आखिर दिल्ली की शराब नीति में ऐसा क्या है जो इसकी जांच करने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी दिल्ली के उपमुख्यमंत्री के घर तक पहुंच गई। क्या इस नीति में कोई घोटाला हुआ है या कि सिर्फ संदेहों के आधार पर यह छापेमारी हो रही है। बेशक इस पर पक्ष-विपक्ष भी हो रहा है। इन्हें करने दीजिए सियासत। क्योंकि दूध के धुले तो ये भी नहीं और वो भी नहीं। इनके बयानों में उलझकर कहीं सच न रह जाए, इसलिए हम आपको सरल से सरल भाषा में बताएंगे इसकी पूरी अंदरूनी कहानी।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने नई शराब नीति बनाई थी, जिसमें अनेक तरह की छूटें देते हुए शराब कारोबारियों को लाभ पहुंचाने और लाइसेंसिंग में गड़बड़ी के अलावा 144 करोड़ 36 लाख रुपए की लाइसेंस फीस माफ करने की बात कही गई है। सीबीआई को मिली रिपोर्ट के मुताबिक इसमें अवांछित लाभ पहुंचाए गए हैं।
इस नीति में शराब कारोबारी अपने आउटलेट से रात 3 बजे तक शराब पिला सकते हैं। जबकि सुरक्षा संबंधी कारणों से रात 10 बजे के बाद शराब नहीं पिलाई जा सकती।
केजरीवाल सरकार की नई नीति में शराब परोसने के लिए अब किसी कवर्ड अहाते या स्थान की बजाए ओपन टेरेस या मैदान की अनुमति भी रहेगी। इससे शराब को लेकर खुलापन आएगा।
इसमें केजरीवाल सरकार ने शराब पिलाने के दौरान मनोरंजन के लिए व्यापारी अपने हिसाब से इंतजाम की छूट दी है। इसकी आड़ में कई अवैध काम होंगे। पुलिस कार्रवाई नहीं कर पाएगी।
दिल्ली के किसी इलाके में जरूरत से ज्यादा शराब दुकानें या किसी इलाके में दुकानें ही न हों, ऐसा नहीं होना चाहिए। इसके लिए दिल्ली सरकार एल-7जेड नया लाइसेंस जारी करती।
इस नीति में आबकारी मंत्री ही जरूरत के हिसाब से नियमों में बदलाव कर सकते हैं। जबकि इसके लिए केबिनेट जरूरी होती है।
केजरीवाल सरकार की इस नीति के ऐलान के बाद से ही दिल्ली के कुल 32 जोन में कुल 850 में से 650 दुकानें खुल गई। इससे सरकार का राजस्व बढ़ता। लेकिन इस नीति में कई सारे बिंदुओं पर खुलेआम कानूनों का उल्लंघन करते हुए अपने-अपनो को फायदा पहुंचाया गया है। मुख्यसचिव से एलजी ने एक रिपोर्ट मांगी थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि नई शराब नीति जीएनसीटी एक्ट-1991, ट्रांजेक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स-1993, दिल्ली एक्साइज एक्ट-2009 और दिल्ली एक्साइजरूल्स-2010 का उल्लंघन है। 2021-22 में लाइसेंस देते समय अपने-अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए भी अनियमितता की गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने शराब माफियाओं के 144 करोड़ 36 लाख रुपए की लाइसेंस फीस भी माफ की है। एलजी ने इसकी पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए थे। तभी से मामला चर्चा में आया। जब मुख्य सचिव की रिपोर्ट आई तो गड़बड़ियों की पोल खुलती देख केजरीवाल सरकार ने प्रोसीजर के उलट केबिनेट बुलाकर इस पर लीपापोती करने की कोशिश की।
दिल्ली सरकार कहती है, इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा। प्रतिस्पर्धा होगी तो लोगों को दाम कम मिलेंगे। इससे कालाबाजारी बंद होगी। कोचिया खत्म होंगे। सभी वार्डों में दुकानें होने से लोगों को भटकना नहीं पड़ेगा और भीड़ भी नहीं होगी। फिलहाल आबकारी अफसर इस पर अब भी काम कर रहे हैं। इसे 2022-23 में लागू करना था। लेकिन उपराज्यपाल के पास नहीं भेजी गई है। अब छापेमारी और विवाद के बाद आबकारी मंत्री मनीष सिसोदिया ने पुरानी नीति पर ही शराब बेचने के निर्देश दिए हैं।
शराब किसी भी सरकार के लिए रेवेन्यु का सबसे आसान मॉडल होता है। जब सरकारों को लोकलुभावन सिर्फ खर्च और खर्च वाले काम करने होते हैं तो धन की जरूरत पड़ती है। ज्यादातर सरकारों के पास शराब ऐसा स्रोत होता है जिससे वे पर्याप्त पैसा जुटा सकती हैं। इसीलिए कई सरकारें शराबबंदी नहीं कर पाती। केजरीवाल सरकार ने तो और एक कदम आगे बढ़ते हुए शराब को लेकर नीति ही पलट दी। इससे शराब कारोबारियों को कई सारी छूटें मिली और सरकार को पैसा। फिलवक्त यह होल्ड है, लेकिन सीबीआई अब पीछे पड़ चुकी है।