India vs China Controversy
चीन की सीमा के पास जाने वाली चार धाम सड़क निर्माण और उसके चौड़ीकरण से उठे विवाद को ले कर बकायदा मुकदमा चल रहा है जिस पर फैसला जल्द ही आ सकता है…… सुप्रीम कोर्ट में ये मुकदमा चल रहा है और सीमा की ओर जाने वाली इस सड़क को चौड़ा करने से रोकने की अपील की गई है….तर्क है सड़कों के लिए हिमालय क्षेत्र में पेड़ों की कटाई से समस्या आएगी…..ऐसा कहने वालों के लिए ये फिक्र की बात नहीं है कि चीन अपनी सीमा में पूरा हिमालय उजाड़कर… रेल… सड़क… गांव…और बंकर… सबका इंतजाम कर रहा है…..
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इन दिनों चार धाम मार्ग को लेकर जो विवाद सामने आया है उसने पूरे देश का ध्यान खींचा है … ये कोर्ट में है पर आम लोगों के बीच काफी चर्चा है इसकी….कई तरह के सवाल लोग उठा रहे हैं और उनका जवाब तो कोर्ट के फैसले के बाद ही मिलेगा…लोगों ने देखा है कि देश में पहले भी अदालतों की आड़ लेकर बड़ी बड़ी परियोजनाओं को सालों साल रोका गया है…अब पर्यावरण के नाम पर चीन की सीमा से लगती सड़क के चौड़ीकरण को रोकने की मांग की जा रही है…हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने देश की सुरक्षा से समझौता नहीं करने के संकेत दे दिए हैं….यहां हम कोर्ट में चल रहे मुकदमें में क्या चल रहा है इसकी बात नहीं कर रहे….बल्कि जनमानस में जो सवाल उठ रहे उनको रखने की कोशिश कर रहे हैं….कोर्ट के सामने जो तथ्य आएंगे और जो देश और समाज के हित में होगा वह तो कोर्ट फैसला देगा….
अभी खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से सितंबर 2020 के एक आदेश में संशोधन की मांग की है, जिसमें चारधाम सड़कों की चौड़ाई साढ़े पांच मीटर तक सीमित रखने का आदेश दिया गया था. केंद्र और याचिकाकर्ता की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है. साथ ही कोर्ट ने दोनों पक्षों को दो दिन में लिखित सुझाव देने को कहा है…केंद्र सरकार का तर्क है कि चीन की हरकतों को देखते हुए उसे तुरंत सीमावर्ती इलाकों में चौड़ी सड़कों की जरूरत है…. चार धाम हिमालय में जिन स्थानों पर हैं उन्हीं के पास से सीमाएं चालू होती हैं…पहले इस प्रोजेक्ट को चारधाम परियोजना बताया गया था और कहा गया था कि इसके बन जाने पर हिन्दुओं के चार पवित्र स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ तक बारहों महीने यात्रा हो सकेगी…. हालांकि केंद्र सरकार ने यह दलील भी दी है कि ऑल वेदर सड़क की जरूरत यहां चीन की हरकतों का जवाब देने के लिए भी जरूरी हो गई है….सेना को अपना साजो सामान लाने ले जाने के लिए चौडी सड़कों की जरूरत होगी….याचिका लगाने वाले NGO ‘Citizens for Green Doon’ की ओर से… कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि सेना ने कभी नहीं कहा कि हम सड़कों को चौड़ा करना चाहते हैं….अब भला इन महाशय से ये कोई पू्छे… कि सेना… सड़क को चौड़ा करने के लिए क्या कहना चाहती है यह NGO को क्यों बताएगी… खैर कोर्ट को ये तय करना है कि चारधाम के लिए ऑल वेदर सड़क परियोजना में सड़क की चौड़ाई बढ़ाई जा सकती है या नहीं…. यह सड़क क़रीब 900 किलोमीटर की है, ऐसा बताया गया है और अभी तक 400 किमी सड़क का चौड़ीकरण किया जा चुका है….. एनजीटी ने व्यापक जनहित को देखते हुए इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी….
