NindakNiyre: बनारस की सरजमी पर तो नहीं लेकिन हवा में जरूर नजर आते हैं मोदी

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  • Publish Date - August 23, 2024 / 05:03 PM IST,
    Updated On - August 23, 2024 / 05:03 PM IST

Associate Executive Editor, IBC24

बरुण सखाजी. राजनीतिक विश्लेषक

काशी भारत की धार्मिक आत्मा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक थाती। बतौर प्राइम मिनिस्टर मोदी ने अपना बास्ता उत्तरप्रदेश से जोड़े रखा है। वे यहां से तीसरी बार सांसद हैं। मुख्यमंत्री के रूप में जिस तरह से उनका जुड़ाव मणिनगर, बड़नगर से रहा वैसे ही पीएम के रूप में वे उत्तर भारत के इस क्षेत्र से संबद्ध हैं। देश, दुनिया में बड़े नेता बनकर उभर रहे मोदी 2024 में इस क्षेत्र से सीमित मतों से जीते हैं। 2029 में या जब भी अगले लोकसभा चुनाव होंगे तो कह नहीं सकते वे यहां से लड़ेंगे या नहीं।

यह चर्चा आम है। बनारस में मोदी की महिमा घटती और गिरती दिखाई दे रही है। यूं तो बनारस रसीले और मधुर संवाद वाले लोगों का शहर है। गंगा की निश्छल रवानी का शहर है। बात के धनी लोगों का शहर है। आपस में मृदुता का शहर है। लेकिन इन सबके साथ यह उत्तरप्रदेश का शहर भी है। ब्राह्मणों के मंदिरों के जरिए डोमिनेंस का शहर भी है। अगर किसी पैमाने पर बनारस शांत, सरल, मीठा है तो कुछ पैमानों पर कटु, कुटिल भी। किसी शहर को किसी एक शब्द से बांधना ठीक नहीं, इसलिए मैंने यहां इसे समझने के लिए होरीजेंटल डेफिनेशन का इस्तेमाल किया है।

बनारस का रस थोड़ा फीका है। प्रयागराज एयरपोर्ट पर जो टैक्सी वाला लेने पहुंचा वह बनारस का ही था। उसके मन में मोदी को लेकर सम्मान तो है, लेकिन अपनापन नहीं। आत्मीयता नहीं। वह काम-धाम पर कहता है, काम तो बहुत किए हैं और करवाए हैं, लेकिन उनसे मिलने का कोई सात जन्म ले ले तो संभव नहीं। हम वोट दिए थे कि मोदी मिलेंगे भी कभी। उनके लोग मिलते हैं और काम भी होते हैं, लेकिन हमे मोदी से मिलना था। मेरा प्रतिप्रश्न था, तो मिलकर क्या करना है, आपका पर्सनल काम हो रहा है आपके शहर में डेवलपमेंट हो रहा है, मंदिरों का मान बढ़ रहा है और क्या चाहिए आपको? थोड़ा असहज होते हुए ड्रायवर कहता है, नहीं चाहिए तो कुछ नहीं, लेकिन गांव-वांव जाते हैं तो मोदिया के साथ कोनो फोटो होता तो अच्छा लगता।

बनारस के धर्मसंघ के गेट पर एक बुजुर्ग बैठे थे। वे भी मोदी से बहुत खुश नहीं। गेट कीपिंग का काम करते हैं। बोले, इस बार जीत गए मोदी, अगली बार मुश्किल है। धर्म के लिए तो किए हैं, हम यह नहीं कह रहे कि कुछ किए नहीं, लेकिन बनारस है यह कोई बंबई नहीं जहां कांच की बिल्डिंगें बना दीजिए और जीत जाइए। यहां अस्सी घाट पर छलांग लगाए नेता, काशी विश्वनाथ में लाइन लगाए। मोदी आते हैं तो आधा शहर बंद कर देते हैं। अबकी नहीं जीत पाएंगे, चाहे कुछ्छो कर लेयं।

