Publish Date - May 15, 2023 / 02:19 PM IST,
Updated On - May 15, 2023 / 02:19 PM IST
Barun Sakhajee, Associate Executive Editor, IBC24
बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक
पिछली बार मैंने आपको बताया था बस्तर में क्या राजनीतिक परिदृश्य उभर रहा है। इसे आप लघुत्तम पेज पर पुरानी पोस्ट में देख सकते हैं। इसके मुताबिक बस्तर की 12 सीटों में कांग्रेस और भाजपा के बीच नजदीकी फाइट नजर आ रही है। इस विश्लेषण में कांग्रेस को बस्तर में भारी नुकसान दिख रहा है, जबकि भाजपा अगर अपनी रणनीति को और सुधारे तो कुछ बड़ा यहां हासिल कर सकती है।
आज बात करेंगे बिलासपुर संभाग की। बिलासपुर संभाग छत्तीसगढ़ का विधानसभा की दृष्टि से सबसे बड़ा इलाका है। इस इलाके की 24 विधानसभा सीटें 8 जिले और 4 लोकसभा क्षेत्रों में फैली हुई हैं। बिलासपुर राजनीतिक रूप से भी अधिक मुखर और प्रतिवादी है। वर्तमान में यहां की 24 सीटों में से 10 सीटें आरक्षित हैं, जिनमें 6 जनजाति समाज के लिए और 4 एससी समाज की सीटें हैं।
अभी कांग्रेस का दबदबा, लेकिन भाजपा की गहरी पैठ
दलगत स्थिति 2018 के मुताबिक कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 12, भाजपा ने 7, जोगी कांग्रेस ने 3 और बसपा ने 2 सीटें जीती थी। बाद में मरवाही उपचुनाव के बाद यहां कांग्रेस की सीटें बढ़कर 13 हो गईं और जोगी की घटकर 2 बची। हाल ही में जोगी कांग्रेस से धरमजीत सिंह के निष्कासन के बाद तकनीकी तौर पर देखें तो अब जोगी कांग्रेस की सिर्फ एक सीट कोटा ही बची है।
सारंगढ़, सक्ती, पेंड्रा जिला बना कांग्रेस का सहारा
2008 में सारंगढ़ लोकसभा परिसीमन में समाप्त होने के बाद से ही यह चर्चा थी कि अब इसे जिला मुख्यालय बनाया जाना चाहिए। इस बात को भाजपा ने तवज्जो कभी नहीं दी, लेकिन कांग्रेस ने इसे जिला बना दिया। ऐसे ही सक्ती और पेंड्रा में भी कांग्रेस ने एज लिया है।
आरिक्षत सीटों में यह है मौजूदा गणित
इस इलाक की 6 जनजाति आरक्षित सीटों में से जहां भाजपा के पास एक ननकीराम कंवर की रामपुर सीट ही है। बाकी 5 सीटें कांग्रेस के पास हैं। इसके ठीक उलट एससी की 4 आरक्षित सीटों में से 2 भाजपा के पास हैं 1 बसपा और 1 कांग्रेस के पास है।
समझिए, बिलासपुर का जातिवार गणित
बिलासपुर संभाग की 24 विधानसभा सीटों में साल 2018 में 78 लाख 55 हजार 460 वोटर्स थे। यानि प्रति सीट 3 लाख 27 हजार औसत मतदाता हुए। इनमें 10 सीटें रिजर्व हैं। इन 10 रिजर्व सीटों में मतादाताओं की संख्या 17 लाख 29 हजार 144 थी, यानि 1 लाख 73 हजार औसतन। कोई भी विधासनभा जब आरक्षित की जाती है तो यह माना जाता है कि यहां 60 से 70 परसेंट आरक्षी समाज के लोगों की आबादी होगी। इस लिहाज से देखें तो यहां आरक्षी समाज एसटी और एससी वोटर्स की संख्या 11 लाख 80 हजार थी। अब बात उन 4 सीटों की जो एससी के लिए आरक्षित हैं। इनमें औसतन 2 लाख 33 हजार वोटर हैं। यहां कैल्कुलेटिव आंकड़ों के मुताबिक एससी मतदाता 6 लाख 50 हजार हैं। यह बात 2018 की है। अब 5 साल बाद चुनाव जब होंगे तो प्रदेश में 1 करोड़ 85 लाख वोटर्स की तुलना में 2 