क्या वाकई हार मान चुकी है भाजपा या मुगालते में है कांग्रेस ?

क्या वाकई हार मान चुकी है भाजपा या मुगालते में है कांग्रेस ? | Is BJP or Congress really lost in Mughal?

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  • Publish Date - September 27, 2023 / 04:06 PM IST,
    Updated On - September 27, 2023 / 04:06 PM IST

मध्यप्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों की दूसरी सूची चौंकाने वाली है। इसमें शिवराज, महाराज और नाराज तीनों कुनबों को संदेश दिया गया है। इस सूची में 39 उम्मीदवारों के नाम हैं, जिनमें 3 केंद्रीय मंत्री समेत 7 सांसद भी शामिल हैं। कांग्रेस की मानें तो भाजपा ने सांसदों को विधानसभा का टिकट देकर ये साबित कर दिया है कि भाजपा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में नहीं जीत रही। लेकिन क्या वाकई भाजपा हार मान चुकी है या फिर कांग्रेस इस चुनाव को हल्के में ले रही है?

भाजपा की दूसरी सूची में सबसे चौंकाने वाला नाम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का है। उन्हें इंदौर एक विधानसभा सीट से टिकट मिला है। प्रदेश की राजनीति में उनकी वापसी से उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय की दावेदारी लगभग खत्म हो गई है। इसके अलावा नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद तोमर तीन केंद्रीय मंत्रियों को भी राष्ट्रीय राजनीति से सीधे विधानसभा की जंग में उतार दिया गया। ये चारों कद्दावर नेता मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की टक्कर के हैं और चुनाव के बाद सीएम पद के दावेदार माने जा सकते हैं। यानी भाजपा ने ये संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी के लिए चेहरा नहीं जीत मायने रखती है।

दूसरी सूची में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक जसवंत जाटव और गिर्राज दंडौतिया को टिकट नहीं दिया गया है। हालांकि रघुराज कंसाना, मोहन सिंह राठौड़ और इमरती देवी के नाम जरूर शामिल हैं। इस तरह शिवराज के साथ महाराज को भी स्पष्ट संदेश दिया गया है कि नाम नहीं जीत जरूरी है। टिकट बंटवारे में शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबियों की बजाय पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के भरोसेमंद नेताओं को प्राथमिकता दी गई है। बड़े चेहरों के मैदान में उतारने से पार्टी में असंतोष कम होगा और सत्ता विरोधी लहर को भी रोका जा सकेगा।

भाजपा ने दूसरी सूची जारी करने के अगले ही दिन मंगलवार को एक और टिकट का ऐलान किया है। हाल ही में भाजपा में शामिल हुईं मोनिका बट्टी को अमरवाड़ा सीट से टिकट दिया गया है। पूर्व विधायक मनमोहन शाह बट्टी की बेटी मोनिका भारतीय गोंडवाना की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं।

सवाल कई.. जवाब एक

भाजपा उम्मीदवारों की लिस्ट आने के बाद सियासी गलियारों में सवालों की फेहरिश्त लंबी होती जा रही है। इसमें दो सवाल सबसे अहम हैं। सबसे पहला सवाल ये है कि भाजपा ने केंद्रीय मंत्री जैसे कद्दावर नेताओं को मैदान में क्यों उतारा? मध्यप्रदेश विधानसभा का ये चुनाव भाजपा के लिए कितना मायने रखता है इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि चुनाव के ऐलान से पहले ही पार्टी ने 79 उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। उम्मीदवारों की दूसरी सूची से साफ है कि कमजोर सीटों को जिम्मेदारी दिग्गजों को दे दी गई है और पार्टी यहां हर हाल में जीत हासिल करना चाहती है। भाजपा ने जिन 3 सीटों पर केंद्रीय मंत्रियों को उम्मीदवार बनाया है, उनमें से 2 सीटें फिलहाल कांग्रेस के पास है। इसके साथ ही जिन 4 विधानसभा सीटों पर सांसदों को उम्मीदवार बनाया गया है, उनमें से 3 सीटों पर बीते चुनाव में पार्टी की हार हुई थी। एक संसदीय सीट में करीब 6 से 8 विधानसभा सीटें होती हैं, अगर एक सांसद विधानसभा चुनाव लड़ेगा तो उनके संसदीय सीट के तहत आने वाली सभी विधानसभा सीटों पर पार्टी की जीत का माहौल बन सकता है।

दूसरा सवाल है ये कि महिला आरक्षण पर संसद का विशेष सत्र बुलाकर आधी आबादी को हक देने का श्रेय लेने वाली पार्टी ने क्या वाकई महिलाओं का मान रखा ? 17 अगस्त को जारी भाजपा उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 3 और नारी शक्ति वंदन अधिनियम पास हो जाने के बाद जारी लिस्ट में 7 महिलाओं के नाम हैं। 79 उम्मीदवारों में इनका कुल प्रतिशत 12 है, जो एक तिहाई आरक्षण से काफी कम है। यानी भाजपा आधी आबादी का पूरा समर्थन चाहती है लेकिन हक देने के मामले में फिलहाल सब कागजी है! फिलहाल उन्हें ही उम्मीदवारी का मौका मिल रहा है, जो चुनाव में कमल खिला सके।

कांग्रेस की क्या मजबूरी?

भाजपा उम्मीदवारों की सूची पर कांग्रेस लगातार हमलावर हो रही है। जुमलों के जरिए तंस कसा जा रहा है, उम्मीदवारों के चुनाव पर सवाल उठाए जा रहे हैं और बार बार जीत का दावा दोहराया जा रहा है। लेकिन क्या जीत के लिए इतना काफी है? भाजपा अब तक 79 प्रत्याशियों का ऐलान किया जा चुकी है, इनमें से ज्यादातर सीटें वो हैं, जहां भाजपा पिछला चुनाव हार गई थी। कांग्रेस इस मामले में थोड़ी पिछड़ गई है। कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर के भरोसे जीत का सपना देख रही है लेकिन क्या सिर्फ यही फैक्टर काम करेगा? भाजपा उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्रों में जनसंपर्क शुरू कर चुके हैं लेकिन कांग्रेस में अभी तक नाम को लेकर खींचतान मची है। टिकट का ऐलान हो भी गया तो कांग्रेस उम्मीदवारों को प्रचार का कम वक्त मिलेगा। कलह और बगावत से निपटने की चुनौती तो अलग से रहेगी ही। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है, जो कांग्रेस फैसला लेने में इतना देर लगा रही है। कहीं ये देरी कांग्रेस पर भारी ना पड़ जाए।

बहरहाल, आमतौर पर पार्टियां अपने पत्ते पहले नहीं खोलती और विरोध दल के प्रत्याशी के अनुसार अपना उम्मीदवार उतारती है। इसके साथ ही अंदरुनी गुटबाजी से बचने के लिए भी ऐन मौके पर टिकट का ऐलान किया जाता रहा है। लेकिन इस बार चुनाव के ऐलान के पहले ही भाजपा उम्मीदवारों का ऐलान कर रही है। इससे तीन बड़े फायदे हैं, पहला ये कि उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र में प्रचार करने और अपनी ताकत को आजमाने के लिए भरपूर मौका मिलेगा। दूसरा पार्टी को गुटबाजी और असंतोष पर काबू पाने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा और तीसरा सबसे जरूरी फायदा ये है कि आचार संहिता लागू होने से पहले के खर्च को चुनाव प्रचार के खर्च के ब्योरे में शामिल करने से राहत होगी।