमें हमारे महापुरुषों और ग्रंथों से मिले हैं।

Desh Bhakti Kavita In Hindi: 26 जनवरी पर पढ़ें ये कविता

ये धरती धर्म की जननी है अवतार यहां हर देव हुए
धरती का हर कण कण चुनकर श्री राम अवतरित यहीं हुए।
सौभाग्य हमारा इतना है कि हम इस देश के वासी हैं
जहां हुए धर्म के धर्मराज और चारों भाई प्रतापी हैं।
माटी ही नहीं इसका कण कण इसके हर कण में गीता है
है इसी धरती में वृंदावन जहां कृष्ण का बचपन बीता है।
संस्कार जहां की रीति है सत्कार जहां की नीति है
है वही धरती का ये कोना जिसने यह दुनिया जीती है।
आक्रमण कभी न किया किसी पर अपना यह जीवन जीते हैं
है पूरी सृष्टि अपना घर जीते जी यही समझते हैं।
है त्याग समर्पण होता क्या सिखलाया हमको राघव ने
है प्रेम का बंधन होता क्या बतलाया हमको माधव ने
यह जग क्या हमें बताता है होता है क्या अपमान सखै
जब राज्यसभा में खींच जाए कुलवधू सती की लाज सखै।
है मर्यादा की भाषा क्या यह जाना हमने राघव से
आज्ञा का पालन हो कैसे यह भी बतलाया राघव ने
साम्राज्य त्याग कर वन भोगे ऐसा करतब दिखलाया है
कमजोर हुए तो क्या है दुख सत से जय कर दिखलाया है।
पत्नी की हो मर्यादा क्या माता से हमने सीखा है
रावण ने जग को झोंक दिया उसको क्षण भर में त्यागा है
जब हो जनता को संशय तब अग्नि से जीवन खेला है
कोई भी नहीं वह इस जग में वो मेरी माता सीता है।
परिणाम अधम का होता क्या बतलाने को दुर्योधन है
सौभाग्य धर्म का होता क्या ये सिखलाने को पांडव है।
ये धरती स्वर्ग बनाने से है कौन हमें जो रोक सके
किसमे इतना है साहस की सूरज उगने से टोक सके
यह धरती नहीं एक जननी है जिसने कर्तव्य का ज्ञान दिया
ये धरती धर्म की जननी है जिसने सीता और राम दिया।

रचनाकार:- मांशु सिन्हा

यह धरती केवल एक भूमि नहीं है, यह धर्म, संस्कृति और कर्तव्य का संगम है। हमें गर्व है कि हम इस महान राष्ट्र के वासी हैं, जिसने विश्व को सत्य, अहिंसा और शांति का संदेश दिया। आइए, इस गणतंत्र दिवस पर हम सभी संकल्प लें कि अपने देश को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।

Disclaimer- प्रस्तुत कविता से IBC24 अथवा SBMMPL का कोई संबंध नहीं है। हर तरह के वाद, विवाद के लिए लेखक व्यक्तिगत तौर पर जिम्मेदार हैं।