धर्मसंघ से अस्सी घाट की ओर जाने के लिए। ऑटो वाला, बेरोजगारी बढ़ाए हैं मोदी और क्या किए हैं। हमऊ देख लेओ अब, पहिलए अच्छे खासे एकाउंटेंट थे, अब धक्का रहे हैं ऑटो। मैंने पूछा कितना कमाते हो, जवाब मिला अरे कुछ्छो नहीं, 20 हजार मुश्किल से। फिर मैंने पूछा, एकाउंटेंटी में कितना कमाते थे, जवाब आया, 12 हजार तनख्वाह थी। अब तो फैमिली चलाना मुश्किल हो रहा है। मेरा आश्चर्य से मिश्रित प्रश्न था, 20 हजार तो 12 हजार से ज्यादा होते हैं, फिर ऐसा क्यों? जवाब, पहिले भैया पेट्रोल भी तो आधा ही था। तो 12 भी 32 के बराबर थे। बहुते बेरोजगारी फैला दिए हैं। अब क्या जीतेंगे मोदी। मेरा सवाल था, तो योगी ने कुछ नहीं किया। जवाब आया, योगी ने किया बहुत किया। मियों को तान के रखा है। बहुते गरम हो रहे थे। इन्हें ठंडा जरूर कर दिए। हिंदुओं की बहन, बेटियों को सरेआम छेड़ते थे। अब कोई आंख उठाकर दिखाए। मैंने पूछा, तब योगी ने तो आपके हिसाब से ठीक कर दिया, जवाब मिला, हां तो कर दिया तो यह तो करना ही था। सरकार का क्या यही एक काम है। बाकी कौन करेगा, रोजगार भैया रोजगार। मैंने कहा, आप कमा तो रहे हैं, कम या ज्यादा अलग बात है। जवाब आया, कम या ज्यादा क्या होता है। आप साहब बने घूमें हम ऑटो चलाएं। वाह।

काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में साइकल रिक्शा पर। क्या भाई, कैसा है यहां का राजनीतिक माहौल। रिक्शापुलर चुप रहता है। फिर मैंने सवाल किया, कुछ बोल नहीं रहे भाई। जवाब आया, का बोलें भैया। सब ठीके समझो। जहां आप चल रहे हैं न यहीं हजारों लोगों के घर थे। रास्ता चौड़ा करके मंदिर तो ठीक कर दिया, लेकिन घर उजाड़ डाले।

अस्सी घाट पर आर्टिस्ट मिला। ठीक है सर, सब अच्छा है। मेरा सवाल था, मोदी जी ने काम किया है। जवाब मिला, हां किया है। आप जहां खड़े हो यहां देखो, कोई यकीन नहीं कर पाएगा यह काशी का अस्सी है। दुनियाभर से लोग आते थे और बनारस का नाम था। फिल्मे कहती थी बनारस में ठग रहते हैं। बनारस में धार्मिक लुटेरे हैं। अब देखो यहां कितना अच्छा सिस्टम है। आप देख ही रहे हो, क्या आपका जेब किसी ने कतरा। लगी है पुलिस चारों तरफ। मोदी से चिढ़ते हैं लोग तो कुछ भी बोलते रहते हैं।

बनारस में मोदी का अच्छा प्रबंधन है। काम धड़ाधड़ हो रहे हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर में स्पेस नजर आता है। खानपान से लेकर पूजा-पाठ की सामग्री का बड़ा बाजार है। मोदी सब अच्छा कर रहे हैं, लेकिन बनारस को रास नहीं आ रहे। कारण जो भी जिसको लगे, मुझे तो सिर्फ यही लग रहा है कि यूपी का आदमी ज्यादा राजनीतिक रूप से जागरूक है। इस कारण वह किसी महामूर्ति को लंबे समय नहीं ढो सकता। वह मूर्तिभंजक है। कुल जमा दिख रहा है बनारस मोदी के लिए अब सुरक्षित सीट नहीं है। 2014 में गंगा ने बुलाया था, तो 15 साल निभा भी दिया। 20 साल तक निभाना है तो राष्ट्रीय स्पेक्ट्रम से काम नहीं चलेगा। बनारस की सरजमीं में तो मोदी नहीं दिखे, लेकिन यहां की हवा में जरूर नजर आए।

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