करोड़ 30 लाख वोटर्स होंगे। यानि बिलासपुर की सभी 24 सीटों में भी मतदाताओं की संख्या 78 लाख से बढ़कर 90 लाख तक पहुंच सकती है। इसी अनुपात में एसटी और एससी की संख्या बढ़ेगी। अब बात ओबीसी की करते हैं। कोरबा, जांजगीर ऐसे इलाके हैं जहां साहू नंबर-1 के साथ देवांगन, यादव, कुर्मी अच्छी संख्या में हैं। अन्य पिछड़ी जातियों में कोरबा-जांजगीर में अच्छा वर्चस्व है। बिलासपुर संभाग में गैरसंस्थागत आंकड़ों के मुताबिक 2023 के चुनावों में 24 सीटों में अनुमानतः 90 लाख वोटर्स में से लगभग 20 लाख एसटी, 12 लाख एससी, 35 लाख ओबीसी, 2 लाख मुस्लिम, ढाई लाख ईसाई और सामान्य वर्ग के लगभग 19 लाख मतदाता होंगे।
साहू समाज का दबदबा
ओबीसी में साहू समाज सबसे ज्यादा है। इनके यहां 35 लाख ओबीसी वोट्स में 40 फीसदी तक अकेले साहू हैं। यानि 14 लाख साहू मतदाता यहां आते हैं। जबकि देवांगन, कुर्मी, यादव व अन्य पिछड़ी जातियां मिलाकर 19 लाख हैं। इनमें भी कुर्मी सर्वाधिक 10 लाख तक हैं। 19 लाख सामान्य में कुछ सीटों पर ब्राह्मण, कुछ पर वैश्य और कुछ पर ठाकुर जातियों का प्रभाव है।
भाजपा की रणनीति में साहू पहले
भाजपा ने बिलासपुर संभाग की 24 सीटों में जो वोट 2018 में हासिल किए थे। वही वोट 2019 में लगभग डेढ़ गुना हो गए थे। माना गया कि साहू भाजपा के प्रतिबद्ध वोटर्स हैं, वे नाराजगी भुलाकर वापस लौटे हैं। इसी रणनीति के तहत बिलासपुर संभाग के ही अरुण साव को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। साव साहू समाज से ताल्लुक रखते हैं। बिलासपुर के सांसद हैं।
पिछली बार भाजपा का साहुओं पर दांव नहीं आया था काम
भाजपा यह समझ चुकी है कि सिर्फ साहू समाज के उम्मीदवार उतार देने भर से काम नहीं चलेगा, क्योंकि 2018 में भाजपा ने सर्वाधिक 14 साहू समाज के उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से धमतरी से रंजना डिपेंद्र साहू ही जीत पाई थी। लेकिन जब 2019 के लोकसभा चुनाव आए तो भाजपा ने अनारक्षित सीटों पर सबसे ज्यादा ओबीसी प्रत्याशियों को उतारा। नतीजे में बिलासपुर से अरुण साव और महासमुंद से चुन्नीलाल साहू जीत गए। यानि भाजपा ने 2 साहुओं को लोकसभा में उतारा, दोनो जीते। यह जीत भी अच्छे अंतराल से दिखी। वहीं अन्य प्रत्याशियों में एक कुर्मी को उतारा था तो वह भी जीत गए। 2 ब्राह्मण उतारे थे, एक जीते एक हारे। भाजपा मानती है साहू उसके साथ आ गए हैं।
कांग्रेस कमतर नहीं, पर साहुओं में पैठ कमजोर
साहू मतदाताओं में कांग्रेस की पैठ अपेक्षाकृत कम हुई है। कारण धर्म जागरण है। बीते साढ़े 4 साल में राष्ट्रीय और प्रादेशिक घटनाक्रमों में धर्म से जुड़े मसले उठे हैं। जैसे कि बीरनपुर हिंसा में साहू समाज के युवक को पीड़ित के रूप में उभारा जाना, बस्तर में धर्मांतरण जनजाति के व्यक्ति को पीड़ित बनाया जाना, कवर्धा झंडा कांड में साहू युवक को पीड़ित बनाया जाना भाजपा की राजनीतिक रणनीति रही है। वहीं साहू प्रदेश अध्यक्ष के बाद यह प्रतिनिधित्व लौटता दिख रहा है। इसके जवाब में कांग्रेस की तैयारियां कमजोर दिख रही हैं।
क्या होगा रायगढ़ की सीटों का गणित?
