#NindakNiyre: रायपुर आ रही साधुओं की टोली से क्यों घबराई है सियासत?

मौजूदा राजनीतिक हालात में हर हिंदूवादी गतिविधि का सार-मजा भाजपा को ही मिलता है और कांग्रेस कांटों में फंसी नजर आती है। बीते कुछ ही महीनों में दो बड़े क्राउड पुलर धर्मजन पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पंडित प्रदीप मिश्रा।

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  • Publish Date - February 17, 2023 / 08:41 PM IST,
    Updated On - February 17, 2023 / 08:42 PM IST

बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक

छत्तीसगढ़ में चारों दिशाओं से साधु-संतों की पदयात्राएं शुरू हो चुकी हैं। है तो यह गैरराजनीतिक एक्टिविटी, लेकिन इसका असर राजनीति पर सीधा पड़ सकता है। इसका मूल आयोजन विश्व हिंदू परिषद कर रहा है। आइए समझते हैं इसका पूरा राजनीतिक गणित, नफा-नुकसान और विज्ञान।

भाजपा की खिली बांछें

इसे लेकर भाजपा की बांछें खिली हैं। मौजूदा राजनीतिक हालात में हर हिंदूवादी गतिविधि का सार-मजा भाजपा को ही मिलता है और कांग्रेस कांटों में फंसी नजर आती है। बीते कुछ ही महीनों में दो बड़े क्राउड पुलर धर्मजन पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पंडित प्रदीप मिश्रा। इनके आयोजनों की भीड़ से निकल रहे हिंदुत्व की खुशबू भाजपा के लिए सुखदाई है।

कांग्रेस के माथे पर बल क्यों

इसे लेकर कांग्रेस के माथे पर बल है, क्योंकि वह जानती है साधू-संत यहां सिर्फ कथा-प्रवचन नहीं करेंगे, बल्कि हिंदू राष्ट्र, धर्मांतरण, भूमि जिहाद, लव जिहाद, असंतुलित जनसंख्या, गौतस्करी जैसे भूत भी जगाएंगे। धर्मांतरण पर भाजपा देशभर में होरिजेंटल एप्रोच के साथ मुखर है। इन विषयों से धार्मिक बहुसंख्य राजनीतिक रूप से भी सिंक होता है। कांग्रेस की चिंता और घबराहट अकारण नहीं।

तो सियासत पर क्या असर होगा?

इसके लिए पहले आप ये मैप देखिए। इसमें मैं आपको समझाऊंगा यात्राएं कैसे-कैसे, कहां से कहां होकर चलेंगी। इस बीच वे क्या करेंगी और कहां किस क्षेत्र में किसको नुकसान है और किसको फायदा, किस तरह से यह सामाजिक ताने-बाने को जोड़ेंगी। इन यात्राओं में सबसे अहम बात यह है कि ये सभी साधू-संत अपनी मंडली समेत जात-पांत छोड़कर हर उस घर में जाएंगे जिसे राजनीतिक रूप से उपेक्षित बताया जाता है और बहुसंख्य से छिटकाने की कोशिश की जाती है।

पहली यात्रा 15 फरवरी को बस्तर के रामाराम से शुरू हो चुकी है। यह दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी मंदिर पहुंच रही है। यहां एक धर्मसभा होगी। फिर यहां से यह यात्रा गीदम, जगदलपुर, भनपुरी, नारायणपुर, भानुप्रतापपुर, माकड़ी, कांकेर, चारामा, धमतरी, कुरूद, फिंगेश्वर, राजिम, अभनपुर से होकर 17 मार्च को रायपुर के शदाणी दरबार आएगी। इस दौरान यह यात्रा बस्तर संभाग की 12 विधानसभा सीटों को छूएगी। साथ ही रायपुर संभाग की 8 से अधिक सीटों को सीधे तौर पर स्पर्श करेगी। फिलहाल यहां सिर्फ 3 ही भाजपा के विधायक हैं। इन 20 सीटों में से 18 पर कांग्रेस के विधायक हैं।

दूसरी यात्रा सरगुजा के रामानुजगंज से 18 फरवरी से चलेगी। यह अंबिकापुर, सूरजपुर, बैकुंठपुर, मनेंद्रगढ़, गौरेला, पेंड्रा, मरवाही, बेलगहना, बिलासपुर, मदकूद्वीप, दामाखेड़ा, सिमगा तरपोंगी, से 17 मार्चा को रायपुर के बंजारीधाम आएगी। यह भी सरगुजा की 7, बिलासपुर संभाग की 7, रायपुर संभाग की 4 यानी 18 सीटों को छूएगी। इन 18 में से अभी भाजपा के पास 5 सीटें हैं। कांग्रेस के पास 12 और 1 जोगी कांग्रेस के पास है।

तीसरी यात्रा जशपुर के सोगड़ा आश्रम से 18 फरवरी को शुरू होगी। यह कुनकुरी, पत्थलगांव, धरमजयगढ़, बाल्को, कोरबा, चांपा, बमनीडीह, जांजगीर, सक्ती, अड़भार, खरसिया, रायगढ़, चंद्रपुर, सारंगढ़, कसडोल, बलौदाबाजार होते हुए राममंदिर रायपुर में 17 मार्च को पहुंचेगी। इस दौरान यह बिलासपुर, सरगुजा और रायपुर संभाग की 14 सीटों को छूएगी। इनमें से अभी भाजपा के पास 3 ही सीटें हैं। बाकी 10 कांग्रेस और एक जोगी कांग्रेस के पास है।

चौथी यात्रा तानाबरस से 18 फरवरी को शुरू होगी। जो मोहला-मानपुर, अंबागढ़ चौकी, डोंगरगांव, छुरिया, बमलेश्वरी धाम डोंगरगढ़, खैरागढ़, गंडई, लोहारा, नवागढ़, बेमेतरा, कोरवा, मुरतार, राजनांदगांव, संजारी बालोदा, दुर्ग, भिलाई-3 से 17 मार्च को टाटीबंध इस्कॉन मंदिर पहुंचेगी। यह 14 विधानसभा सीटों से होकर गुजरेगी। इन 14 में से अभी भाजपा के पास 2 ही सीटें हैं। शेष सभी कांग्रेस के पास हैं।

यात्रा धर्म की, फायदा भाजपा को
यह साधुओं की मंडली राज्य की 60 सीटों को सीधे तौर पर छूएगी। इसका मकसद हिंदू राष्ट्र को जनचर्चा का विषय बनाना, आदिवासी बाहुल्य इलाकों में धर्मजागरण, धर्मांतरण, हिंदुत्व, सामाजिक समरसता जरूर है, लेकिन असर राजनीतिक भी पड़ सकते हैं। यह यात्रा भाजपा के लिए राज्य में सकारात्मक महौल बनाने में अहम सिद्ध होगी।

कांग्रेस कैसे करेगी इसका काउंटर

कांग्रेस ने साधुओं से अपील करना शुरू कर दिया है। मुख्यमंत्री ने कौशल्या माता के मंदिर जाने की बात कह चुके हैं। वे राम वनगमन की भी चर्चा कर चुके हैं। कांग्रेस को इस मामले में सावधानी तो बरतना ही होगी साथ ही विहिप से समानांतर दूरी बनाते हुए साधुओं से नजदीकी का कोई फॉर्मूला खोजना होगा।

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