Barun Sakhajee
बरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक
भाजपा के आंतरिक और बाह्य निर्णयों को लेकर किसी तरह की गेसिंग मुश्किल है, लेकिन सरफेस तक कुछ-कुछ तलहटी की बातें आती हैं। भाजपा फिलहाल पिछले एक वर्ष से अपने ऐसे राष्ट्रीय अध्यक्ष के बूते चल रही है जो केंद्र में मंत्री भी हैं। जाहिर है कोई न कोई पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष आवश्यक है। दूसरी बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रांड भाजपा ने नेताओं का सक्रिय राजनीतिक में रहने का आयुवर्ग 75 वर्ष तय कर रखा है। ऐसे में सितंबर में मोदी खुद भी 75 के हो रहे हैं। अब सवाल है कि वे क्या करेंगे। तीसरी बात भाजपा जोड़ियों से चलती है तो अगली जोड़ी किस-किस की बन सकती है, यह भी भाजपा और उससे जुड़े निर्णायक संगठनों में आंतरिक चर्चा का विषय बना हुआ है। इन तीन बिंदुओं पर मैं आपसे एक-एक करके बात करूंगा और कुछ सूचनाओं को मथकर तलहटी में हुई बातों का सार तत्व आप तक पहुंचाऊंगा।
सबसे पहले कौन बनेगा राष्ट्रीय अध्यक्ष, क्योंकि 18 मार्च को होगा ऐलान
यह फिलवक्त का सबसे बड़ा मसला है। भाजपा आंतरिक रूप से कई सारे फॉर्मूलों को बना-बिगाड़ रही है।
पहला फॉर्मूला तो यही है कि एक केंद्रीय मंत्री के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने से उनके मूवमेंट का आर्थिक व्यय पार्टी पर न आकर सरकार पर आता है, किंतु यह भाजपा जैसी संपन्न पार्टी के लिए फैक्टर नहीं। इसे अपनाया गया तो नड्डा बरकरार रह सकते हैं या शिवराज सिंह चौहान, धर्मेंद्र प्रधान जैसे केंद्रीय मंत्रियों को मौका मिल सकता है।
दूसरा फॉर्मूला चुनावों में अपेक्षित नतीजे आए हैं तो क्यों बदला जाए, इसका मतलब पार्टी व मंत्रालय नड्डा ने समान क्षमता के साथ हैंडल किए हैं। इसमें नड्डा बरकरार रह सकते हैं।
तीसरा फॉर्मूला 2025 से 2027 तक किन राज्यों में चुनाव हैं और अध्यक्ष का क्या असर हो सकता है, यह है। इसमें भी नड्डा हिमाचल से आते हैं, लेकिन पार्टी को प्रदेश में नहीं जिता पाते, यानी इसका असर कितना होता यह समझा जा सकता है। फिर भी यह चला तो इसमें यूपी से सुनील बंसल, बिहार से सम्राट चौधरी या बंगाल से सुबेंदु सरकार जैसों में से कोई आ सकता है।
चौथा फॉर्मूला जातिय आधार पर अगले दो सालों के चुनावों के मद्देनजर अध्यक्ष चुना जाए। यानि बंगाल, यूपी, बिहार, कर्नाटक जैसे बड़े प्रदेशों में चुनाव होने हैं तो इसका ख्याल रखा जाए। यहां के जातिय समीकरणों को समझा जाए। इस फॉर्मूले में दम है। किंतु यह फॉर्मूला पार्टी को मजबूती दे पाए, यह आवश्यक नहीं। इस फॉर्मूले में यूपी और बिहार में अखिलेश और तेजस्वी का कोर जनाधारा यादव हैं। इसलिए यहां से भूपेंद्र यादव को मौका मिल सकता है या फिर कर्नाटक से येदियुरप्पा हो सकते हैं। लिंगायत के बूते ही कर्नाटक भाजपा जीत सकती है। साथ में दक्षिण भी संभलेगा।
पांचवां फॉर्मूला क्षेत्रीय संतुलन हो सकता है। जैसे कि दक्षिण से कोई व्यक्ति पार्टी लीड करे। इस फॉर्मूला में दम है, लेकिन समस्या ये है कि पार्टी की कोर ताकत हिंदी बेल्ट है, ऐसे में दक्षिण के चक्कर में बिहार, यूपी जैसे रिलाइबल स्टेट्स न हाथ से निकल जाएं और कार्यकर्ताओं से भाषाई, सांस्कृतिक गैप न बन जाए। इस फॉर्मूले में बीएल संतोष, वी सतीश, जी किशनरेड्डी, अन्नामलाई सबसे आगे हैं।
छठवां फॉर्मूला राष्ट्रीय अध्यक्ष का मतलब होता है एक मजबूत निर्णायक राजनेता। ऐसा निर्णायक राजनेता जो सरकार के साथ समन्वय बना सके और कार्यकर्ता की नाराजगी को भी देख-सुन-समझ पाए। इसके अलावा भाजपा में अगली जोड़ी के रूप में जिसे निखारा, बनाया व गढ़ा जा सके। इस फॉर्मूले में शिवराज सिंह चौहान, बीएल संतोष शिवप्रकाश ज्यादा मुफीद हो सकते हैं। शिवप्रकाश और बीएल संतोष कार्यकर्ता फ्रैंडली नहीं हैं, शिवराज सिंह इस पैमाने पर पूरी तरह से खरे हैं।
फॉर्मूले कोई से भी हो सकते हैं, किंतु पार्टी सबसे ज्यादा तवज्जो छठवें फॉर्मूले को देगी। इस फॉर्मूले का मतलब है ऐसा राष्ट्रीय अध्यक्ष जो आगामी पीएम उम्मीदवार के साथ तालमेल बिठा सके, मौजूदा शाह-मोदी जोड़ी के काम को नलीफाइ न करे, पार्टी को जिता पाए, कार्यकर्ताओं के साथ आत्मा के संबंध बना पाए, चुनावी मैदान में स्वयंसिद्ध हो, सिस्टम को समझता हो, देश घूमा हो, रणनीतिकार हो, अच्छी टीम वाला, भाजपा की विभिन्न नर्सरियों में रह चुका हो, जैसे कि युवामोर्चा, एबीवीपी आदि। इन सबमें फिट बैठते हैं शिवराज सिंह चौहान।
अगले आलेख में पढ़िए क्या होगा जब मोदी होंगे 75 पार और भाजपा में अगली जोड़ी किसकी?