इस देश के लोगों की जरूरतें कभी पूरी नहीं होती और ख्वाहिशें कभी खत्म नहीं होती। लोअर मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों को पर्व-त्योहार का बड़ा इंतजार रहता है क्योंकि इसी बहाने उन्हें पहनने को नए कपड़े और खाने को लजीज पकवान मिल जाते हैं। तमाम वक्त घिसट-घिसट कर काम करने वाले और चंद सिक्कों के लिए अपनी हड्डियां गलाने वाले लोग भी त्योहारों पर अपने परिजनों को निराश नहीं करना चाहते। लोकतंत्र में भी कुछ ऐसा ही है, जनता पांच साल इंतजार करती है और लोकतंत्र का महापर्व आते ही उनकी आंखें चमक उठती हैं, कुछ अप्रत्याशित मिलने की चाहत दिल में हिलोरे मारने लगती हैं।
तो जनाब, चुनावी बिगुल बजते ही मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में लोकतंत्र के महापर्व की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। चुनावी चूल्हे पर वादों की चासनी गाढ़ी हो रही है और योजनाओं की जलेबी तली जा रही है। निरीह जनता लार टपकाती चुपचाप निहार रही है कि एकाध जलेबी जरूर उनके कटोरे में भी आएगी। भले ही 5 साल तक कटोरा खाली रहा हो लेकिन ये तो दस्तूर है। वैसे ये जलेबी तो हाथी के दिखाने वाले दांत हैं, असली मजा तो उनसे पूछिए जो एक बोतल, एक साड़ी, कुछ कड़क नोट के लिए वोट बेच देते हैं! माफ करिएगा, कुछ लोग ईमान के बड़े पक्के होते हैं, कोई लालच उन्हें डिगा नहीं पाती, चाहे जो हो जाए, उम्मीदवार चाहे जैसा भी हो लेकिन वोट उसी को देंगे, जो उनकी जाति का होगा!
खैर, छोड़िए.. उनका वोट, उनकी ताकत, उनकी मर्जी ! अब हर काम सरकार तो करेगी नहीं और जात-बिरादरी में रहना है तो भाईचारा तो निभाना पड़ता है। हां, ये बात अलग है कि वोट लेने वाले भी फिर पलटकर देखते भी नहीं और कभी मिलने जाओ तो पहचानते तक नहीं। वैसे इसमें बुरा मानने की बात नहीं है। उनकी परेशानी भी तो समझिए, पूरे क्षेत्र की जिम्मेदारी जो होती है। एक और बात ये कि वोटार्थी नेता गांव-गांव, गली-गली, घूम-घूम कर इतनी चर्बी घटा लेते हैं कि जीत के बाद उनके कदम आसमान पर ही रहते हैं। जिन लोगों को जनता जमीन याद दिला देती है, वो अगले पांच साल सरकार के खिलाफ जनता के हक और अपनी भड़ास के लिए सड़क पर जमीनी लड़ाई लड़ते रहते हैं।
अब देखिए ना, अपन मध्यप्रदेश और मोर छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों में यही नजारा तो दिखाई दे रहा है। जो सत्ता में हैं, उन्होंने जनता के लिए खजाना खोल दिया और जो सत्ता पलटने की चाहत रखते हैं, वो सैंटा क्लॉज की पोटली लिए घूम रहे हैं। यात्राओं का तो पूछिए ही मत, सारे नेताओं की रैलियों और यात्राओं को जोड़ लें तो पृथ्वी की परिक्रमा कई बार हो जाएगी। जितनी हवाई यात्राएं हो रही हैं, उसे जोड़ लें तो कहीं चांद पर ही ना पहुंच जाएं। वो चांद पर पहुंचे ना पहुंचे लेकिन जनता की तो चांदी हो गई है! कोई फ्री में बिजली दे रहा है तो आधे दाम पर रसोई गैस। कोई सीधे नगद दे रहा है तो कोई गारंटी देकर ही काम चला रहा है। इधर जनता है, जिसका ना पेट भर रहा है और ना मन.. इनका बस चले तो सबकुछ फ्री करवा लें… काश! पढ़ाई और इलाज फ्री के साथ करप्शन फ्री सिस्टम का इंतजाम हो जाता तो फिर कुछ और फ्री करने की जरूरत ही ना पड़ती!
हालांकि चुनावी मेवों पर तिरछी नजर रखने वालों की एक बड़ी तादाद है। ऐसे लोग इसे जनता के लिए जहर बताकर देश की सबसे बड़ी अदालत की शरण में चले गए। आरोप लगाया कि सरकार 5 साल कुछ काम-धाम करती नहीं और चुनाव आते ही जनता की गाढ़ी कमाई लुटाने का बंदोबस्त करने लगती है। वहीं जो पार्टियां सत्ता में नहीं हैं, वो हवाई किले बनाने का सपना दिखाती हैं लेकिन ये नहीं बताती कि पैसा कहां से लाएंगी। न्यायाधीशों की पीठ ने इसे बड़ा गंभीर मुद्दा माना और नोटिस देकर जवाब तलब कर लिया। मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकारों के साथ केंद्र सरकार, निर्वाचन आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक से भी सवाल पूछा गया है। फिलहाल सवाल-जवाब से कुछ निकलने से पहले चुनाव का रिजल्ट निकल जाएगा इसलिए देश आपका है, प्रदेश आपका है, वोट आपका है, अंगुली आपकी है.. सरकार भी अपनी होनी चाहिए.. सही को चुनिए और फिर 5 साल इंतजार करने के बजाए पूरे 5 साल हक से सेवा लीजिए। ख्वाहिशों को थोड़ी ताजी हवा मिले तो वाकई मजा आएगा!