यह बहुत सीधा सवाल है। बेशक इसका जवाब भी सीधा होना चाहिए। शुरू करते हैं रायगढ़-सारंगढ़ जिले की 5 विधानसभा सीटों से, जो अभी सभी कांग्रेस के पास हैं। इनमें 2 अनारक्षित, 2 जनजाति आरिक्षत और 1 एससी आरिक्षत है। पिछली बार खरसिया से ओपी चौधरी ने कांग्रेस के उमेश पटेल को खासी चुनौती दी थी, लेकिन सीट अंततः नहीं निकल सकी। इस बार फिर अगर ओपी यहां आते हैं तो अबकी उमेश उन्हें अच्छी चुनौती दे सकते हैं। कहा जा सकता है कि यह सीट हल्की सी कांग्रेस की तरफ झुकी है। रायगढ़ में पिछले बार भाजपा के उम्मीदवार रहे पूर्व विधायक रौशन अग्रवाल का निधन हो चुका है। 2018 के भाजपा के बागी विनोद अग्रवाल की वापसी हो गई है। माना जा रहा है कांग्रेस के वर्तमान विधायक प्रकाश नायक 2023 के हिसाब से उतने फिट नहीं हैं, जितने जीतने के लिए चाहिए। ऐसी स्थिति में अगर विनोद अग्रवाल भाजपा से नायक को चुनौती देंगे तो नायक के लिए मुश्किल होगी। जबकि एक नाम ओपी चौधरी का भी है, जो इस सीट पर अग्रवाल की तुलना में ज्यादा मजबूती से भाजपा के पक्ष में झुका सकते हैं। रायगढ़ नगरीय सीट होने के कारण भाजपा के लिए आसान हो सकती है। सारंगढ़ में उत्तरी जांगड़े कांग्रेस की विधायक हैं। कांग्रेस ने इसे जिला बनाया है। इसलिए यहां भाजपा को 2023 में वेट करना पड़ सकता है। लैलुंगा से चक्रधर सिदार आते हैं। आयु का एक फैक्टर है। कांग्रेस उन्हें दोहराती है तो थोड़ी असहज स्थिति बन सकती है। धरमजयगढ़ में लालजीत राठिया कांग्रेस का झंडा बुलंद कर सकते हैं, लेकिन आसानी से नहीं। चूंकि वे रायगढ़ लोकसभा लड़ चुके हैं, जहां भाजपा की गोमती साय से हार गए थे, जबकि गोमती का राठिया के सामने राजनीतिक करियर बहुत छोटा रहा है। कह सकते हैं रायगढ़ जिले की 5 सीटों में 2 भाजपा 3 कांग्रेस का रेशो बन सकता है।
जांजगीर ने सबको बांटा था बराबर, अब क्या होगा?
