बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक
Rahul Gandhi’s punishment: आखिर क्यों राहुल के पीछे पड़ी है भाजपा? यह सवाल किसी के भी जेहन में आ सकता है। लगातार हार से हताश कांग्रेस हर मैटर में सहानुभूति वेव तलाशने लगती है। इसमें भी ऐसा ही हो रहा है। बतौर राजनीतिक विश्लेषक मैं इसे कहीं से कहीं तक गलत भी नहीं मानता। सियासत में सहानुभूति का भी उतना ही रोल होता है जितना नेता के किए गए कामों का।
तीसरी ताकतें अपने निजी स्वार्थों के चलते एक हो नहीं सकती, कांग्रेस के साथ वे आकर अपनी जमीन गंवा नहीं सकती। ऐसे में मौजूदा राजनीतिक माहौल का भाजपा भरपूर फायदा उठाना चाहती है। इसमें भी कोई गलत बात नहीं।
सूरत कोर्ट में राहुल को सजा के बाद क्या-क्या होगा यह तो राजनीतिक पंडितों ने बता ही दिया, लेकिन इस मामले में क्या वास्तव में इतना दम है कि राहुल को दो वर्ष की सजा हो जाए। चलिए इसे खंगालते हैं।
पहले मामला समझिए
2019 में कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी ने अपनी स्पीच में कहा था सारे चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों होता है? बस इसे लेकर गुजरात के विधायक पूर्णेश मोदी बुरा मान गए। वे इसे कोर्ट में ले गए। उन्होंने दलील दी कि वे इससे आहत हैं। क्योंकि राहुल ने समस्त मोदी समाज को चोर कहा है। यह इंटरप्रिटेशन कोर्ट ने स्वीकारा। राहुल को धारा 400 और 500 के तहत सजा सुना दी गई।
तो क्या यह इतनी बड़ी बात है?
वैसे तो इसे लेकर अच्छी दलीलें दी जा सकती थी। लेकिन राहुल के वकील ने इसे बहुत ही कैजुअली ट्रीट किया। पहले तो वे कोर्ट को यह समझाने की कोशिश करते रहे कि यह एक राजनीतिक भाषण था, इसे लेकर कोर्ट इतना गंभीर न हो। फिर वह राजनीतिक प्रतिद्वंदी होने के नाते अपने स्पर्धी के विरुद्ध की गई टिप्पणी बताने लगे। जब इन सबसे भी बात नहीं बनी तो राहुल 3 बार पेश होकर कहते रहे उन्होंने किसी की भावनाओं को नहीं आहत किया। वकील ने एक और कैजुअल एप्रोच अपनाते हुए कहा इस भाषण से न कोई घायल हुआ न हताहत। इस तरह से वकील लगातार इस केस को मामूली मानते रहे। बस यहीं से केस बिगड़ता चला गया। इसके पीछे वजह जो भी हो, लेकिन केस में अगर डिफेंस अच्छा होता तो राहुल को माफी मांगने के लिए कहकर बरी किया जा सकता था।
क्या इसमें भाजपा का भी हाथ है?
कोर्ट संयोग से गुजरात राज्य की है। इसलिए गैरजिम्मेदाराना लोग यह कह सकते हैं। किंतु ऐसा नहीं है। केस तो केस होता है। अगर इसमें दम ही न होती तो क्या एक सूरत की छोटी सी कोर्ट ऐसा फैसला सुना सकती थी? यह इतना आसान तो कम से कम नहीं था।
तो इसका राजनीतिक फायदा किसे मिलेगा?
राजनीतिक रूप से यह भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद है, किंतु राहुल की कांग्रेस भी इसे लपक रही है। कांग्रेस को लग रहा भारत जोड़ो यात्रा, लंदन में स्पीच, संसद में माफी नहीं मांगने जैसे स्टैंड उन्हें मोदी के विरुद्ध एकमत से देश का नेता बना रहे हैं। तीसरी शक्तियों को भी कमजोर कांग्रेस, कमजोर नेता नहीं चाहिए। कांग्रेस सोच रही है, हो सकता है बाकी विपक्षी दल इन घटनाओं में राहुल को मजबूत होता हुआ देख पाएं। यह ख्याल कच्चा तो नहीं, पर फायदेमंद भी नहीं। लेकिन कांग्रेस के पास कोई विकल्प भी नहीं। भाजपा के लिए जरूर यह फायदेमंद है। क्योंकि 2020 से 2022 तक जो विपक्षी एकता की कोशिश हुई वह महत्वपूर्ण है। भले ही यह एकजुटता नहीं दिखी, परंतु प्रयास बुनियादी थे। ऐसे में इससे पहले की कमजोर कांग्रेस और कमजोर कांग्रेस नेता का कोई विकल्प उभरे भाजपा चाहती है राहुल को स्पर्धा में लाया जाए। इसमें सूरत कोर्ट जैसे फैसले संयोग से सरहयोगी बन रहे हैं। कांग्रेस मुक्त भारत का नारा डस्टबिन में डालना इसी का एक हिस्सा था। संघ द्वारा विपक्ष को लेकर सकारात्मक रुख भी इसकी ही कवायद है।
मोदी यह तो जानते हैं
मोदी जानते हैं, उनके सांसद उनके बिना नहीं जीत पाएंगे। लेकिन कांग्रेस बिना राहुल या किसी बड़े चेहरे के भी जीतने में सक्षम है। इसलिए पूरी कोशिश हो कि देश में तुलनाएं खड़ी हों। राहुल और मोदी की। राष्ट्रवाद और गैरराष्ट्रवाद की। हिंदू और गैरहिंदू की। राहुल इस योजना को पूरा करने में कांग्रेस के आउटसोर्स्ड ब्रेंस के कारण सुलभ हैं।
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