भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में देहवसान हो गया। मनमोहन सिंह की छवि भारत के बेदाग प्रधानमंत्री के तौर पर रही है। मेरा खुद का अनुभव भी यही कहता है। मनमोहन सिंह बेहद शांत और साधारण किस्म की जीवनशैली में रहने वाले इंसान थे ये बात उस दिन पता चली जब उनके साथ नाश्ते के टेबल पर इंटरव्यू करने का अवसर प्राप्त हुआ। नाश्ता करते हुए उन्होंने न सिर्फ राजनीतिक सवालों के जवाब दिए बल्कि आर्थिक मुद्दों पर भी बेबाकी से अपनी राय रखी। तो चलिए उस किस्से को विस्तार से बताता हूं।
दरअसल दौर था 1999 लोकसभा चुनाव का, जब मैं ‘ईनाडु टीवी’ में कार्यरत था। चुनावी अभियान की शुरुआत से पहले मुझे दक्षिण दिल्ली सीट से पहली बार चुनावी मैदान में उतरे मनमोहन सिंह का इंटरव्यू करने की जिम्मेदारी दी गई। संस्थान की ओर से हिदायत दी गई थी कि इंटरव्यू नाश्ते के टेबल हो तो और भी बेहतर होगा। संस्थान के निर्देश के अनुसार मैं अपने काम पर लग गया। ये बात उस दौर की है जब मोबाइल फोन का चलन कम था और चुनिंदा लोग ही इसका इस्तेमाल करते थे। हालांकि हमने लैंडलाइन पर फोन कर मनमोहन सिंह से बात करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई। अंतत: मैं और मेरी टीम सुबह करीब 7 बजे उनके आवास पर पहुंच गए।
मनमोहन सिंह के आवास पर पहुंचते ही वहां मौजूद गार्ड को अपना परिचय देते हुए इंटरव्यू की बात बताई। आपको यहां बता दूं कि मनमोहन सिंह के आवास पर सभी गार्ड सिख थे। गार्ड ने अंदर जाकर मेरी बात रखी तो वहां से मेरा बुलावा आया। अंदर जाने के बाद मनमोहन सिंह से मुलाकात हुई तो वो अपनी बेटी के साथ मौजूद थे। मैंने अपना प्रस्ताव रखते हुए नाश्ते के टेबल पर पर इंटरव्यू की बात कही। हैरानी तो तब हुई जब मेरे प्रस्ताव पर उन्होंने सहजता से स्वीकृति प्रदान कर दी और हम पहुंच गए थे नाश्ते के टेबल पर।
नाश्ते के टेबल पर पहुंचते ही हमें दही और पराठे परोसे गए, फिर शुरू हुआ सवालों का सिलसिला। पहले तो मैंने उनसे राजनीतिक विषयों पर सवाल किए तो थोड़े असहज नजर आए। उनसे जब पूछा कि दक्षिण दिल्ली सीट से आप चुनाव लड़ रहे हैं…क्यों? तो उन्होंने सहजता से जवाब देते हुए कहा कि पार्टी का निर्देश है कि यहां सिख और मुस्लिम कम्यूनिटी के लोग ज्यादा हैं तो आप वहां से मैदान में उतरिए।
वहीं, आगे जब उनसे मैंने अर्थशास्त्र से जुड़े सवाल पूछे तो वो आत्मविश्वास से भरे नजर आए। ऐसा लग रहा था कि वे इन सवालों का जवाब देने में सोचने का भी समय नहीं ले रहे। हालांकि साल 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा उम्मीदवार वीके मल्होत्रा से हार का सामना करना पड़ा था। ये उनका पहला और आखिरी चुनाव था।
वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह के कुशल नेतृत्व पर प्रकाश डालें तो वे वास्तव में भारत के आर्थिक उदारीकरण के वास्तुकार थे। उनकी नीतियों ने देश के आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया। बाजार-संचालित अर्थव्यवस्था के लिए उनके व्यापक दृष्टिकोण ने भारत की क्षमता को उजागर करने में मदद की, जिससे देश के एक प्रमुख वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
उनके नेतृत्व में भारत में महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार देखने मिला। उनके फैसले के बाद लाइसेंस राज का खात्मा हुआ। इतना ही नहीं दूरसंचार तथा विमानन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में भी प्रमुख उपलब्धियां हासिल हुई। इन सुधारों ने न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया, बल्कि लाखों भारतीयों के जीवन को भी बेहतर बनाया। मेरी पीढ़ी उन्हें एक शानदार अर्थशास्त्री, एक सज्जन व्यक्ति और एक अनिच्छुक राजनेता के रूप में याद करती है, जिन्होंने भारत के आर्थिक इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ी।
मेरी गहरी संवेदनाएं