धर्मेंद्र और निरहुआ के बीच जंग, क्या योगी भेद पाएंगे अखिलेश का गढ़?

आज़मगढ के जातीय समीकरण में छिपा है जीत का फॉर्मूला इसलिए तीनों ही पार्टियां वोटबैंक का गणित साधने में जुटी हैं।

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  • Publish Date - June 7, 2022 / 08:47 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 01:17 AM IST

Yogi able to penetrate Akhilesh समाजवादी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश यानी पूर्वांचल की आज़मगढ़ सीट एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीति में चर्चा का केंद्र बनी हुई है। वज़ह है 23 जून को इस लोकसभा सीट के लिए होने वाला उपचुनाव। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस्तीफ़े के बाद यहां उपचुनाव कराया जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने बीजेपी के उम्मीदवार
दिनेश लाल यादव निरहुआ को एकतरफा मुकाबले में हराया था। अखिलेश यादव को कुल मतदान का 60 फीसदी वोट यानी 6,21,587 वोट
मिले थे, जबकि निरहुआ के पक्ष में करीब 35 फीसदी 3,61, 704 वोट और 2,59,874 वोटों के बड़े अंतर से अखिलेश लोकसभा के लिए
निर्वाचित हुए थे। अब 2022 में हो रहे उपचुनाव में निरहुआ का मुकाबला धर्मेंद्र यादव से है। एक और बदलाव ये है कि 2019 का चुनाव
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने मिल कर लड़ा था, लेकिन अब यहां त्रिकोणीय मुक़ाबला है। बीएसपी ने गुड्डू जमाली को
यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है।

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Yogi able to penetrate Akhilesh आज़मगढ के जातीय समीकरण में छिपा है जीत का फॉर्मूला इसलिए तीनों ही पार्टियां वोटबैंक का गणित साधने में जुटी हैं। कुल मतदाताओं की बात करें तो ये संख्या क़रीब 19.5 लाख है। इनमें सबसे बड़ी आबादी है यादव समुदाय की। आज़मगढ़ का हर चौथा मतदाता यादव जाति से है क्योंकि यहां 26 फीसदी आबादी यादवों की है। दूसरे नंबर पर यहां मुस्लिम हैं, जिनकी आबादी 24 फीसदी है। ऐसे में MY फैक्टर यानी
मुस्लिम-यादव समीकरण जिसके पक्ष में बनता है, उसकी सीधी जीत तय हो जाती है। यही समीकरण आज़मगढ़ सीट को समाजवादी पार्टी
का गढ़ बनाता है और यहां से मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक को लोकसभा पहुंचने का रास्ता मिलता रहा है। इस समीकरण
को तोड़ने के लिए बीएसपी ने MD फैक्टर पर फोकस किया है, यानी मुस्लिम-दलित समीकरण। बीएसपी प्रमुख मायावती को दलित वोटबैंक
के साथ बने रहने का भरोसा है, जिसे मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर उन्होंने मुस्लिम वोटरों को एसपी के पाले से अपने पाले में खींचने की रणनीति बनाई है।

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बीजेपी उम्मीदवार दिनेश लाल यादव निरहुआ भोजपुरी के लोकप्रिय कलाकार हैं और इस सीट से चुनाव लड़ चुकने के कारण उन्हें यहां के
समीकरणों को समझने और मतदाताओं से कनेक्ट बनाने का पूरा मौका मिला है। इसके साथ ही खुद यादव होने के कारण भी बीजेपी उनपर
लगातार दांव खेलती रही है। सवर्ण मतदाताओं, गैर यादव ओबीसी के साथ-साथ दलित वोटर्स पर बीजेपी की उम्मीदें टिकी हैं। बीजेपी ने पहले
भी एक बार समाजवादी पार्टी के इस गढ़ को भेदा था, जब 2009 लोकसभा चुनाव में रमाकांत यादव ने बीएसपी के अकबर अहमद डंपी जैसे कद्दावर उम्मीदवार को हराया था। रमाकांत यादव ने 1999 में भी डंपी को हराया था, लेकिन तब वो समाजवादी पार्टी में थे और 2004 लोकसभा चुनाव में उन्होंने जब समाजवादी पार्टी के दुर्गा प्रसाद यादव को हराया तब वो बीएसपी में थे। इस तरह आज़मगढ़ लोकसभा सीट का इतिहास देखें तो पिछले 5 लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को 3 बार जीत मिली है, जबकि बीएसपी और बीजेपी को 1-1 बार जीत मिली। समाजवादी पार्टी को मिली ये दोनों हार रमाकांत यादव के हाथों ही मिली जो पहले समाजवादी पार्टी के ही सांसद थे।

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2019 लोकसभा चुनाव पर लौटें तो अखिलेश यादव और निरहुआ के बीच सीधा मुक़ाबला था और ये मुक़ाबला इतना कड़ा था कि बाक़ी 13 उम्मीदवारों की ज़मानत ही ज़ब्त हो गई। 2022 में मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट जीतने के बाद अखिलेश यादव ने बतौर नेता प्रतिपक्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा में जाने का फ़ैसला लिया और लोकसभा सीट से इस्तीफ़ा दे दिया। विधानसभा चुनावों में बीजेपी और एसपी के बीच सीधा मुक़ाबला हुआ और बीएसपी का सफाया हो गया। ऐसे में अब हो रहे उपचुनाव में अगर मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न विधानसभा चुनाव की तरह ही रहा तो बीजेपी और एसपी के बीच ही सीधा मुक़ाबला तय है, जिसमें एसपी उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव के पक्ष में पलड़ा झुक सकता है। दूसरी ओर, अगर बीएसपी उम्मीदवार जमाली का जलवा चला तो मुस्लिम वोटों में सेंधमारी का सीधा फ़ायदा बीजेपी को भी मिल सकता है।