Barun Sakhajee
बरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक
पिछले दो आर्टिकल आप देख सकते हैं, इनमें एक में मैंने बताया था राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर भाजपा क्या नीति अपना रही है। इसमें 6 फॉर्मूले दिए गए थे, आप नीचे लिंक में पढ़ सकते हैं। दूसरे आर्टिकल में मैंने बताया था मोदी 75 वर्ष के होते ही क्या करेंगे, इसका लिंक भी आप नीचे देख सकते हैं।
अब मैं आपके साथ बात करूंगा भाजपा में अगली जोड़ी की। वर्तमान में अमित शाह और मोदी की सुपरहिट जोड़ी 2014 से अब तक सुपर सक्सेस कही जा सकती है। इसी जोड़ी के नेतृत्व और रणनीतिक निर्णयों में भाजपा ने देश के 3 लोकसभा चुनावों में से सभी 3 जीते हैं। जोड़ी की सबसे बड़ी सफलता 2019 के लोकसभा चुनाव रहे। जब सारी विरोधी पार्टियां भाजपा के नोटबंदी, जीएसटी के कारण खराब परिणाम को लेकर आशान्वित थी। इस जोड़ी ने देश में 2014 से अबतक 72 विधानसभा चुनावों में से 30 अकेले दम पर और 11 गठबंधन में जीते हैं यानि कुल 41 चुनाव जीते हैं। जबकि इनमें सबसे ज्यादा अच्छा प्रदर्शन यूपी, महाराष्ट्र, असम, एमपी, गुजरात, हरियाणा और ओडिशा को कहा जा सकता है। जोड़ी के प्रदर्शन को राज्यसभा से आंकेंगे तो 2014 में भाजपा अपने दम पर 45 सीटों पर थी जबकि एनडीए की सीटों की संख्या 58 थी। अब 2024 की स्थिति में 96 सीटों पर भाजपा अपने दम पर जबकि एनडीए 112 राज्यसभा सीटों पर है।
सफलता का रेशो
एक सरकार के रूप में बड़ी कामयाबियों में गिनेंगे तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन से डोकलाम मुद्दे पर आंखों में आंखें डालकर निपटा गया है। पाकिस्तान अब भारत में चर्चा का विषय नहीं रहा। अमेरिका, यूरोप के देश भारत को विश्व नेता के रूप में देखने लगे हैं। पड़ोसियों श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश में हुए सत्ता संग्राम और आर्थिक दिवालिएपन से भारत बेअसर रहा है। कोरोना जैसी महामारी के दौरान भारत अपने डेढ़ सौ करोड़ लोगों को सुरक्षित रखने में कामयाब रहा है। दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना वैक्सीनेशन भारत ने बिना किसी अव्यवस्था के निपटाया है। आंतरिक मुद्दों पर यह जोड़ी सकारात्मक रूप से काम करती नजर आई है। कश्मीर के अलगाववाद को इतिहास बनाया। सुंदर, सामान्य परिवेश में घुले लेफ्ट कीट-पतंगों के टूल्स को चिन्हित किया है। इनका इलाज जारी है। इस तरह से देखें तो यह जोड़ी सुपरहिट जोड़ी है।
अब बात करते हैं अगला जोड़ा भाजपा के भीतर किन दो नेताओं का बनने जा रहा है। वर्तमान में भाजपा के पास 21 प्रदेश हैं, जिनमें 14 में वह अपने दम पर है। अगर मुख्यमंत्रियों में देखें तो हेमंता बिस्वसरमा और योगी आदित्यनाथ एक ही पिच के नेता हैं। हेमंता का बैकग्राउंड कांग्रेस है, लेकिन उनकी कार्यशैली खांटी भाजपाई और संघी विमर्श की है। इसलिए फिलहाल उन्हें यहा ड्रॉप करते हैं। अब बात योगी की। योगी की कार्यशैली और पूरा राजनीतिक चित्रण यानि पोजिंग विशुद्ध हिंदुत्ववादी, विकासवादी, निर्णायक, कड़क नेता की है। ऐसे में वे एक जोड़ी में एक भाग तो निश्चित हो सकते हैं।
