#NindakNiyre: आस्था के सियासी इस्तेमाल का अतिरेक

  •  
  • Publish Date - February 21, 2025 / 06:03 PM IST,
    Updated On - February 21, 2025 / 08:38 PM IST

Barun Sakhajeeबरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक

 

बुंदेलखंड में एक कहावत है, जादा गुरयाय से कीरा परत हैं। यानि ज्यादा मीठे-मीठे में कीड़े होते हैं। यानि किसी भी चीज का अतिरेक अच्छा नहीं। इन दिनों कुंभ चल रहा है। कुंभ का जो जैसा इस्तमाल कर सकता है वह वैसा कर रहा है, लेकिन कुछ इस्तेमाल ठीक नहीं हैं। ठीक से समझने के लिए मैं आपको तीन किस्से सुनाता हूं।

किस्सा पहला, मंत्रीजी मध्यप्रदेश में एक टैंकर गंगाजल लेकर आने का दावा करते हैं और फिर अपनी सीट के हर नागरिक तक पहुंचाने का प्रयत्न करते हैं। संपूर्ण इवेंट। लोग कहेंगे इसमें बुरा क्या है। मैं भी कहता हूं इसमें बुरा तो कुछ नहीं, लेकिन इसकी जरूरत क्या है। जो कुंभ नहीं जा सकते उनके लिए पहले से ही बाजार में गंगाजल मिल रहा है और जो जा सकते हैं उन्हें टैंकर की एक बूंद नहीं चाहिए। इन मंत्री का नाम है विश्वास सारंग।

किस्सा दूसरा, अब एक छत्तीसगढ़ के मंत्री हैं, जिन्होंने कुंभ से ऐलान किया मैं गंगाजल लेकर आ रहा हूं। कैदियों को दूंगा। हर जेल में यह गंगाजल भेजा जाएगा। इन मंत्री का नाम है विजय शर्मा।

किस्सा तीसरा, एमपी में ये जनाब मंत्री तो नहीं हैं, लेकिन विधायक हैं। ये अपने क्षेत्र के कामधाम से कोई ताल्लुक रखते नहीं, लेकिन चुनरी यात्रा, कर्मयोगी संस्था बनाकर जिस-तिस कवि को बुलाकर इवेंट कराना, बेवजह के हार्डकोर बयान देना इनकी स्वाभाविकता है। हालांकि ये इतने बड़े आदमी नहीं, जिनके बारे में इतनी बात हो। फिर भी इनका कहना, सुनना छोटे क्षेत्र में सही, असर तो करता है। इनका नाम है रामेश्वर शर्मा।

किस्सा चौथा, मध्यप्रदेश में एक पूर्व मंत्री हैं। वे भी नर्मदा में लंबी चुनरी यात्रा करते हैं। अपने जन्मदिन पर बड़ा भारी धर्म आयोजन करते हैं। क्षेत्र में काम की बात करें तो किया है, किंतु कितना कोई तय नापजोख नहीं। अपनी जाति के लोगों को प्रश्रय देकर सामाजिक डोमिनियन स्टेट चलाते हैं। आदमी अच्छे हैं, किंतु धर्म को ये भी खूब ओढ़ते और बिछाते हैं। नाम है रामपाल सिंह।

ये किस्से भावनाओं स्वहित में सदुपयोग के अच्छे उदाहरण हैं, लेकिन यहां मामला भावना और आस्था का नहीं, सियासत का है। विशुद्ध सियासत का। अब सवाल उठता है, इसमें बुरा क्या है, अगर यह सियासी मकसद से भी किया जाता है तो भी क्या बुरा है। ये भी सही है, क्या फर्क पड़ना है, किंतु एक बार सोचिए, धर्म सिर्फ धर्म नहीं यह मर्म भी होता है। अंतस का आनंद भी होता है। जीवन का दिक्दर्शक भी होता है। यह पाखंड, फरेब न बने, इसलिए इसमें बहुत छोटी-छोटी संस्तुतियां की जाती हैं। समय-समय पर इनमें सुधार, विचार किया जाता रहता है। कम से कम कुरीतियों से इसे बचाए रखे जाने की जरूरत होती है, नहीं तो सनातन होने का मतलब क्या?

मैं छत्तीसगढ़ से ताल्लुक रखता हूं, इसलिए कहूंगा विजय आप गृहमंत्री हैं। विचारों से सुलझे हुए हैं। अच्छे वक्ता हैं, जाहिर है अच्छा सोचते भी होंगे। कैदियों तक जल पहुंचाने का आपका मकसद पता नहीं, किंतु इस तरह से आस्था की सियासत कुछ जंच नहीं रही आपको।

Sakhajee.blogspot.com