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प्रोजेक्ट के खिलाफ जो तर्क है उसके मुताबिक एक अनुमान है कि अभी तक 25 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है…कहा जा रहा है कि इससे पर्यावरणविद नाराज हैं…
कहा जा रहा है कि इस साल बड़े पैमाने पर भूस्खलन ने पहाड़ों में नुकसान को बढ़ा दिया है. एनजीओ का दावा था कि इस परियोजना से इस क्षेत्र की ecology यानी पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी …. हालांकि इस NGO ने चीन की तरफ हो रहे निर्माण से होने वाले नुकसान को लेकर कोई चिंता जताई हो ऐसा नहीं दिखा…
खैर चारधाम Project की सड़क की चौड़ाई बढ़ाने की जरूरत को लेकर केंद्र सरकार ने कहा है कि यह भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा की ओर जाने वाली सीमा सड़कों के लिए फीडर सड़के हैं. उन्हें 10 मीटर तक चौड़ा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. इन दुर्गम इलाकों में सेना को टैंक, भारी वाहन, हथियार, मशीनरी, सैनिकों और खाद्य आपूर्ति को लाने ले जाने की जरूरत है. सेना अपने मिसाइल लॉन्चर और मशीनरी को अभी उत्तरी चीन की सीमा तक नहीं ले जा सकती है…. और भगवान न करे अगर युद्ध छिड़ गया तो सेना को इससे निपटने में दिक्कत होगी…. हमें सावधान और सतर्क रहना होगा….
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हैरानी की बात है हमारे देश में ऐसे लोग हैं जिनको इसमें पर्यावरण पर संकट तो दिख रहा है देश का संकट उनके लिए कोई मायने नहीं रखता…जो खबर आई है उसके मुताबिक मजे की बात है कि जब इस NGO ‘Citizens for Green Doon’ के कॉलिन गोंजाल्विस से कोर्ट ने पूछा कि क्या उनके पास सीमा के दूसरी ओर हिमालय की स्थिति पर कोई रिपोर्ट है ….जहां चीनियों ने कथित तौर पर इमारतों और प्रतिष्ठानों का निर्माण किया है….. इस पर गोंसाल्विस साहब ने कहा कि चीनी सरकार पर्यावरण की रक्षा के लिए नहीं जानी जाती है….हम कोशिश करेंगे और देखेंगे कि क्या हमें वहां की स्थिति पर कोई रिपोर्ट मिल सकती है… यानी ये साहब कह रहे हैं कि चीन पर्यावरण की रक्षा नहीं करता है उससे उम्मीद नहीं रखनी चाहिए….इनको भारत से उम्मीद है कि वह अपनी सीमा पर पर्यवरण की रक्षा करेगा और चीन की तरह निर्माण नहीं करेगा…अद्भुत बात है…यह तो ऐसा ही हुआ है कि दूसरा आपको मारने के लिए तोप ले आए पर आप हवा में बारूद का प्रदूषण होने के डर से गोली भी न चलाएं…..गजब का तर्क है….आपको बता दें कि…पर्यावरण की फिक्र किए बिना चीन ने पूरा हिमालय खोद डाला है…रेल… सड़क… गांव…और बंकर समेत कई तरह के निर्माण वह कर चुका है…. और हमसे वही चीन अपेक्षा करता है कि हम सड़क भी नहीं बनाएं….चीन की इसी अपेक्षा से मिलती जुलती मांग NGO की भी है….हम ये नहीं कह रहे हैं कि NGO का चीन की मांग से कोई संबंध है यह संयोग हो सकता है….
कहा गया है कि हिमालय में सड़क चौड़ीकरण के नाम पर अभी तक 25 हजार पेड़ों की कटाई हो चुकी है जिससे पर्यावरणविद नाराज हैं…आश्चर्य तब होता है जब यही पर्यावरणविद राज्यों के भीतर जंगलों में लाखों पेड़ों की वैध अवैध कटाई को सह लेते हैं…सड़कें बनाने के नाम पर राज्य सरकारें हर साल लाखों पेड़ काट डालती हैं तब ये पर्यावरणविद नाराज नहीं दिखते हैं….पर चीन को टक्कर दे सके ऐसी सड़क बनाने की बात होते ही देश और दुनियां में पर्यावरण के लिए भारी समस्या आ जाती है… ये चमत्कार ही है….
