मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल की संवेधानिकता? दसवीं अनुसूची के अनुरूप गठित है मंत्रि-परिषद? (अनैतिक राजनीति का युग)

मध्य प्रदेश के मंत्रिमंडल की संवेधानिकता? दसवीं अनुसूची के अनुरूप गठित है मंत्रि-परिषद? (अनैतिक राजनीति का युग)

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  • Publish Date - July 21, 2020 / 06:48 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 05:13 PM IST

संविधान की दसवीं अनु सूची (दल बदल कानून) का उद्देश्य यह है कि कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि अपने व्यक्तिगत कारणों,लोभ,लालच छल कपट से सरकार को अस्थिर करने के उद्देश्य से अपने मूल राजनीतिक दल जिससे वह निर्वाचित हुआ है, की सदस्यता स्वेच्छा से न छोड़े। प्रावधान निम्नानुसार है।
“(पैरा 2 (1)(क) उसने ऐसे राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है”

यदि कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि,उस राजनीतिक दल जिसकी विचारधारा,घोषणा पत्र,पर विश्वास प्रकट करते हुए,दल के कार्यक्रमों पर आस्था व्यक्त करके,जनता को लुभाते हुए,चुनाव लड़ता है,और फिर जितनी अवधि के लिए जनता ने उसे निर्वाचित किया है,बिना जनता को विश्वास में लिए स्वेच्छा से जिस राजनीतिक दल के टिकट पर जनता ने उसे निर्वाचित किया है उस राजनीतिक दल अर्थात विधान दल से त्याग-पत्र दे कर, विधान दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ देता है,जिस जनता ने उस पर विश्वास व्यक्त किया,जनता के साथ विश्वासघात करते हुए,किसी अन्य राजनीतिक दल मैं सम्मिलित हो जाता है,जनादेश को परिवर्तित कर देता है और उसके एवज में वह मंत्री पद अथवा अन्य कोई लाभ प्राप्त करने वाला पद प्राप्त कर लेता है,तो क्या यह दल बदल कानून,उपरोक्त पैरा (2)(1)(क),उसके उद्देश्य और उसकी मूल भावना के विपरीत नहीं है??

क्या केवल इस कारण से कि वह पुनः चुनाव लड़ने वाला है,मूल पद को तिलांजलि देने और जनादेश प्राप्त सरकार को अपदस्थ करने जैसे जघन्य अपराध से मुक्ति पाने और मंत्री पद पर नियुक्त होने अथवा नियुक्त किए जाने की अधिकारिता रखता है??

क्या कोई राजनीतिक दल जो ऐसे दलबदलू को राजनीतिक लाभ के लिए मंत्री अथवा अन्य लाभ के पद पर नियुक्त करता है तो क्या राजनीतिक दल का ऐसा कार्य प्रजातंत्र, संसदीय प्रणाली, संविधान,की अवज्ञा और दसवीं अनु सूचि(दल बदल कानून) के उल्लंघन और इसके उद्देश्यों के विपरीत नहीं है ??

संविधान की दसवीं अनु सूची(दल बदल कानून) जब वर्ष 1985 में संविधान में संशोधन करते हुए सम्मिलित की गई तब संसद में सदस्यों द्वारा व्यक्त विचारों में सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से जहां किसी सदस्य द्वारा दल बदलने पर सदस्यता से निरर्हरित (disqualify)करने जैसा प्रावधान लागू किया गया,और विभाजन(split) की स्थिति के लिए दल बदल कानून में निरहरित(disqualify)करने की अधिकारिता विधानसभा अध्यक्ष को दी गई और उनसे यह अपेक्षा की गई कि वह कानून और नियमों का निर्वचन करते हुए निरहंरित(disqualify) करने के संबंध में निर्णय दे।

राजनीतिक दलों में विभाजन पर दल बदल कानून एवं निर्मित नियमों के आधार पर विधानसभा अध्यक्षों के निर्णय प्राय: विवाद के विषय बने और आए दिन न्यायालयों में चुनौती भी दी जाने लगी। किंतु वर्ष 1985 के पश्चात अनुभव यह भी रहा कि अधिकतर विभाजन छोटे दलों में ही हुआ और विभाजन के पश्चात, विभाजित समूह को दूसरे दलों की सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया अथवा मंत्री पद के समान ही लाभ प्राप्त करने जैसे पदों पर नियुक्त किया गया।

1985 में दल बदल कानून के लागू होने के पश्चात इसमें अनुभव की गई कमियों आदि पर विचार करने हेतु चुनाव सुधार पर अध्ययन एवं प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए दिनेश गोस्वामी कमेटी की सिफ़ारिशें,तथा ला कमीशन की 170 वी रिपोर्ट 1999,भारत सरकार द्वारा वर्ष 2002 में संविधान की कार्य पद्धति को रिव्यू करने हेतु नियुक्त कमीशन ने भी दसवीं अनु सूची में विभाजन वाले पैरा को हटाने की अनुशंसा की।