अब उनके साथ किसे जोड़ा जाए यह भाजपा में यक्ष प्रश्न है। योगी आदित्यनाथ के साथ यूं जोड़ने के लिए भाजपा के पास अनंत नेता हैं, किंतु योगी के साथ उनकी ट्यूनिंग वैसी ही होनी चाहिए जैसी कि मोदी और शाह के बीच है। दरअसल थोड़ा पीछे चलते हैं। अटल-आडवाणी की जोड़ी पहली ऐसी जोड़ी रही, जिसने भाजपा के प्रधानमंत्री रूप में सरकार बनाई। लेकिन यह अपने टेन्योर को एक्सटेंड न कर पाई, क्योंकि ये दोनों ही नेता एक दूसरे के समानांतर थे। यानि दोनों को ही नेतृत्व करना था। इसी कारण मोदी और शाह की जोड़ी इनकी तुलना में ज्यादा सफल है, क्योंकि इस जोड़ी में शाह मोदी के बरक्स खुद को कभी नहीं रखते।
शाह मोदी से करीब 15 साल छोटे हैं। वे उनके साथ 90 के दशक से हैं। लगभग 40 वर्षों से दोनों का साथ है, किंतु कभी किसी सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर अमित शाह या नरेंद्र मोदी के बीच कोई मनमुटाव नहीं देखने को मिला। बल्कि शाह मोदी के पैर छूते हैं। उन्हें सार्वजनिक रूप से सदैव बड़ा और मूर्तिमान साबित करते हैं। वे कभी मोदी को भाई जैसा या कुछ और अनौपचारिक संबोधन नहीं देते। ठीक ऐसे ही मोदी का भी व्यवहार रहता है। इसका असर ये हुआ कि भाजपा के भीतर शाह मजबूत होते गए और मोदी भीतर और बाहर दोनों जगह महामजबूत होते गए। ऐसी ही जोड़ी की जरूरत फिलहाल भारत को अगले 2050 तक है। मोदी का जन्म 1950 का है। और शाह का 1964 का। जाहिर है, मोदी 2050 तक सौ साल के और शाह 85 साल के हो जाएंगे। मैं मंगल कामना करता हूं ऐसा ही हो।
यह तो बात हुई भावनाओं की। अब बात करते हैं व्यवहार की। व्यवहार में अमित शाह 2029 के बाद का भी समय भरपूर दे सकते हैं। 2029 को अभी 4 साल और हैं। उसके बाद के 5 साल यानि वे 2034 तक भलीभांति वे राजनीति में फिट हैं। तब उनकी उम्र 70 वर्ष हो रही होगी। मोदी इस समय 84 वर्ष के हो चुके होंगे। जबकि योगी आदित्यनाथ का जन्म 1972 का है। वे मोदी से 22 साल और अमित शाह से 8 साल छोटे हैं। किंतु आते बहुत बड़े राज्य से हैं और चलाते इतने बड़े राज्य को हैं जहां से देश का एजेंडा तय होता है। योगी ने अपने अब तक के 2017 से 8 साल के कार्यकाल को भरपूर दम दी है। काम भी किया है, नाम भी किया है और विपक्षियों में व्यर्थ की सियासत और शिगूफेबाजी को लेकर परास्तभाव भी पैदा किया है। उनके अब तक के प्रदर्शन को देखें तो वे जोड़ी में नंबर-1 की पोजीशन में दिखाई देते हैं। अब नंबर-2 में मौजूदा नंबर-2 अमित शाह को ही कंटीन्यू रखा जाए तो यह थोड़ा रिस्की है। अमित शाह के अपने राजनीतिक जीवन और प्रदर्शन को देखते हुए वे नंबर-1 बनने के हर पैमाने पर योग्य हैं। बेशक वे अच्छे रणनीतिकार और मजबूत निर्णायक नेता हैं। वे ऊहापोह और अजमंजस को अपनी शब्दावली में स्थान नहीं देते। किंतु क्या उन्हें देश एक नंबर के रूप में स्वीकार सकता है?