जांजगीर ने 2018 के चुनावों में कांग्रेस, भाजपा और बसपा तीनों को अपनी 6 सीटों में से 2-2 दी थी। अबकी चरणदास महंत चुनावों सक्ती से लड़ेंगे या नहीं कहना मुश्किल है। बसपा-जोगी गठबंधन भी नदारत है। ऐसी स्थिति में सौरभ सिंह जो जोगी पार्टी के बीच में ताकतवर होने के चलते जीते थे, वे अब अकेले होने की स्थिति में क्या कर पाएंगे, यह सब सवाल हैं। चलिए चलते हैं जांजगीर के राजनीतिक हालात देखने। शहरी सीट जांजगीर में भाजपा ने कुर्मी नेता नारायण चंदेल को नेताप्रतिपक्ष बनाकर जिले को साधने की कोशिश की है। साहू, कुर्मी, राठौर और एससी वोटों के गणित के हिसाब से यह सीट चंदेल की तरफ हल्की सी झुकी हुई है। चंद्रपुर से नाम ओपी चौधरी का आ रहा है, जबकि यह इतिहास में जूदेव परिवार को देने का रिवाज रहा है। लेकिन अब जूदेव परिवार से नेता तो बहुत हैं, लेकिन दिलीप सिंह जूदेव के कद के नहीं। 2018 में जब जोगी गठबंधन में यह सीट बसपा को दे दी गई और बसपा ने गीतांजलि पटेल पर दांव खेलना तय कर लिया तो रामकुमार चुनाव से ऐन पहले भूपेश से मिलकर टिकट कन्फर्म करवा लाए और सीट निकाल ली। गीतांजलि पटेल ने टक्कर तो अच्छी दी, लेकिन जीत न सकी। भाजपा नंबर-3 पर जा पहुंची। ऐसी स्थिति में ओपी जादू कर पाएंगे कहना मुश्किल है। जूदेव परिवार से कौन आएगा, भाजपा का भाग्य यहां इस पर निर्भर करेगा। पामगढ़ से नवयुवती इंदू बंजारे बसपा से जीती हैं और जैजैपुर से केशव चंद्रा भी बसपा से हैं। केशव की आमदरफ्त पिछले दिनों कांग्रेसी गलियारों में देखी गई थी। कहा जा सकता है पिछले चुनावी ट्रेंड को देखें तो एससी वोटर बहुत तेजी से भाजपा की तरफ शिफ्ट हुआ है। मायावती के बाद देशभर में कोई एक नेता इन वोट्स को बांधे नहीं रख पा रहा। कांग्रेस से यह वोटर यूं ही दूर होता जा रहा है। 2017 के बाद से ही भाजपा बसपा के वोटों को धीरे-धीरे बसपा के थैले से अपने थैले में भर रही है। इसलिए जांजगीर की इन दो सीटों पर मुमकिन है बसपा न लड़ने का ऐलान कर दे। तबकी स्थिति में भाजपा यहां जोर मार सकती है। वर्तमान विधायक भी कांग्रेस-भाजपा में बंट जाएं। सौरभ सिंह अकलतरा भी इसी तरह के ट्रेंड से आए हैं। इस लिहाज से देखें तो जांजगीर में 4 और 2 का अनुपात बन जाए। कांग्रेस को फिलवक्त के इस राजनीतिक रेशो को पलटने के लिए महंत को आगे आना होगा। यानि जिले में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन महंत से होकर ही गुजर सकता है।
अब कोरबा चलते हैं, कांग्रेस दमदार, लेकिन…
कोरबा में अभी 4 में से 3 सीटें कांग्रेस के पास हैं। कोरबा सिटी तो परंपरागत रूप से कांग्रेस की सीट है। कटघोरा भाजपा से छीनी है। रामपुर के ननकी भाजपा के ऐसे विधायक हैं जो 2018 के चुनावों में 1 नंबर सीट से 19 नंबर सीट तक हारती भाजपा का 20 नंबर सीट रामपुर में उदय कराने वाले हैं। उनके परंपरागत प्रतिद्विंदी श्याम कंवर रहे हैं। इस बार ननकी ताकत दिखाने की कोशिश करेंगे। कटघोरा में टक्कर है, भाजपा प्रत्याशी अच्छा दे तो मजबूत है। पाली में हालात कांग्रेस के पक्ष में हैं। फिर भी भाजपा की मेहनत इसे नजदीकी मुकाबले में बदल सकती है। सिटी कोरबा में कांग्रेस ठीक है। यानि कोरबा में 2-2 का रेशो हो सकता है।
बिलासपुर-मुंगेली, पेंड्रा चलते हैं
