बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, आईबीसी-24
Groupism in CG BJP भाजपा 2023 के लिए कमर कस रही है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं। पार्टी ने जो फीडबैक सिस्टम तैयार किया है वही उसके गले की फांस बन गया है। एक तरफ जनमत को प्रभावित करने की क्षमता वाले नेता हैं तो दूसरी तरफ फीडबैक सिस्टम से निकला डेटा। फीडबैक सिस्टम कहता है जनमत प्रभावित करने वाले नेता जिता नहीं सकते, लेकिन हरा सकते हैं। बड़ी बात ये है कि इनकी संख्या दर्जनों में है। तो इन्हें उमा भारती भी नहीं बनाया जा सकता। फीडबैक कहता है इन्हें दरकिनार करके नए चेहरे लाने होंगे, लेकिन नए चेहरे तब तक नहीं दिखेंगे जब तक पुराने नहीं हटेंगे। ऐसे में पार्टी में भारी आंतरिक उठापटक है। आलम ये है कि भाजपा अपने ही बनाए तौर-तरीकों में उलझती दिख रही है। आप अंत तक बने रहिए इसे पूरी तरह से समझने के लिए मेरे यानि बरुण सखाजी के साथ।
Groupism in CG BJP प्रदेश के पहले नेताप्रतिपक्ष नंदकुमार साय की अलग धार है। वे आदिवासी भाजपा नेताओं के अघोषित अगुवा बन रहे हैं। इनके ब्रेन स्टॉर्मर हैं रामविचार नेताम। सहानुभूति के रूप में रेणुका सिंह भी शामिल हैं। इस अघोषित आंतरिक गठबंधन में और भी कई नाम हैं, लेकिन वे सब तेल देख रहे हैं और तेल की धार। इनकी कोशिश है 2023 के चुनाव को आदिवासी मुद्दों के आसपास रखा जाए। 2018 की हार के पीछे आदिवासी समाज की नाराजगी को ज्यादातर मंचों पर रखा जाए। इसके पीछे रणनीति बहुत साफ है, जितना आदिवासी समाज मुद्दा बनेगा उतना ही आदिवासी मुख्यमंत्री की बात भी मजबूत होगी। पार्टी ने देश को पहला आदिवासी राष्ट्रपति तो दिया ही है तो यह संभावना कोई कच्चा ख्याल भी नहीं। ऐसे में यह धड़ा सबके साथ होकर भी पानी में तेल की तरह अलग दिख रहा है। बड़ी बात ये है कि सरोज पांडे जैसी नेताओं की भी इनके प्रति सहानुभूति है। यही वजह है कि रामविचार नेताम नंदकुमार साय की जुल्फें 2023 के लिए दांव पर लगाते हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में आर्थिक धुरी रहे नेता अलग-थलग पड़ रहे हैं। इन्हें डर है, कहीं बघेल का कथित छत्तीसगढ़िया फॉर्मूला भाजपा में भी लागू हुआ तो सबसे ज्यादा पीड़ित यही होंगे। जबकि ये सैंकड़ों सालों से छत्तीसगढ़ की माटी में रच बस चुके हैं। परिणाम ये है कि वैचारिक असहमति वाले बृजमोहन अग्रवाल, अमर अग्रवाल, राजेश मूणत, गौरीशंकर अग्रवाल इस मसले में एक-दूसरे के साथ खड़े दिखते हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया था जल्द ही चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाकर बृजमोहन अग्रवाल के हाथों भाजपा सौंप दी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कारण बना फीडबैक। फीडबैक सिस्टम ऐसा है कि उसे इग्नोर नहीं किया जा सकता, लेकिन नेताओं को भी लेकर चलना है। ऐसे में दुविधा में संगठन है। यह वर्ग मानता है इस फीडबैक को मानना मतलब कथित छत्तीसगढ़िया गैर-छत्तीसगढ़िया को एंडोर्स करना होगा। ऐसे में पार्टी में आंतरिक आशंका बढ़ रही है जो एकजुट होकर ताकत लगाने से रोक रही है। इनमें मौन होकर प्रेमप्रकाश पांडे भी खड़े हैं।
भाजपा के प्रदेश प्रभारी बनकर ओम माथुर आ तो गए हैं, लेकिन वे इतने ऊंचे कद के हैं कि बाकी सब नाटे लगने लगे हैं। संगठन में एक अलग संगठन उभरने लगा। सब चाहते हैं भाजपा आए, लेकिन इसका क्रेडिट भी सबको जाए। परंतु ओम की शैली आक्रामक और हावी होकर काम करने की है। ऐसे में अजय जामवाल, शिवप्रकाश अपनी भूमिकाओं का आत्मविश्वास खो रहे हैं। ओम माथुर-अरुण साव को लेकर नए की खोज में निकले हैं, लेकिन हर जगह पुरानों से भारी टकराहट के साथ। साव मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते। ओम माथुर स्ट्रेटजी में ताकत झौंक रहे हैं। अरुण साव चाहते हैं चर्चा आदिवासी मुद्दों पर हो, लेकिन चुनावी मुद्दा ओबीसी ही बनें। यही पूर्व और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष भी चाहते हैं। फीडबैक कहता है यह रणनीति काम करेगी, क्योंकि अमित शाह आरक्षण मुद्दे पर आदिवासी आरक्षण से इतर 27 फीसदी आरक्षण का क्रेडिट लेने की कोशिश कर ही चुके हैं। उन्होंने कहा था रमन सरकार ने 27 फीसदी आरक्षण दिया है। यह दोहरी फायदेमंद है। एक तो बघेल का किसान कॉम्बो बिखरेगा दूसरा भाजपा में नाराज साहू समाज की वापसी होगी।
रमन गुट के सबसे करीबियों में से एक धरमलाल कौशिक जैसे अनेक ऐसे नेता हैं जिन्हें लग रहा है उनसे बेवजह शहादत ले ली गई। जबकि मंच पर डॉ. रमन सिंह फुलटॉस खेल रहे हैं। इनमें ओपी चौधरी, राजेश मूणत, केदार कश्यप, महेश गागड़ा, विक्रम उसेंडी भी शामिल हैं, जिन्हें वेट एंड वॉच की स्थिति में रहना ज्यादा मुफीद लग रहा है।
आदिवासी मुद्दों की वकालत कर रहे नंदकुमार साय, ओबीसी पर लड़ रहे अरुण साव, छत्तीसगढ़िया, गैर छत्तीसगढ़िया से बचकर निकल रहे बृजमोहन अग्रवाल, कमतर महसूस कर रहे जामवाल, शिवप्रकाश, नितिन नबीन, वेट एंड वॉच की स्थिति में ओपी समेत अन्य को देखें तो भाजपा गुटों में बंटी है। ऐसे में 2023 की डगर कठिन होती चली जाएगी। अभी तक के जो बदलाव हैं उनसे जो हासिल हुआ है वह भी धरा रह जाएगा। चुनावी बेला से पहले जल्द से जल्द भाजपा को इन धड़ों को एक धड़ा बनाए बिना काम होगा नहीं और यह काम सिर्फ और सिर्फ शाह ही कर सकते हैं। लेकिन शाह की प्राथमिकता मिशन 2024 के लिए तेलंगाना, आंध्र, कर्नाटक जैसी दक्षिणी राज्यों की मिट्टी तैयार करना है।