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अब आप समझ ही गए होंगे कि यह खाली हिन्दू आस्था स्थलों तक जाने वाली सड़क नहीं है , बल्कि देश की सुरक्षा करने वाली सड़कें भी हैं…..लोग पूछ रहे हैं कि यदि पर्यावरण को कुछ नुकसान पहुंचाकर भी देश की सुरक्षा मजबूत होती है तो इसमें किसी को क्यों दिक्क्त होनी चाहिए…लोग यह भी पूछ रहे हैं कि देश की तरक्की और सुरक्षा जैसे मामलों में यदि कोई मुकदमा लगाए तो ऐसे NGO की याचिका पर सुनवाई करने से पहले उसका बैकग्राउंड क्यों नहीं देखना चाहिए…ये देखना चाहिए कि ये कौन संस्था है… उसकी फंडिंग कहां कहां से होती है… और किस किस तरह के काम उसने किए हैं…. उससे जुड़े लोग कौन हैं …. आज जब इसकी चर्चा जोरों से हो रही है तो हमने इस संस्था यानी NGO को इंटरनेट पर ढूंढने की कोशिश की तो कोई वेबसाइट नहीं मिली पर सिटिजन्स फॉर ग्रीन दून’ (CFGD) के बारे में फेसबुक पेज पर जानकारी मिली कि वह आंदोलन की तरह मुद्दों को लेकर काम करती है और उसके पास कानूनी लड़ाई के लिए एक ट्रस्ट भी है…
केंद्र ने अभी सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से कहा है कि अदालत के पूर्व के आदेश को वापस लेने की उसकी याचिका पर तत्काल सुनवाई की जाए, क्योंकि सेना को चारधाम राजमार्ग परियोजना में सड़कों को चौड़ा करने की जरूरत है. ये राजमार्ग चीन की सीमा तक जाता है और वहां आने वाली मुश्किलों को देखते हुए ऐसा करना जरूरी है.
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सेना को उत्तरी क्षेत्र में समस्याओं को देखते हुए वहां की सीमा सड़कों को चौड़ा करने की जरूरत है.
अब आपको बता दें कि बॉर्डर एरिया में सड़क बनाने के कारण भारत को पिछले कुछ सालों में काफी विरोध भी झेलना पड़ा है…. आपको याद होगा उत्तराखंड में धारचूला और लिपुलेख दर्रे को जोड़ने के लिए भारत ने हाल ही में एक सड़क बनाई थी। मगर चीन के इशारे पर नेपाल ने कैलाश मानसरोवर लिंक रोड पर ऐतराज जताते हुए इस क्षेत्र को अपना हिस्सा बता दिया और कह दिया कि भारत यहां किसी भी प्रकार की कोई गतिविधि ना करे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में चीन की सीमा से सटे इस क्षेत्र में 17,000 फुट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर लंबे रणनीतिक मार्ग का उद्घाटन किया था।
भारत ने देपसांग घाटी के नजदीक दुनिया की सबसे ऊंची हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी का निर्माण किया है और यहां तक जाने के लिए सड़क भी बना ली है….अब इस जगह पर नीचे के इलाकों से पहुंचने में कुछ घंटे ही लगेंगे जबकि पहले कई दिन लग जाते थे…चीन को इससे भी काफी दिक्कत हुई थी… अब अगर बद्रीनाथ और केदारनाथ की तरफ चौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं और इसका विरोध हो रहा है तो सबसे ज्यादा खुशी चीन को ही हो रही होगी…
देखना होगा देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों में इस बार अदालत का रूख क्या रहता है और जनता के बीच क्या संदेश जाता है….तो सबको अब सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का इंतजार है जिसमें सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने पर बात होगी…..
तो अब तक आप समझ ही गए हैं कि चीन की चाल कितनी टेढ़ी है.. और हमारे लिए सड़कों का निर्माण कैसे टेढ़ी खीर है…. मै तो यही कह सकता हूं कि हम भावनाओं में बहकर कई चीजें करते हैं पर इसका फायदा कहीं दुश्मन तो नहीं उठा लेगा इस पर भी विचार कर लेना चाहिए.