बरुण सखाजी. सह-कार्यकारी संपादक, IBC24
ज्यों ही 2018 में सरकार में बदलाव हुआ तो दो बातें खूब चली। एक केंद्र सहयोग नहीं कर रहा और दूसरी छत्तीसगढ़िया और नॉन-छत्तीसगढ़िया। दूसरे मैटर पर बात बाद में, अभी पहले मैटर पर बात करते हैं। कांग्रेस की सरकार बनते ही केंद्र और राज्य के बीच समन्वय में कमी देखी गई। बघेल इसकी वजह भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को बताते हैं तो केंद्र इस पर कोई बात नहीं करता। लेकिन राज्य की भाजपा इकाई कोई अवसर नहीं गंवाती। प्रदेश में पीएम आवास का काम रोक दिया गया। मोदी सरकार पर जीएसटी का हिस्सा नहीं देने का आरोप लगाया जाने लगा। धान का कोटा जैसे अनेक मसलों पर सियासत जारी रही। लेकिन कांग्रेस के सांसद इन विषयों पर मौन रहे।
फिलहाल कांग्रेस के दो सांसद हैं, जो सक्रिय भी हैं, लेकिन वे सिर्फ काम के मसले उठाते हैं। इनमें दीपक बैज तो बघेल के मुद्दों को सदन में उठा भी देते हैं, लेकिन पार्टी की दूसरी सांसद ज्योत्सना महंत इन मुद्दों पर मौन ही रही हैं। इसके क्या राजनीतिक मायने हैं यह आप तय कीजिए। फिलहाल ये इन दोनों सांसदों के सवालों को समझते हैं।
रेलवे, एयर कनेक्टिविटी पर ज्यादा मुखर बैज
बस्तर लोकसभा से चुने गए कांग्रेस के दीपक बैज ने 2019 से लेकर 2023 फरवरी तक 244 सवाल पूछे। उन्होंने हर वर्ष की बजट की बहसों को मिलाकर 33 डिबेट्स में हिस्सा लिया है। बैज ने 5 अनुपूरक व 10 स्पेशल मेंशन सवाल भी किए। बैज ने दल्ली राजहरा रेलवे, जगदलपुर से दूसरे बड़े शहरों की एयर कनेक्टिविटी, गैस के दाम, बस्तर के लिए ट्रेन सेवा, एनएमडीसी के निजीकरण, एनएमडीसी में स्थानीय को नौकरियां, किसानों को खाद उपलब्ध करवाने, पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने, बस्तर को केरोसीन का कोटा देने, एनएमडीसी का मुख्यालय हैदराबाद से जगदलपुर करने, नगरनार स्टील प्लांट निजीकरण, छत्तीसगढ़ के पिछड़े जिलों में परिवहन सब्सिडी, आदिवासी क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल, पीएम सम्मान निधि वनाधारित आदिवासी किसानों को भी देने, हर ब्लॉक में एकलव्य स्कूल, पोलावरम का काम रुकवाने समेत अनेक मुद्दे उठाए हैं।
बघेल के दोहराए दो मुद्दों पर बैज ने उठाई आवाज
बघेल के पुरानी पेंशन बहाली और जीएसटी हिस्सेदारी को लेकर दीपक बैज ने एक-एक बार संसद में आवाज उठाई है। उन्होंने 2020 के एक सत्र में जीएसटी क्षतिपूर्ति की बात कही थी। जबकि एक बार पुरानी पेंशन को बहाल करने की मांग की है। इसके राजनीतिक मायनों को बारीकी से देखें तो समझ आता है, बैज बघेल की बात को संसद में उठा रहे हैं, लेकिन उतना नहीं जितना बघेल बड़ा मसला बताते या बनाते हैं। बैज धान खरीदी या धान कोटे को लेकर भी कोई बात नहीं करते।
महंत नहीं मिलाती सरकार से सुर
कोरबा से चुनी गई छत्तीसगढ़ की दूसरी कांग्रेस सांसद ज्योत्सना चरणदास महंत ने अपने संसदीय कार्यकाल में अभी तक 93 सवाल लगाए हैं। 7 बहसों में भाग लिया है। 2 अनुपूरक सवाल पूछे हैं। ज्योत्सना महंत ने सबसे ज्यादा प्रदूषण पर सवाल पूछे हैं, इसके बाद रेलवे नेटवर्क पर। उन्होंने चांपा में ट्रेनों के ठहराव, केंद्रीय विद्यालयों में सांसदों का कोटा बढ़ाने, सिंगारानी कोल प्रभावितों के पुनर्वास, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में खाली जजों के पद, कोरबा में प्रदूषण, पीएम फसल बीमा का प्रचार करने, एनसीईआरटी सर्वे पर एक्शन, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, बीपीएल को एलपीजी कनेक्शन, योग शिक्षा, खेती के डिजिटलाइजेशन, वन्यक्षेत्र में अवैध खनन, ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर्स, कोल परिवहन में प्रदूषण मापदंड, तमिल के स्टरलाइट कॉपर प्लांट, सोलर विस्तार के लिए बजट, रेडियो स्टेशन, टीवी प्रॉड्यूसर्स पर बकाया, बिलासपुर-रायपुर मेट्रो, ग्रामीण रेलवे कनेक्टिविटी, छत्तीसगढ़ में नदी जोड़ो परियोजना पर काम, औषधीय पौधों की खेती जैसे विषयों को उठाया है। ज्योत्सना महंत ने संसद में जीएसटी क्षतिपूर्ति, धान खरीदी, पुरानी पेंशन जैसे विषयों पर कोई बात नहीं की।
भ्रष्टाचार विरोधी जांच एजेंसियों पर भी मौन
राज्य में जारी विभिन्न आर्थिक अनियमितताओं की जांचों पर किसी ने सवाल नहीं पूछे। न ही किसी ने इस पर अलग से बात की। जबकि अनेक बार यह बताया गया कि जांच एजेंसियां राजनीतिक रिवेंज के मकसद से काम कर रही हैं।
समझिए इसके पीछे की सियासत
अंत में यह कहना होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार के बीच जिन मसलों पर असहमति को लेकर मीडिया में बयानबाजियां होती हैं, वे असल में कितने सही हैं या गलत, समझा जा सकता है। एक तरफ वे इतने बड़े मसले हैं तो दूसरी तरफ खुद पार्टी के सांसद उन पर मौन क्यों रहते हैं? दरअसल, यह एक राजनीति है। संसद में पूछे गए सवालों के लिए आधार चाहिए होता है और इनके जवाब भी बहुत साफ-साफ देने होते हैं। सियासत के लिए आरोप लगाना सबसे मुफीद होता है।