#NindakNiyre: पुराना बजट भाषण पढ़ने से क्या फर्क पड़ेगा, गहलोत की सियासत पर और किसकी खिलेंगी बांछें?

nindakniyre: 5 दशकों से मॉस पॉलिटिक्स में सक्रिय गहलोत को आंतरिक बुनावट, बनावट और बट बनाने के मामले में बड़ा काशीदाकार माना जाता है। ऐसे में यह एक नई खिड़की उनके लिए चुनौती होगी।

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  • Publish Date - February 10, 2023 / 01:38 PM IST,
    Updated On - February 10, 2023 / 01:41 PM IST

बरुण सखाजी. पॉलिटिकल ऑब्जर्वर

गहलोत राजनीतिक खिलाड़ी हैं। यह बात तो साफ है कि राजस्थान विधानसभा में जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है, अगंभीरता का सुबूत है और यह भी साफ है कि यह राज्य और आगामी चुनावों को देखते हुए सरकार और गहलोत की कैजुअल अप्रोच का भी दस्तावेज बन गया है। ऐसे में गहलोत के लिए यह नया टंटा खड़ा हो गया है। एक तरफ भाजपा दूसरी तरफ सचिन पायलट और तीसरी तरफ राहुल गांधी की सॉफ्ट नाराजगी। ऐसे में गहलोत का ऐम्बेरेस होना लाजिमी है। 5 दशकों से मॉस पॉलिटिक्स में सक्रिय गहलोत को आंतरिक बुनावट, बनावट और बट बनाने के मामले में बड़ा काशीदाकार माना जाता है। ऐसे में यह एक नई खिड़की उनके लिए चुनौती होगी।

चूंकि यह एक ऐसी गलती है जिसका जवाब सिर्फ गहलोत को या राजस्थान के कांग्रेसी नेताओं को ही नहीं देना बल्कि देशभर में कांग्रेस की तैयारियों को भी कमजोर करता है। ऐसे में गहलोत विरोधी खेमा पुरी ताकत से अपनी प्रत्यंचाएं तानकर खड़ा होगा। विपक्ष इस पर जितना हल्ला मचाएगा वह तो निपट लिया जाएगा, परंतु जो अंदर से चुनौतियां पेश होंगी उनका कोई उपाय निकालना गहलोत के लिए टेढ़ी खीर होगा।

ऐसा नहीं है कि गहलोत पर ऐसा संकट पहली बार आया है। पहले भी गहलोत घिरते रहे हैं। मगर वे चतुराई से ऐसे चक्रव्यूहों से निकलते, उबरते रहे हैं। बारीकी से सियासत को देखने, करने और समझने में माहिर गहलोत इस आपदा से भी निपट लें कोई बड़ी बात नहीं। जब तक यह मसला बड़ा बने तब तक कोई और दांव लेकर हाजिर हो जाएं तो अचरज न होगा।

ये तो साफ दिख रहा कि इस कांड से बांछें किसकी खिल रही हैं और मुरझा कौन रहा है। भाजपा विपक्ष में है स्वाभाविक रूप से वह इसे गहलोत की गलती तक सीमित नहीं रखेगी। वह इसे पूरी सरकार की कैजुअल एप्रोच का परसेप्शन करार देगी। इतना ही नहीं भाजपाई सुजान तो इसे राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी की लेजी, कैजुअल कांग्रेस के रूप में भी प्रचारित करेंगे। तब यह कहना होगा कि यह मसला है तो बड़ा। इसके इतर जयराम रमेश, अजय माकन, सचिन पायलट जैसे गहलोत विरोधियों की बांछे जितनी खिल रही होंगी उतनी किसी की नहीं।

मुझ जैसे पॉलिटिकल ऑब्जर्वर के लिए यह बड़ा लेसन सिद्ध होगा। देखना रोचक होगा कि गहलोत इसका क्या तोड़ लाते हैं। ये तो हो सकता है कि वे अपनी कुर्सी बचा ले जाएं। क्योंकि कुर्सियां तो ठीक है बचाई जा सकती हैं, परंतु जो इमेज पर बट्टा लगेगा उसे वो कैसे धोते हैं।

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