उपरोक्त अनुशंसाओं के अनुरूप वर्ष 2003 में दसवीं अनु सूची को संशोधित करने हेतु लोकसभा में 97वां संशोधन विधेयक 5 मई 2003 को पूर:स्थापित(introduce) होने पर इसे प्रणव मुखर्जी के सभापतित्व में गठित संसद की स्थाई समिति को संदर्भित कर दिया गया। इस समिति ने भी पैरा तीन को डिलीट करने की अनुशंसा के साथ-साथ यह भी अनुशंसा की कि यदि “सदन का कोई सदस्य दसवीं अनु सूची के पैरा दो के अंतर्गत सदस्यता के लिए निर्रहित हो जाता है।

{अर्थात उसने अपने
(क)मूल राजनीतिक दल की सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है,अथवा
(ख)ऐसे राजनीतिक दल जिसका वह सदस्य है के किसी निर्देश के विरुद्ध पूर्व अनुज्ञा के बिना ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान करने से विरत रहता है और ऐसे राजनीतिक दल ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से 15 दिन के भीतर माफ नहीं किया है।} (कृपया संविधान की दसवीं अनु सूची का संदर्भ लें)

तो इस प्रकार दसवीं अनु सूची के अंतर्गत निरर्हरित(disqualify)सदस्य संविधान के अनुच्छेद 164(1)ख के अनुसार निरर्हरित होने की तारीख से,प्रारंभ होने वाली तारीख से उस तारीख तक, जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या जहां वह ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व यथा स्थिति किसी राज्य की विधानसभा के लिए या विधान परिषद वाले किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन के लिए कोई निर्वाचन लड़ता है उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है इनमें से जो भी पूर्वोत्तर हो,की अवधि के दौरान खंड1 के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए भी निरहर्ररित(disqualify)होगा। संविधान में 6 माह के लिए मंत्री पद पर नियुक्त करने के प्रावधानों के अंतर्गत भी ना तो उसे मंत्री पद पर नियुक्त किया जाए और ना ही सरकार में किसी अन्य रिमुनरेटिव (लाभकारी) पद पर नियुक्त किया जाए।

मंत्री पद पर नियुक्त नहीं किए जाने के साथ-साथ इस संभावना को सीमित करने के उद्देश्य से कि बिना किसी बंधन के मंत्रिमंडल का आकार ऐसे दलबदलूओं के कारण असीमित ना हो मंत्रिमंडल मैं मंत्रियों की संख्या को भी 15% रखने और छोटे राज्य जहां की संख्या 40,60 या 90 है, वहां कम से कम12 मंत्री, मंत्रिमंडल में सम्मिलित किए जाने की अनुशंसा की।

तत्कालीन विधि मंत्री श्री अरुण जेटली ने समिति की सिफ़ारिशो को स्वीकार करने का कथन कहते हुए संविधान में संशोधन का विधेयक समिति की अनुशंसा के साथ16 दिसंबर 2003 को लोकसभा में प्रस्तुत और पारित हुआ और पश्चात 18दिसंबर 2003 को राज्यसभा में प्रस्तुत और पारित हुआ जो भारत के राज पत्र में 91 वा संविधान संशोधन अधिनियम 2003, 2 जनवरी 2004 को भारत के राज पत्र में प्रकाशित होकर लागू हुआ।

इस विधेयक पर हुई चर्चा इसके उद्देश्य,संसद की मंशा आदि जानना इसलिए आवश्यक है,कि वर्तमान में राजनीतिज्ञों एवं राजनीतिक दलों का जो आचरण एवं व्यवहार देश की जनता देख रही है क्या वह वास्तव में विधेयक की शब्दावली,संसद मैं हुई चर्चा माननीय सदस्यों एवं माननीय विधि मंत्री जी द्वारा व्यक्त विचारों भावनाओं के अनुरूप है ?
इस संविधान संशोधन विधेयक पर लोकसभा एवं राज्यसभा में हुई चर्चा के कुछ महत्वपूर्ण अंश हूबहू स्वरूप में निम्नानुसार है:-