बिलासपुर में अभी भाजपा की सीटें ज्यादा हैं। जोगी कांग्रेस भी एक सीट के साथ काबिज है। मुंगेली ऐसे जिलों में शुमार है जहां 2018 में कांग्रेस की आंधी में भी खाता नहीं खुल सका। सिटी बिलासपुर कांग्रेस की मौजूदा मेहनत से पार्टी आशान्वित हो सकती है। बेलतरा में हालात बदलने के लिए मजबूत कांग्रेस प्रत्याशी चाहिए, हालात पलटे जा सकते हैं। मस्तूरी में भाजपा की मेहनत पर बिना बसपा के पानी फेरना अभी मुश्किल है। बिल्हा से अगर प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव आते हैं तो सीट टक्कर की हो जाएगी। बंटी कांग्रेस महिला प्रत्याशियों पर दांव लगाए तो हालात बदल भी सकते हैं। तखतपुर में भाजपा को प्रत्याशी की तलाश में बहुत मेहनत करना होगी। कांग्रेस कमजोर होकर भी यहां भाजपा के पास अच्छे प्रत्याशी के अभाव में आगे दिखती है। 2018 में भी भाजपा प्रत्याशी मजबूत होता तो हालात बदल सकते थे। कोटा में भाजपा को उदय का अवसर है, किंतु चर्चा में मौजूदा विधायक की गृहदल में वापसी भी चल रही है। तब टक्कर बढ़ेगी। मुंगेली में कांग्रेस की वही स्थिति है जो तखतपुर में भाजपा की है। लोरमी में धरमजीत सिंह मजबूत हैं, लेकिन उनकी पार्टी नहीं है। अब वे कहां जाएंगे इस पर निर्भर करेगा। मरवाही में डॉ. ध्रुव के रूप में कांग्रेस के पास सरल व्यक्ति है तो भाजपा को अभी इंतजार करना पड़ सकता है। यानि कुल जमा मुंगेली, बिलासपुर और पेंड्रा जिले की कुल 9 सीटों के अनुपात में भाजपा 4, कांग्रेस 4 और एक सीट धरमजीत सिंह पर निर्भर करेगी। हालांकि वे निर्दलीय दम दिखा पाएंगे इसमें शक है, किंतु जाएंगे किसके साथ यह मायने रखेगा।
तो क्या होगा अंततः बिलासपुर संभाग में?
सवाल तो यही सबसे बड़ा है। आखिर होगा क्या बिलासपुर की 24 सीटों में। फिलवक्त के मुताबिक रायगढ़-सारंगढ़ की 5 सीटों में से कांग्रेस 3 पर अच्छी दिख रही है, जबकि बाकी पर भाजपा। जांजगीर में 4-2 का सशर्त रेशो है। शर्त मतलब महंत सक्रिय हुए तो यह कांग्रेस के पक्ष में बदल सकता है। कोरबा में 2-2 का रेशो है ही। बिलासपुर, मुंगेली, पेंड्रा में 9 सीटें हैं। इन्हें देखें तो 4-4 और एक न्यट्रालाइज करके चलते हैं। अब पूरी स्थिति बनती है, जिसमें भाजपा बिलासपुर, मुंगेली, पेंड्रा और जांजगीर जिलों में अच्छा करते हुए 12 तक पहुंच सकती है कांग्रेस भी पीछे नहीं रहेगी, वह भी 11 तक पहुंच जाएगी। 1 सीट धरमजीत सिंह के निर्णय पर निर्भर करेगी।
सारांश यह है कि बिलासपुर संभाग में भाजपा गैन कर रही है। वह 7 से 12 पर पहुंच रही है, लेकिन कांग्रेस अधिक लूज नहीं कर रही। वह भी 11 पर रह सकती है और अगर धरमजीत आ गए तो 12-12 का रेशो बन जाएगा। 2018 के मुकाबले भाजपा ज्यादा गैन करेगी, कांग्रेस एक लूज करेगी, लेकिन बसपा, जोगी की गैरमौजूदगी में।
यानि अब तक मैंने बस्तर की 12 और बिलासपुर की 24 सीटों का जमीनी विश्लेषण किया है। ये कुल 36 सीटें होती हैं। इन्हें करीब से देखें तो भाजपा 12 प्लस 6 या 7 मिलाकर 18 या 19 पर पहुंच रही है। कांग्रेस भी बस्तर से 5 या 6 में बिलासपुर की 11 या 12 मिलाकर 17 या 18 पर पहुंचती दिख रही है। यानि दो बड़े संभागों में टक्कर कांटे की नजर आ रही है।
एक बार फिर सुन लीजिए, बस्तर के विश्लेषण का वीडियो लिंक डिस्क्रिप्शन में दिया है, वह भी देखिए। फिर समझिए छत्तीसगढ़ में अब बस्तर और बिलासपुर संभाग में क्या सिनेरियो उभर रहा है।