#NindakNiyre: गोबर पर सियासत अपनी जगह, पहले इसकी पूरी इकॉनॉमी और रोजगार तो समझ लें

भाजपा गौ पर सियासत करती है तो बघेल की कांग्रेस गाय के गोबर का नया फॉर्मूला लाकर चौका रही है। यानि गाय से सियासत भी चमकती है और घर भी....

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  • Publish Date - December 22, 2022 / 06:22 PM IST,
    Updated On - May 6, 2023 / 03:48 PM IST

बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक

#NindakNiyre गोबर के पैंट को छत्तीसगढ़ सरकार ने सरकारी भवनों में जरूरी कर दिया है। बताया जा रहा है, इससे गोबर से पैंट बनाने वाले किसान, महिला व ग्रामीण उद्योगों को सीधा फायदा होगा। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का छत्तीसगढ़ के इस कदम की तारीफ वाले ट्वीट ने इसे सियासी रूप भी दे दिया। गडकरी ने कहा यह कदम अच्छा है। इससे गौपालकों को सीधा फायदा होगा। ट्वीट को लपकते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी आभार जता दिया। स्वाभाविक है इस पर सियासत तेज होगी। राज्य की भाजपा यूं तो गोबर प्रमोशन पर बचकर बोलती है, लेकिन चूंकि गोबर आखिरकार है तो मल ही तो यदाकदा ऐसे कमेंट भी आ जाते हैं। बहरहाल हम बयान वाली सूखी सियासत पर नहीं जाएंगे, बात करेंगे आखिर ये गोबर का पैंट है क्या? क्या इसे सीधा दीवारों पर पोत दिया जाएगा? या पानी में मिलाकर जैसे गांवों में आंगन, गलियारे लीपे जाते हैं, वैसे सरकारी भवनों की सीमेंट की दीवारों पर लगा दिया जाएगा? या फिर यह उपयोग में कैसे आएगा? इसके किसानों, महिला स्वसहायता समूहों को क्या फायदे होंगे? इसे अंत तक इसलिए देखिए, क्योंकि हो सकता है आपको यह अच्छा रोजगार लगे और आप इसे अपना लें।

गोबर पैंट निर्माण सामग्री

गोबर से डिस्टेंपर गोबर से प्लास्टिक इमल्सन पैंट
300 ग्राम गोबर 200 ग्राम गोबर
400 ग्राम कैल्सीयम कॉर्बोरेट (CaCo2) 400 ग्राम कैल्सीयम कॉर्बोरेट (CaCo2)
100 ग्राम टाइटेनियम डायऑक्साइड (Tio2) 100 ML एलडीसीओ (लॉन्ग DCO Oil)
50  ML हाइड्रो ऑक्सीथाइल सेलुलोज (HeC) 50 ML हाइड्रो ऑक्सीथाइल सेलुलोज (HeC)
100 ML बाइंडर 150 ML बाइंडर
20 ग्राम सोडियम बेंजॉइट 20 ग्राम सोडियम बेंजॉइट

(स्टैंडर्ड 1 किलो डिस्टेंपर व 1 लीटर प्लास्टिक इमल्सन पैंट के लिए)

गोबर से पैंट में लगने वाली मशीन व तकनीकी

  1. डबल डिस्क रिफाइनर
  2. ट्विन शिफ्ट मशीन
  3. पग मिल
  4. बीड मिल
  5. 20 बाई 20 की जगह।

गोबर से पैंट निर्माण विधि

  • गाढ़े गोबर में पानी डालकर डबल डिस्क रिफाइनर से पतला करें।
  • गोबर को सोडियम हाइड्रॉक्साइड और हाइड्रोजन पैराक्सॉइड से ब्लीच करें।
  • सीएमसी डायो ऑक्सीमिथाई मिलाकर सेलुलोज बनाएं।
  • थोड़ा सा ठंडा चूना मिलाएं।
  • सफेदी के लिए टाइटेनियम डायोऑक्साइड डालें।
  • बांधे रखने के लिए बाइंडर मिलाएं।
  • 50 एमएल सोडियम बेंजॉइट मिलाकर बाइंडिंग करें।
  • इमल्सन पैंट में टाइटेनियम डायोऑक्साइड नहीं मिलाएं।

गोबर पैंट व रासायनिक पैंट के नफे-नुकसान

गोबर से बने पैंट के फायदे रासायनिक पैंट के नुकसान
एंटी बैक्टीरियल है नहीं
एंटी फंगल नहीं
इको फ्रैंडली नुकसानदेह
एंटी हीट गर्मी बढ़ाता है
सस्ता है महंगा है
दुर्गंध रहित दुर्गंध है
विषाक्त नहीं विषाक्त है
कोई भारी धातु नहीं भारी धातु हैं

 

गोबर इकॉनॉमी

एक स्वस्थ गाय से दिन में करीब 20 किलो गोबर प्रतिदिन देती है। इसे छत्तीसगढ़ सरकार 2 रुपए किलो में खरीद रही है। यानि एक गौपालक 1200 रुपए मासिक तक इससे आय प्राप्त कर सकता है। इसके विपणन के लिए खादी ग्रामोद्योग निगम ने अनेक तरह की सहूलियतें दे रखी हैं। एक किलो पैंट में 200 ग्राम गोबर लगता है, लेकिन इसके लिए कम से कम 500 ग्राम गोबर प्रोसेस करना पड़ता है। इसमें से 200 ग्राम घुला गोबर बन पाता है।

गोबर से पैंट के लिए प्रशिक्षण, टेस्टिंग

इसके लिए जयपुर राजस्थान में कुमारप्पा राष्ट्रीय हाथ कागज संस्थान से 5 दिन का प्रशिक्षण सिर्फ 5 हजार रुपए शुल्क के साथ लिया जा सकता है। इसकी ज्यादा जानकारी के लिए www.nhpi.org.in पर जाएं। देश में तीन संस्थान हैं। नेशनल टेस्ट हाउस मुंबई व गाजियाबाद और श्रीराम इंस्टीट्यू फॉर इंडस्ट्रीयल रिसर्च दिल्ली।

बनाने की लागत और प्लांट की शुरुआत

डबल डिस्क रिफाइनर मशीन 1.75 लाख
ट्विन शिफ्ट मशीन 4 लाख
पग मिल 2 लाख
बीड मिल 3.5 लाख
अन्य 75 हजार
कुल 12 लाख
सब्सिडी के बाद 7.80 लाख

 

निर्माण लागत और बाजार मूल्य

डिस्टेंपर निर्माण, पैकेजिंग बाजार मूल्य इमल्सन निर्माण, पैकेजिंग बाजार मूल्य
56-65 रुपए प्रति किलो 120 रुपए प्रति किलो 86-95 रुपए प्रति किलो 225 रुपए प्रति किलो

 

क्लोजिंग

गोबर पर सियासत होती रहे, मगर जमीन पर काम भी हो। अगर ऐसा होता है तो समझिए वास्तव में यह प्रोजेक्ट ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अहम हो सकता है। इतना ही नहीं किसानों को वैकल्पिक आयस्रोत भी दे सकता है। इसके अलावा गौरक्षा भी हो जाएगी, क्योंकि गाय का दूध तो हम पीते ही हैं, गोबर से भी कमाएंगे तो जाहिर है इसे दूध न देने वाली होने पर भी पालेंगे। कह सकते हैं, छत्तीसगढ़ सरकार की इस योजना से वास्तव में फर्क पड़ सकता है। केंद्र इस पर पहले से ही काम कर रहा है।