लोकसभा की कार्यवाही दिनांक 16 दिसंबर 2003 के अंश

Priya Ranjan Das Munshi:-

“in this parliament I defined defection in two categories- one is defection per se as per the statute and the other is deceptionThis legislation will give a wider scope that if a leader of a party resigned from that party joins another party it is also defection and if he does not get elected by the People’s mandate he will not be considered as a Minister. Simply contesting election will not wash his whole sin or crime whatever it is.I agree it is good,you are giving the total emphasis on the mandate of the people,if the mandate of the people is the single criterion to honour the constitution then my submission to honorable minister of law and Justice is with due respect to the upper house here and the Council in States get the percentage of the legislators inducted in the ministry 15% or tomorrow you can further make it to 12% if there is a shortcoming.It should be done on the basis of the people elected by the people and not combining both the houses.Combining both the houses negates the very concept where you state that a member who resigns and joins other party cannot be considered as a member of council of minister and sworn in at the Rashtrapati Bhavan or the Governor house, unless he is elected. so elected by the people should be the basic criterion and if that is so in that case combining both the houses and deciding the strengths to determine the size of the Council of Ministers is not a correct approach”

Shri Arun Jaitley: I am grateful to the hon. Member.Some other questions have been raised,and one questions which Members have repeatedly raised,which was asked to me in the end,as to what happens with regard to parties expelling their Members From the membership of the Political party.Now the provisions of the Tenth Schedule it self take care of that which is to the effect that the Tenth Schedule is triggered off or attracted only if somebody voluntarily relinquishes the membership of a political party.

कोई अपनी मर्जी से वाल्यनटरली अपनी पार्टी की सदस्यता को छोड़ता है तभी संविधान के दसवे शेड्यूल के अंतर्गत प्रावधान उस पर लागू होते हैं। जो अपनी मर्जी से नहीं छोड़ता और जिसे पार्टी की तरफ से एक्सपेल कर दिया जाता है, एक्स्पल्शन की वजह से दसवाँ शेड्यूल अपने आप में अट्रैक्ट नहीं होता। इसलिए उसके ऊपर यह प्रावधान लागू नहीं होगा।

राज्यसभा की कार्यवाही दिनांक 18 दिसम्बर के अंश:-

Shri Pranab Mukherjee; But most important part of of this is the defection, and I do entirely agree with the Honorable minister that in the name of of expressing distant dissenting voice from the political parties or the leadership of the the political party this provision was used to to subserve self interest it was not in the question of the the dissent nobody prevents dissent no body can throttle dissent. What is Being prohibited is that you cannot take advantage of your elected strata being a member of a legislature either in the Assembly or in the The council or in Lok Sabha or or in Rajya Sabha and there after Express your decent. If you genuinely feel that you do not agree with the the views of the political party the most respectable course left to you would you resign from the party, you resign from the the membership and you seek the mandate on that Limited issue if a limited mandate could be obtained. 

One instance comes to to my mind immediately, when Mr Siddharth Shankar Ray was the the law minister of Dr B C Roy government of West Bengal he had differences with the Congress Party and he resigned immediately from the party,he resigned from the membership of the assembly and sought by-election and that is the normal democratic practice which we should have.Unfortunately we are not doing so therefore this is an attempt to prevent taking that advantage and power anxiety to eat the cake and at the same time have it.we have also suggested that it may happen that a Minister without being a member of either House for six months is being prohibited but the remunerative political office should also be. We suggested to the department, and thereafter the definition has come which we have incorporated in the report, the government has also accepted that.

SHRI ARUN JAITELY: 
One more question which was raised by some of the the Members as to whether this would also be applicable to Members who are expelled by political parties.The tenth schedule itself does not apply to Members who are expelled by political parties.The Tenth Schedule has triggered off only against a Member who voluntarily gives up the membership of a political party.If somebody voluntarily does not give up the membership of apolitical party.If somebody doesn’t give up the membership of a political party and he is expelled by the political,the provisions of the Tenth Schedule Itself would be inapplicable in such case.

उपरोक्त संविधान की दसवीं अनु सूची के पैरा 2(1)(क),)(ख) संविधान के अनुच्छेद164(1B),एवं सदन में हुई चर्चा और विधी मंत्री के उत्तर के परिपेक्ष में विचारणीय यह है कि दल की सदस्यता स्वैच्छा से छोड़ने वाले सदस्यों को मंत्री पद पर नियुक्त किया जाना,अथवा लाभकारी पद पर नियुक्त करना संवैधानिक है?अथवा असंवैधानिक??

संदर्भ:-

1 भारत का संविधान दसवीं अनुसूची एवं अन्य संबंधित अनुच्छेद
2 संविधान के 97 वेवा संशोधन विधेयक तथा उस पर लोकसभा में हुई चर्चा दिनांक 16 दिसंबर 2003 तथा राज्यसभा में हुई चर्चा दिनांक 18 दिसंबर 2003

देवेंद्र वर्मा, पूर्व प्रमुख सचिव, छत्तीसगढ़ विधानसभा
संसदीय एवं संविधानिक विशेषज्ञ

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