बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, IBC24
analysis of governor change in Chhattisgarh: आखिर ऐसा क्या हुआ है कि जिनका नाम राष्ट्रपति चुनाव के वक्त एनडीए उम्मीदवार के रूप में उभर रहा था वे हटा दी गईं?
क्या अनुसुइया उइके का आरक्षण विधेयक को रोकना उनके जाने की वजह बना?
क्या भाजपा के कर्णधारों के साथ उनकी ट्यूनिंग कुछ गड़बड़ हो रही थी?
ऐसी क्या वजह है जो छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनसूइया उइके को मणिपुर जैसे छोटे से राज्य का जिम्मा दे दिया गया?
क्या उड़िया परिवार से ताल्लुक रखने वाले बिस्वाभूषण हरिचंदन को लाने के पीछे कोई बड़ी सियासी वजह है या उनका अपने राज्य के पास सेवानिवृत्ति काल?
इस सवालों के जवाब औपचारिक रूप से तो नहीं दे सकता, परंतु राजनीतिक पंडित इन्हें समझ सकते हैं। पहला सवाल है कि छत्तीसगढ़ की निर्वर्तमान राज्यपाल अनुसुइया उइके बीते वर्ष मई-जून में राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की ओर से बनाए जाने वाले उम्मीदवारों में शुमार थी, तो उन्हें अचानक से क्यों हटाकर छोटी जगह भेज दिया गया। असल में राष्ट्रपति चुनाव के वक्त भी मैंने एक वीडियो बनाया था, जिसमें द्रोपदी मुर्मु को साफ-साफ उम्मीदवार बनाने की बात कही थी। उस वक्त अनुसुइया उइके दौड़ में थी जरूर, लेकिन मैंने कहा था कि उनका कांग्रेसी बैकग्राउंड एनडीए के अपने तेवर में फिट नहीं बैठेगा। इतने बड़े पद पर उन्हें बिठाया जाना भाजपा के लिए जोखिम है। इसलिए यह कहना चाहिए कि वे दौड़ में सिर्फ इसलिए आईं थी, क्योंकि भाजपा आदिवासी और महिला का कॉम्बिनेशन खोज रही थी। इसमें अनुसुइया उइके और तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसै सौंदरराजन और द्रोपदी मुर्मु थी। तो कह सकते हैं पहले सवाल का जवाब यही है कि अनुसुइया उइके सिर्फ मापदंडों के आधार पर दौड़ में आई थी, न कि राजनीतिक रूप से।
अब चलते हैं दूसरे सवाल की तरफ। क्या उइके का आरक्षण विधेयक को रोकना भारी पड़ गया? नहीं, कतई नहीं। क्योंकि यह उन्होंने अपने स्तर पर नहीं रोका। इसे लेकर भाजपा की अपनी रणनीति है। भाजपा नहीं चाहती कि हाईकोर्ट से खारिज कोई विधेयक कांग्रेस विधानसभा में पारित करके वाहवाही लूटे। पहले मामले को बढ़ाया गया, फिर वह खुदबखुद ठंडा कराया गया। राजनीतिक रूप से ऐसे पकड़ा गया इसे कि अब कांग्रेस खुद चाहती है कि राजभवन में अटका है का सवाल तो खत्म हो जाए या इस पर चर्चा न हो। चूंकि राजभवन ने मौलिक सवाल उठाए हैं। जिस बुनियाद पर हाईकोर्ट ने इसे खारिज किया था वह बुनियाद खत्म नहीं करके सिर्फ रिस्टोर करने की कोशिश इस बिल की सबसे कमजोर कड़ी है। अनुसुइके उइके के छत्तीसगढ़ से हटने के कारण में यह विधेयक शामिल नहीं है।
अब चलते हैं अगले सवाल की तरफ। छत्तीसगढ़ से छोटे मणिपुर क्यों भेजा गया अनुसुइया उइके को। इसका जवाब बहुत साफ है। वे आदिवासी समुदाय से आती हैं। मणिपुर भी आदिवासी राज्य है। भाजपा इसे राजनीतिक रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण मानती है। अनुसुइया उइके प्रशासनिक और लोक महत्व की अच्छी समझ रखती हैं। फिलहाल उन्हें मणिपुर रखा गया है, लेकिन बाद में वे वापस किसी हिंदी आदिवासी राज्य में लाई जाएंगी।
अंतिम सवाल कि क्या हरिचंदन को लाकर भाजपा की कोई सियासत है? यह बड़ा सवाल है। बिना सियासत के कुछ होता नहीं। यह भी एक तथ्य है कि 88 वर्षीय हरिचंदन अपने राज्य के नजदीक अपना कार्यक्षेत्र चाहते रहे होंगे, लेकिन यही सिर्फ कारण नहीं। उन्हें यहां लाए जाने के 3 बड़े कारण हैं। पहला तो यह मानना पड़ेगा कि अब भाजपा ओडिशा में निर्णायक चुनावी लड़ाई की तरफ बढ़ रही है। वह यहीं से राष्ट्रपति लाती है और यहीं से छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और यहीं से केंद्रीय शिक्षामंत्री, यहां से साइकल पर चलने वाले सड़ंगी को लाती है। यहीं से 2016 से लेकर अब आधा दर्जन से अधिक रेयरेस्ट पद्मश्री। हरिचंदन इसी रणनीति का हिस्सा हैं। दूसरा कारण छत्तीसगढ़ की सीमावर्ती 14 सीटें सीधे ओडिशा से लगती हैं। इन सीटों में से अभी भाजपा के पास कोई सीट नहीं है। ये सीटें हैं लैलुंगा, रायगढ़, सारंगढ़, सराइपाली, बसना, खल्लारी, राजिम, बिंद्रानवागढ़, सिहावा, केशकाल, कोंडागांव, बस्तर, जगदलपुर, कोंटा। भाजपा हरिचंदन को उड़िया समाज में सक्रिय करके इसका फायदा उठाना चाहेगी। राज्य की इन 14 सीटों में उड़िया प्रभाव है। जबकि 8 सीटें ऐसी और हैं जिनमें उड़िया वोटर संख्या ठीक है। जैसा कि भाजपा ने देशभर में एक लाभार्थी मतदाता का बैंक तैयार किया है इनमें प्रवासी उड़िया बड़ी संख्या है। चूंकि भूपेश सरकार ने उड़िया प्रभाव वाले सारंगढ़ को जिला बनाकर पॉलिटिरल दांव खेला है तो भाजपा भी बारीकी से नक्काशी कर रही है। हरिचंदन को यहां लाने का तीसरा कारण यह भी है कि अब भाजपा चुनाव के लगभग अपना मास्टर स्ट्रोक खेल सकती है। उसने लाख कयासों के बाद पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी नहीं दिया, न नेता प्रतिपक्ष दिया। ऐसे में यह संभव है कि वह अब अपना मुख्यमंत्री फेस आदिवासी बना दे। चूंकि राज्यपाल आदिवासी रही हैं।
read more: #NindakNiyre: पुराना बजट भाषण पढ़ने से क्या फर्क पड़ेगा, गहलोत की सियासत पर और किसकी खिलेंगी बांछें?
read more: #LaghuttamVyangya: हम बातें बनाने की फैक्ट्री, गॉसिप के शेयर बाजार में हमारा भारी निवेश