बरुण सखाजी, राजनीतिक विश्लेषक
Kharge is on Narsimha Rao’s track खरगे एक ऐसे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर उभर रहे हैं, जो कांग्रेस की आंतरिक उधेड़-बुन को सिल रहे हैं और बाहरी को भी ठीक कर रहे हैं। 10 साल से केंद्र की सत्ता से बाहर कांग्रेस के जीवनकाल में यह पहला अवसर है जब वह लॉन्गेस्ट टाइम आउट ऑव पावर है। इससे उबरने के लिए पार्टी को जनता के बीच अपने विचारों को स्पष्टता से रखने की जरूरत है। इस वक्त पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को वैचारिक स्पष्टता के साथ ही गांधी परिवार के वर्चस्व से पार्टी को बाहर निकालने का अहम जिम्मा है। मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष खरगे दोनों में संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहे हैं। वे परिवार से बाहर जाते हुए दिखना नहीं चाहते, लेकिन परिस्थितियां ऐसी हों तो उन्हें टालते भी नहीं दिख रहे। अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में पार्टी को सरकार में लाकर वे ऐसा करने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं।
Kharge is on Narsimha Rao’s track इंडिया नाम से जिस गठबंधन को साकार होते हुए भारत देख रहा है, उसमें अनेक पार्टियां आपसी असहमत विचारों से आती हैं। जैसे कि तृणमूल कांग्रेस बंगाल में कांग्रेस को न लोकसभा में न विधानसभा में एक सीट भी समझौते में नहीं देना चाहेगी। ऐसे में लगभग 8 परसेंट कांग्रेस का बंगाल बेस आखिर जाएगा कहां। जबकि वह टीएमसी में तो नहीं जा सकता। तमिल में हर तरह से मजबूत डीएमके की स्थिति भी यही है। एनसीपी महाराष्ट्र कुछ अतिरिक्त नहीं दे सकती। यानि इंडिया गठबंधन की तमाम सहयोगी पार्टियां अंततः सीट शेयरिंग पर फंसेगी। लेकिन इस सबके बीच अगर किसी तरह से सहमति बन जाती है और लोकसभा में गठबंधन कुछ अच्छा कर जाता है तो गांधी परिवार से पीएम की बात फंस जाएगी। तब खरगे को लेकर सहमति बन सकती है। खरगे इसी समय के लिए सारे समीकरणों को बारीकी से देख रहे हैं। इसकी बानगी हमने कर्नाटक चुनाव में देखी। राहुल गांधी के डीके शिवकुमार पर सीधे झुकाव के बावजूद सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनवना देना खरगे का अहम फैसला है। डीके शिव कुमार धनाड्य हैं, रणनीतिक ढंग से सियासत करने वाले राजनेता हैं, अपनी टीम और प्रबंधन के महारथी हैं। ऐसे में अपने रही प्रदेश से कोई समकक्ष क्यों उभारना?
खरगे कांग्रेस के दूसरे नरसिम्हा राव भी साबित हो सकते हैं, जो पार्टी को बहुत धीरे-धीरे गांधी परिवार से बाहर ले जा रहे हैं। हालांकि यह इतना आसान काम नहीं है, क्योंकि परिवार ने अपने लॉयल्स को बैक टु बैक लगा रखा है। फिर भी खरगे के इस राजनीतिक चातुर्य को समझना और पकड़ना सामान्यतः कठिन तो है ही। फिलहाल यह कह सकते हैं खरगे जो कर रहे हैं किसी समय नरसिम्हा राव भी कर रहे थे।