इस प्रश्न को ऐसा ही छोड़ देते हैं। नंबर-1 के रूप में फिलहाल तो योगी आदित्यनाथ एक सूर्य बनकर उग रहे हैं। स्वाभाविक है, अपनी निजी आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं से परे काम करने वाला राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इस सूर्य को देख रहा है। भाजपा का सांगठनिक ढांचा भी बहुत स्पष्टता से इस बात को समझ रहा है। मोदी का हाल ही में लेक्स फ्रीडमैन के साथ इंटरव्यू मेरे मन में इस दुविधा को पूरी तरह से खत्म करता है कि मोदी एक आध्यात्मिक पुरुष हैं या नहीं। मैं मान चुका हूं धर्म, ईश्वर, कर्म, विचार, विमर्श, दर्शन के सभी भागों की बात करें तो मोदी बिल्कुल सुलझे हुए व्यक्तित्व हैं। वे वैराग्य भाव से अपना काम करते हैं। राजनीति में हार-जीत और अपने मूल विचार को आगे बढ़ाने के लिए जो आवश्यक होता है वह करना कोई बुराई नहीं। वह एक समान मताधिकार वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक गुण है न कि बुराई। इस इंटरव्यू के बाद मैं दावे से कह सकता हूं मोदी के मन में योगी के लिए न तो उपेक्षा भाव है और न ही अमित शाह के लिए आकर्षण भाव। और स्पर्धा भाव तो बिल्कुल भी नहीं। वह एक आध्यात्मिक युग पुरुष राजनेता के रूप में तटस्थ, साक्षी और न्यायवादी होकर सोच सकते हैं कि देश, जनता, दुनिया, दल के लिए क्या सर्वोत्तम है। और वे ऐसा सिर्फ सोच ही नहीं सकते, बल्कि वे ऐसा निश्चित ही कर सकते हैं। मतलब बहुत साफ है मोदी की तरफ से नंबर-1 को लेकर अगर योगी और अमित शाह में कई चयन-चुनाव की बात आती है तो वे अपने निर्णय में बेहिचक रहेंगे। ठीक इसी तरह से देश अमित शाह को मानता है। वे भी सुस्पष्ट वैचारिक रूप से गढ़े, मढ़े और लड़े हैं। उनका नजरिया अगर हमने 2014 के बाद से जानना शुरू किया है तो कमोबेश पांच सौ इंटरव्यूज के जरिए उन्हें देश सुन, समझ, देख सका है। ये इंटरव्यू कहते हैं अमित शाह धाकड़ लौह नेता हैं। वे वल्लभ भाई पटेल के समान सिर्फ और सिर्फ देश के बारे में सोचने वाले हैं। लाख लोकप्रिय होकर भी पटेल की तरह नेहरू के लिए गद्दी बेहिचक छोड़ देने वाले हैं। गांधीजी के राजनीतिक कपट के बावजूद पटेल डिगे नहीं थे। पटेल और शाह में फर्क सिर्फ कालखंडों का है।
अमित शाह नंबर-2 के लिए भी फिर से तैयार हो सकते हैं, किंतु अपने से 8 साल छोटे नेता को नंबर-1 बनाकर पेश करना उनके लिए कठिन होगा। कठिन किसी महत्वाकांक्षा के प्रभाव से नहीं बल्कि इसलिए होगा, क्योंकि नंबर-1 को नंबर-2 की ओर से पूजित होना चाहिए। वरना पार्टी समान नंबर-1 और नंबर-2 के अटल-आडवाणी के रूप में नतीजे भुगत चुकी है। ऐसे में संभव है अमित शाह ऐसे नंबर बन जाएं जो न तो नंबर-2 रहें न नंबर-1 लेकिन वे रहें सुपर नंबर। कहने का मतलब अमित शाह 2032 के राष्ट्रपति हो सकते हैं और आंतरिक रूप से दल के सुप्रीमो भी। ऐसे में नंबर-1 और जो भी नंबर-2 होगा वह इस सुपर नंबर के साथ सिंक्रोनाइज होकर काम करने में कंफर्टेबल हो सकेगा। यद्यपि यह न तो भाजपा की परिपाटी है न संघ की और हिंदुत्व की तो कतई नहीं।
बहरहाल अभी नंबर-2 की तलाश करते हैं। योगी के साथ अभी तक कोई भी नंबर-2 में नजर नहीं आता। यूपी से तो कोई भी नहीं। हेमंता को अगर नंबर-2 पर लगाते हैं तो वे नंबर-1 से कुछ ही पीछे रहेंगे। उनका फ्लेवर भी नंबर-1 योगी जैसा है। इसलिए उन्हें फिलहाल नंबर-2 देना ठीक नहीं। कश्मीर से कन्यकुमारी तक नंबर-2 की तलाश में भाजपा के झोले में कुछ नेता दिखाई देते हैं। जैसे कि शिवराज सिंह चौहान, जेपी नड्डा, धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडनवीस, विनोद तावड़े, अरुण सिंह और संघ से सौदान सिंह, शिवप्रकाश, बीएल संतोष या लंबी फेहरिश्त है। इनमें से कोई भी हो सकते हैं। अभी से यह कहना ठीक नहीं होगा, किंतु शिवराज सिंह चौहान चुनावी नेता भी हैं और गैरचुनावी भी। इसिलए वे ज्यादा नंबर-2 की पोजीशन होल्ड करने में सक्षम हैं।
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